बदले जो न ढंग.
हाथ गुलाल लिए खड़े,मोहन बहुत उदास ,
राधा पहुँची डेट पर, और किसी के साथ !
राधा के मन और है, मोहन के मन और ,
इसके मन भी चोर है, उसके मन भी चोर !
होली दिवाली भाय न, भाये अब न बसंत ,
मोहन के मन अब बसे, बैलेटाइन सन्त !
पहले चाट पसंद थी ,अब पसंद है चैट ,
मनमोहन की बाँसुरी , बना है इंटरनेट !
राधा, मीरा, रुकमणी, सब जाने यह बात ,
इस मोहन का वायदा, नहीं किसी के साथ !
देश ,वेश , भाषा गई , बचा है केवल रंग ,
यूँ ही गुम हो जावगे. बदले जो ना ढंग !
धीरेन्द्र सिंह भदौरिया,
bahut hi sundar abhivyakti .badhai
जवाब देंहटाएंकटीला यथार्थ...
जवाब देंहटाएंबदली बयार में बदले दोहे!!
जवाब देंहटाएंयथार्थ..बहुत सुन्दर......
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और मनोरंजक छंद ....और उतने ही सुंदर कटाक्ष ......
जवाब देंहटाएंप्रेम के विश्वास को आधुनिकता का श्राप
जवाब देंहटाएंसुन्दर दोहे
जवाब देंहटाएंयथार्थ
जवाब देंहटाएंसुंदर दोहे
बहुत सुन्दर और सटीक दोहे...
जवाब देंहटाएंपहले चाट पसंद थी ,अब पसंद है चैट ,
जवाब देंहटाएंमनमोहन की बाँसुरी , बना है इंटरनेट !....bahut khoob ..:)
आभार । हर्ष जी ।
जवाब देंहटाएंआभार । शास्त्री जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... हास्य, व्यंग का पुट लिए ....
जवाब देंहटाएंलाजवाब दोहे हैं सभी ...
aaj ke sandarv me chutila wyang....par yatharth..
जवाब देंहटाएंलाजवाब दोहे
जवाब देंहटाएंरंग में भंग मिली है ..... बहुत सुन्दर दोहे .
जवाब देंहटाएं:-) :-)
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति. से साक्षात्कार हुआ । मेरे नए पोस्ट
जवाब देंहटाएं"सपनों की भी उम्र होती है " (Dreams havel life) पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है।
HOLI KA YATHARTH SHABDON ME SACH AUR SANSAR DONO KI JHALAK--VAH BAHUT KHOOB..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर दोहे ....!
जवाब देंहटाएं