शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

बदले जो न ढंग.( दोहे )

बदले जो न ढंग.
 
हाथ गुलाल लिए खड़े,मोहन  बहुत  उदास ,
राधा  पहुँची  डेट पर, और  किसी  के साथ !

राधा के  मन और है, मोहन  के  मन  और ,
इसके मन  भी चोर है, उसके मन  भी चोर !

होली दिवाली  भाय न, भाये अब  न बसंत ,
मोहन  के  मन अब  बसे, बैलेटाइन  सन्त !

पहले  चाट  पसंद  थी ,अब  पसंद  है  चैट ,
मनमोहन   की  बाँसुरी , बना  है  इंटरनेट !

राधा, मीरा, रुकमणी, सब  जाने  यह बात ,
इस मोहन  का वायदा, नहीं किसी के साथ !

देश ,वेश , भाषा  गई , बचा  है  केवल  रंग ,
यूँ  ही  गुम  हो  जावगे. बदले  जो  ना  ढंग !


धीरेन्द्र सिंह भदौरिया,
 

23 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (01-03-2014) को "सवालों से गुजरना जानते हैं" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1538 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सुंदर और मनोरंजक छंद ....और उतने ही सुंदर कटाक्ष ......

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  3. प्रेम के विश्वास को आधुनिकता का श्राप

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  4. बहुत सुन्दर और सटीक दोहे...

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  5. पहले चाट पसंद थी ,अब पसंद है चैट ,
    मनमोहन की बाँसुरी , बना है इंटरनेट !....bahut khoob ..:)

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  6. बहुत खूब ... हास्य, व्यंग का पुट लिए ....
    लाजवाब दोहे हैं सभी ...

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  7. रंग में भंग मिली है ..... बहुत सुन्दर दोहे .

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  8. शानदार प्रस्तुति. से साक्षात्कार हुआ । मेरे नए पोस्ट
    "सपनों की भी उम्र होती है " (Dreams havel life) पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है।

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!

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आपकी टिप्पणियाँ मेरे लिए अनमोल है...अगर आप टिप्पणी देगे,तो निश्चित रूप से आपके पोस्ट पर आकर जबाब दूगाँ,,,,आभार,