मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

फागुन की शाम.

फागुन की शाम

पोखर में 
डूब रही 
  फागुन की शाम ! 
झुक आया 
धरती तक 
 नीला आकाश, 
देख - देख 
हो बैठी 
 पत्तियाँ उदास ! 
सूरज ने  
घोड़ों की  
  खोल दी लगाम !  
  सतरंगी किरणें    
अब - 
   पीपल से झांक,    
भाग - भाग   
जाती है   
   सूनापन आंक !    
सुधियों में   
बैठ गया   
भूला सा नाम    
पोखर में   
डूब रही   
   फागुन की शाम !  


   

35 टिप्‍पणियां:

  1. बीतता फागुन कुछ ऐसी ही अनुभूतियाँ छोड़ जाता है .......सुंदर रचना......
    साभार......

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  2. पत्तियाँ कर लीजिये पतियाँ की जगह ।
    बहुत सुंदर रचना ।

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  3. डूबते फागुन के शाम का बहुत सुंदर चित्रण ...!!

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (26-02-2014) को लेकिन गिद्ध समाज, बाज को गलत बताये; चर्चा मंच 1535 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. सुन्दर प्रस्तुति है आदरणीय-
    आभार आपका-

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  6. हमेशा से बिलकुल अलग रचना बहुत अच्छी लगी !

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  7. बहुत खूब ... डूबती हुयी शाम भी कितना कुछ मन में उठा जाती है ...

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  8. साँझ ढली .पंछी घर आये .........खुबसूरत अहसास !

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  9. प्रिय धीरेन्द्र भाई बहुत सुन्दर प्राकृतिक झांकी युक्त सुन्दर रचना
    जय शिव शम्भो आप को भी....
    भ्रमर ५

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  10. वहुत सुन्दर प्रस्तुति , फाल्गुन का सुन्दर चित्र प्रस्तुत किया है, बहुत बधाई ..

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  11. बहुत कोमल भाव ...........बिलकुल अलग रचना बहुत अच्छी लगी !

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  12. शानदार प्रस्तुति. से साक्षात्कार हुआ । मेरे नए पोस्ट
    "सपनों की भी उम्र होती है " (Dreams havel life) पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है।

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आपकी टिप्पणियाँ मेरे लिए अनमोल है...अगर आप टिप्पणी देगे,तो निश्चित रूप से आपके पोस्ट पर आकर जबाब दूगाँ,,,,आभार,