सूनापन कितना खलता है
आँखों से दर्द टपकता है
होंठों से हँसना पड़ता है
दोनों की बाहें थाम यहाँ,जीवन भर चलना पड़ता है
सूनापन कितना खलता है
मझधार में मांझी रोता है
लहरों के बोल समझता है
है वेग तेरा भारी मुझपर,पतवार वार को सहता है
सूनापन कितना खलता है
दिन धीरे-धीरे ढलता है
चेहरे का रंग बदलता है
इस श्वेत श्याम की छाया में,बीता कल छुप कर रहता है
सूनापन कितना खलता है
रचनाकार - विक्रमसिंह (केशवाही) शहडोल,म.प्र.
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंबुरा मत मानियेगा
आपकी टिप्पणियाँ मेरे लिए अनमोल है...अगर आप टिप्पणी देगे,तो निश्चित रूप से आपके पोस्ट पर आकर जबाब दूगाँ,,,,आभार,
लिखना जरूरी है क्या?
बहुत सुन्दर और मन को छूती रचना...
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
आपकी यह रचना मुझे बहुत अच्छी लगी।..वाह!
जवाब देंहटाएंक्षमा करें..विक्रम सिंह जी का नाम मैने बाद में पढ़ा। कमेंट संशोधित करते हैं...विक्रम सिंह जी की यह रचना मुझे बहुत अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26-12-2013 को चर्चा मंच की चर्चा - 1473 ( वाह रे हिन्दुस्तानियों ) पर दिया गया है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
आभार
आभार ,,,,दिलबाग जी,,,,
हटाएंबहुत सुंदर.......
जवाब देंहटाएं"आँखों से दर्द टपकता है
जवाब देंहटाएंहोंठों से हँसना पड़ता है"
वाह...बहुत ही अच्छी और भावपूर्ण रचना.....बधाई....
नयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी
बहुत सुंदर रचना से आपने परिचय करवाया ... आभार
जवाब देंहटाएंकृपया विक्रम सिंह जी को हमारी बधाई प्रेषित कीजियेगा
सादर
sundar.............ati sundar................
जवाब देंहटाएंदिन धीरे-धीरे ढलता है
जवाब देंहटाएंचेहरे का रंग बदलता है
इस श्वेत श्याम की छाया में,
बीता कल छुप कर रहता है
jiwan ki sachai batata post BADHAI
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट मेरे
जवाब देंहटाएंमझधार में मांझी रोता है
लहरों के बोल समझता है
है वेग तेरा भारी मुझपर,पतवार वार को सहता है
सूनापन कितना खलता है
गहरी भाव !
सपनो के रामराज्य (भाग तीन -अन्तिम भाग)
नई पोस्ट ईशु का जन्म !
बहुत खूबसूरत। एकाकीपन सही में बहुत सालता है।
जवाब देंहटाएंखाली आंखों को यह रचना पढ़कर शान्ति प्राप्त हुई। रचनाकार को प्रणाम।
जवाब देंहटाएंसुंदर भावपूर्ण रचना !
जवाब देंहटाएंमझधार में मांझी रोता है
जवाब देंहटाएंलहरों के बोल समझता है
है वेग तेरा भारी मुझपर,पतवार वार को सहता है
सूनापन कितना खलता है...........behtareen panktiyan..abhaar.
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर मार्मिक रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंआँखों से दर्द टपकता है
जवाब देंहटाएंहोंठों से हँसना पड़ता है....बहुत सुन्दर..
इस श्वेत श्याम की छाया में,बीता कल छुप कर रहता है
जवाब देंहटाएंसूनापन कितना खलता है.
बहुत सुन्दर.विक्रम जी,
aabhar sajha karane ke liye !
एक बहुत ही सुन्दर कविता.. इस कवि से परिचय कराने का आभार!!
जवाब देंहटाएंwah sundar....har line me gehre bhav
जवाब देंहटाएंक्या बात वाह! अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंतीन संजीदा एहसास
बहुत सुन्दर रचना .. बहत खूब ..
जवाब देंहटाएंपर फ़िर भी जीना पड़ता है..
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंमन को छूने वाली ... सच से मिलवाती भावपूर्ण रचना ...
जवाब देंहटाएंनव वर्ष मंगलमय हो ...
सही कहा धीरेन्द्र जी...
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को अपने ब्लॉग में स्थान देने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंप्रेमपूर्ण प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंप्रेमपूर्ण प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और प्यारी रचना.....
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna hai.
जवाब देंहटाएंnay sal ki subhkamnay.
abhar
जवाब देंहटाएंआँखों से दर्द टपकता है
जवाब देंहटाएंहोंठों से हँसना पड़ता है....बहुत सुन्दर..
बहुत सुन्दर रचना .. बहत खूब ..
जवाब देंहटाएं