नूतनता और उर्वरा,
बेटी बोली पेड़ से , कैसे हो तुम भाई ,
बेटी बोली पेड़ से , कैसे हो तुम भाई ,
प्रभु ने हम दोनों की , किस्मत एक बनाई !
दुनिया में हम दोनों को , ज़िंदा मारा जाता ,
मुझे गर्भ के भीतर ,तुमको बाहर काटा जाता !
बेटी की ये बात सुन , पेड़ ने किया आत्मसात ,
मिल कर के किया फैसला , समझाई जाऐ बात !
हमको मत काटो मारो,दिया इंसानों को मश्वरा ,
हम दोनों है पृथ्वी की,"नूतनता" और "उर्वरा !
धीरेन्द्र सिंह भदौरिया,
दुनिया में हम दोनों को , ज़िंदा मारा जाता ,
मुझे गर्भ के भीतर ,तुमको बाहर काटा जाता !
बेटी की ये बात सुन , पेड़ ने किया आत्मसात ,
मिल कर के किया फैसला , समझाई जाऐ बात !
हमको मत काटो मारो,दिया इंसानों को मश्वरा ,
हम दोनों है पृथ्वी की,"नूतनता" और "उर्वरा !
धीरेन्द्र सिंह भदौरिया,
बहुत खूब !!!!!
जवाब देंहटाएंहम दोनों ही पृथ्वी की नूतनता और उर्वरा....... सुंदर संवेदनशील प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंवृक्ष और कन्या को बहुत सुन्दर उपमाएं प्रदान की नूतनता और उर्वरा वाह ,बहुत सार्थक प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंहमको मत काटो मारो,दिया इंसानों को मश्वरा ,
जवाब देंहटाएंहम दोनों है पृथ्वी की,"नूतनता" और "उर्वरा
सम्वेदनहीन क्यूँ बनें
सादर
वाह वाह क्या बात है, बहुत सुन्दर और सारगर्भित .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसार्थक संदेश,
संदेश देती एक सार्थक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंवाह....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया..
सार्थक रचना.
सादर
अनु
पृथ्वी और कन्या ... या नारी ... सब एक ही तो हैं ...
जवाब देंहटाएंआदमी बस दोहन करता है ...
बहुत खूब | लाजवाब रचना | आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर बोध कराती कविता..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (08-04-2013)
के "http://charchamanch.blogspot.in/2013/04/1224.html"> पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
सूचनार्थ...सादर!
हमको मत काटो मारो,दिया इंसानों को मश्वरा ,
जवाब देंहटाएंहम दोनों है पृथ्वी की,"नूतनता" और "उर्वरा !.........बहुत सुन्दर
बहुत ही मार्मिक और संवेदनशील रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
झकझोर देने वाली सुन्दर रचना !!
जवाब देंहटाएंसटीक और मार्मिक संदेश
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति,आभार.
जवाब देंहटाएंatulniy prastuti
जवाब देंहटाएंलाजवाब और संवेदनशील रचना | आभार
जवाब देंहटाएंदुनिया में हम दोनों को , ज़िंदा मारा जाता ,
जवाब देंहटाएंमुझे गर्भ के भीतर ,तुमको बाहर काटा जाता !
बहुत बढ़िया ..आभार
मार्मिक रचना.. सोचने को विवश करती रचना!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब और संवेदनशील रचना
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील रचना.. सार्थक प्रस्तुति,आभार
जवाब देंहटाएंवाह भाई जी कितनी सहजता से गहरी बात कही है
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
बधाई
लाजवाब !
जवाब देंहटाएंसुंदर,संवेदनशील रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया..
जवाब देंहटाएंजीवन को जब जीते जी मारने की रवायत बन जाए तो फिर समाज का पतन निश्चित है .....आपकी रचना में एक आशा की किरन भी है ......समाज अपनी भूल समय रहते सुधार ले यही दुआ है अब तो
जवाब देंहटाएंबेहद सार्थक सशक्त अंदाज़ एक तरफ पर्यावरण चेतना और दूसरी तरफ सामाजिक चेतना का आवाहन सुबुद्ध बनने का .
जवाब देंहटाएंॐ शान्ति .
सुन्दर प्रस्तुति . सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको
जवाब देंहटाएंकाश आपका यह मशवरा बहरे कानों और संवेदनहीन हो चुके आदमी के मानस पर कोई प्रभाव छोड़ सके ! बहुत ही अनमोल सन्देश देती एक सार्थक रचना !
जवाब देंहटाएंप्रेरक और सटीक रचना । बेटी को अब अन्दर से कम और बाहर से ज्यादा खतरा है ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति , सुन्दर रचना, सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत प्रेरणा से भरी रचना ..सादर
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक और प्रेरक प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सशक्त अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंप्यार मेरा---भावपूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा है ...पर इंसान समझना ही नहीं चाहता
जवाब देंहटाएंसटीक रचना
जवाब देंहटाएंgahri bat ...kah di beti ki tuna ped se karke .......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और गहन..........
जवाब देंहटाएंबहुत सही और सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंसादर !
नूतनता और उर्वरा दोनों का संचयन आवश्यक है. सार्थक संदेश.
जवाब देंहटाएंअच्छी rchna
जवाब देंहटाएंबहुत कम शब्दों में अत्यंत गहन बात कह दी आपने ..बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंबेहद गहन एवं सशक्त भाव रचना के ...
जवाब देंहटाएंआभार
bhut achchhi jankariya btayi hai is post ke madhym se dhanywad aapka
जवाब देंहटाएंGreat post!
जवाब देंहटाएंji aapne bhut achchhi jankariya btayi hai