मै भी देश का बन्दा हूँ
मै आदर्शवाद का झंडा हूँ,
हर साल इसे रंग लेता हूँ
इसलिए अभी तक नेता हूँ
कुछ न कुछ मै सबको देता हूँ
आखिर मै भी जन नेता हूँ
वादों से जन का पेट चले
हर पाँच साल में वोट मिले
कुर्सी में बैठ कर मुझको
स्वर्गासन सा आनंद मिले
पोशाक मेरे स्वेताम्बर है
छीटे पड़ना स्वाभाविक है
माहौल बनाने के खातिर
मै पुनः साफ़ कर लेता हूँ
स्वाभाविक मधु मुस्कान लिए,
कितनो का मत हर लेता हूँ
बस हल्की नील चढाकर के,
मै कुर्सी को पा लेता हूँ
तू खाना खा कर जीवित है
मै जनमत खाकर ज़िंदा हूँ
मै भी देश का बन्दा हूँ,
मै आदर्शवाद का झंडा हूँ,
dheerendra,bhadauriya
हा हा हा ! बहुत बढ़िया .
जवाब देंहटाएंमैं देता नहीं ,
बस लेता हूँ
हाँ हाँ , मैं नेता हूँ !
मै भी देश का बन्दा हूँ
जवाब देंहटाएंमै आदर्शवाद का झंडा हूँ,
हर साल इसे रंग लेता हूँ
इसलिए अभी तक नेता हूँ
आज एक नया रंग भर दिया आपने इस कविता में. दर्द भी है कटाक्ष भी.
बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति.
बहुत बढ़िया धीरेन्द्र जी ।।
जवाब देंहटाएंसादर -
मत से है पूरा प्यार सखे ।
मत करना तुम खिलवाड़ सखे ।
तुम दान करो तन मन धन मत -
ताकि हम सकें दहाड़ सखे ।
स्वार्थ सिद्ध जब न होवे,
सत्ता को चले उखाड़ सखे ।
निस्वार्थ भाव से कर्म करो-
कलुषित भाव मत ताड़ सखे ।।
सुन्दर पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंक्या कहने
बहुत सुन्दर व्यंग्य भरी रचना बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई कवी महोदय ,बहुत ही सुन्दर व्यंग्यात्मक रचना लिखी है.
जवाब देंहटाएंखास कर ये लाइने पढ़ कर बड़ा आनंद आया ''हर पाँच साल में वोट मिले
कुर्सी में बैठ कर मुझको ,स्वर्गासन सा आनंद मिले.
मोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
समय की चेतना को कडवा जवाब |
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar sir ji !!!
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब व्यंग्य रचना..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन:-)
बहुत लाजवाब सटीक व्यंग्य...
जवाब देंहटाएंबेशक ... बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पंक्तियां ...
जवाब देंहटाएंजय जय जय जय, लोकतन्त्र जय..
जवाब देंहटाएंमैं नेता हूँ !
जवाब देंहटाएंमैं नेता हूँ !
बहुत बढ़िया,सटीक व्यंग्य...
बहुत ही सुंदर !!
जवाब देंहटाएंनेताओं पर सटीक व्यंग्य. बहुत सुन्दर ! .. वैसे नेता लोग मोटी चमड़ी के होते हैं. गैंडे की खाल से भी मोटी. इसमें कुछ गड़ जाय तो.......
जवाब देंहटाएंलाजवाब व्यंग्य रचना...बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया....करारी रचना...
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
तू खाना खा कर जीवित है
जवाब देंहटाएंमै जनमत खाकर ज़िंदा हूँ
मै भी देश का बन्दा हूँ,
व्यंग्य व्यंजना बढ़िया है .
badhiya vyang...
जवाब देंहटाएंsundar aur sarthak srijan.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सच्चा तीखा व्यंग ....
जवाब देंहटाएंसीधे साफ़ शब्दों में बहुत बड़ी बात कही आपने ! सशक्त अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंसादर !!!
नेताओं पर गहन कटाक्ष .... सटीक और खरी बात
जवाब देंहटाएंवाह SIR बेहद खुबसूरत रचना बधाई स्वीकार करें.
जवाब देंहटाएंसुन्दर विचार ।
जवाब देंहटाएंपोशाक मेरे स्वेताम्बर है
जवाब देंहटाएंछीटे पड़ना स्वाभाविक है
माहौल बनाने के खातिर
मै पुनः साफ़ कर लेता हूँ
.....आज के नेताओं पर सटीक कटाक्ष...
अच्छी व्यंग रचना !!
जवाब देंहटाएंन कहीं आदर्श,न कोई नेतृत्व।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी.हमेशा की तरह अच्छी पोस्ट की है आपने.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया .....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंजोरदार कटाक्ष।
जवाब देंहटाएंधीरेंद्र जी नमस्कार...
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग 'काव्यंजलि' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 24 जुलाई को 'आदर्श वादी नेता' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव
बहुत बढ़िया कटाक्ष. नेताओं की छवि और कुर्सी पानी की लालसा का सटीक चित्रण, बधाई.
जवाब देंहटाएंराज नेताओं और राजनीति पर बहुत ही बढ़िया कटाक्ष एवं सटीक बात कहती बहुत ही बढ़िया व्यङ्गात्म्क प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआदर्शवाद वो भी रंग में रंगा हुआ .....ये भी नेता जी को पता है की कौनसा रंग है इस पर .......बहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंखूब शनिल में लपेटकर मारा है ...वाह करारा व्यंग !
जवाब देंहटाएंआज के माननीय नेतागण जनमत के साथ जनता को भी खाए जा रही है ....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर व्यंग्य ..
ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया !
सादर !
laajbaab prastuti ,,,,,
जवाब देंहटाएंबस हल्की नील चढाकर के,
जवाब देंहटाएंमै कुर्सी को पा लेता हूँ
तू खाना खा कर जीवित है
मै जनमत खाकर ज़िंदा हूँ,,,,,,
बहुत लाजबाब व्यंग ,,,,
कुर्सी में बैठ कर मुझको
जवाब देंहटाएंस्वर्गासन सा आनंद मिले
पोशाक मेरे स्वेताम्बर है
छीटे पड़ना स्वाभाविक है,,,,,
sunder prastuti
बहुत खूब .... गहरा कटाक्ष है इन नेताओं पे ...
जवाब देंहटाएंपर इनकी मोटी चमड़ी पे असर नहीं होता ...
रोचक पोस्ट !
जवाब देंहटाएंबेहतर रचना आपने नेट से दूर रहने के कारण कमेन्ट मे देरी हूई है
जवाब देंहटाएंधीरेन्द्र जी, आप तो आदर्शवादी नेता के बहाने वर्तमान नेता के लिये नये आदर्शों के पैमाने गढ़ रहे हैं.
जवाब देंहटाएंबस हल्की नील चढाकर के,
जवाब देंहटाएंमै कुर्सी को पा लेता हूँ
तू खाना खा कर जीवित है
मै जनमत खाकर ज़िंदा हूँ
करारा प्रहार और व्यंग्य से उन्हें जगाती रचना
भ्रमर ५
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसारगर्भित प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया..
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