
मै भी देश का बन्दा हूँ
मै आदर्शवाद का झंडा हूँ,
हर साल इसे रंग लेता हूँ
इसलिए अभी तक नेता हूँ
कुछ न कुछ मै सबको देता हूँ
आखिर मै भी जन नेता हूँ
वादों से जन का पेट चले
हर पाँच साल में वोट मिले
कुर्सी में बैठ कर मुझको
स्वर्गासन सा आनंद मिले
पोशाक मेरे स्वेताम्बर है
छीटे पड़ना स्वाभाविक है
माहौल बनाने के खातिर
मै पुनः साफ़ कर लेता हूँ
स्वाभाविक मधु मुस्कान लिए,
कितनो का मत हर लेता हूँ
बस हल्की नील चढाकर के,
मै कुर्सी को पा लेता हूँ
तू खाना खा कर जीवित है
मै जनमत खाकर ज़िंदा हूँ
मै भी देश का बन्दा हूँ,
मै आदर्शवाद का झंडा हूँ,
dheerendra,bhadauriya