सोमवार, 16 जुलाई 2012

आई देश में आंधियाँ....



अब डराने लग गई परछाइयाँ
दूर होती जा रही अच्छाइयाँ ,

लोग कीचड फेकने आते सामने
मौन होती है सब किलकारियाँ,

तोड़कर दर्पण जो बगलें झांकते
बिन बुलाये आती है कठनाइयाँ,

दोस्ती के नाम पर जब विष घुले
नष्ट हो जाती है तब आबादियाँ,

सत्ता ने समझी आह आक्रोश की
स्वार्थ में जलने लगी चिंगारियाँ,

फूल काटों की चुभन जब सह गया
स्नेह से खिलने लगी फुलवारियाँ,

लोग पल-पल में व्यथा कहने लगे
तब उन्हें डसने लगी परछाइयाँ,

राष्ट्र एकता के सूत्र में बंध गया
कहर ढाने आई देश में आंधियाँ,

dheerendra bhadauriya ,,,

42 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति....
    सादर
    अनु

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  2. बहुत सुंदर धीरेंद्र जी
    क्या बात है


    अब डराने लग गई परछाइयाँ
    दूर होती जा रही अच्छाइयाँ ,

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  3. अब डराने लग गई परछाइयाँ
    दूर होती जा रही अच्छाइयाँ ,

    लोग कीचड फेकने आते सामने
    मौन होती है सब किलकारियाँ,

    बहुत ही बेहतरीन रचना.

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  4. लोग कीचड फेकने आते सामने
    मौन होती है सब किलकारियाँ,
    सार्थकता लिए सशक्‍त लेखन ...

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  5. फूल काटों की चुभन जब सह गया
    स्नेह से खिलने लगी फुलवारियाँ,
    bahut sundar ....

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  6. लोग पल-पल में व्यथा कहने लगे
    तब उन्हें डसने लगी परछाइयाँ,

    वाह क्या बात है सटीक सार्थक चिंतन करता हुवा हर शेर है इस गज़ल का ... बहुत उम्दा ...

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  7. सोचने की बात है ! सुंदर अभिव्यक्ति !

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  8. दोस्ती के नाम पर जब विष घुले
    नष्ट हो जाती है तब आबादियाँ,

    सत्ता ने न समझी आह आक्रोश की
    स्वार्थ में जलने लगी चिंगारियाँ,

    सच्ची बात । सुंदर प्रस्तुति ।

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  9. दोस्ती के नाम पर जब विष घुले
    नष्ट हो जाती है तब आबादियाँ,...................दोस्त ही दोस्त को ना समझे तो क्या कह सकते हैं ..वक्त बदला...बदल गए दोस्ती के मायने भी

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  10. दोस्ती के नाम पर जब विष घुले
    नष्ट हो जाती है तब आबादियाँ,


    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....

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  11. लोग पल-पल में व्यथा कहने लगे
    तब उन्हें डसने लगी परछाइयाँ,
    ................बहुत सुंदर धीरेंद्र जी

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  12. यही हक़ीक़त है,यही जन-जन का अनुभव।

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  13. राष्‍ट्र एकता के सूत्र में बध जाए ..
    इससे अच्‍छी बात कया हो सकती है ?
    समग्र गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष

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  14. बहुत ही खुबसूरत और दिल को छु जाने वाले जज्बात.
    काश की हर भारतीय इसी तरह रास्ट्रीय एकता के बारे में सोचने लग जाये.उस दिन मेरा भारत साम्प्रदायिकता से पाक होकर अमन की पहचान बन जायेगा.


    मोहब्बत नामा
    मास्टर्स टेक टिप्स

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  15. आँधियाँ आयें, फिर आयें,
    हमें खंडहर से मकान बनाना आता है।

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  16. गहन बात करती गज़ल ...हर शेर अपने आप में मुकम्मल

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  17. चली देश में आँधियाँ, नंगेपन की होड़।
    मिटी पुरानी सभ्यता, नयी रही है दौड़।।

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  18. फूल काटों की चुभन जब सह गया
    स्नेह से खिलने लगी फुलवारियाँ,
    अतिसुन्दर अतिसुन्दर ,वाह ,वाह वाह जितनी भी तारीफ करूँ इन पंक्तियों की वो भी कम है आज कल व्यस्तता के चलते दोस्तों के ब्लोग्स पर जाना कम हो गया था

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  19. वाह बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
    (अरुन शर्मा = arunsblog.in)

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  20. अच्छी प्रस्तुति भाई साहब ..कृपया यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhai
    शुक्रवार, 20 जुलाई 2012
    क्या फर्क है खाद्य को इस्ट्यु ,पोच और ग्रिल करने में ?
    क्या फर्क है खाद्य को इस्ट्यु ,पोच और ग्रिल करने में ?


    कौन सा तरीका सेहत के हिसाब से उत्तम है ?
    http://veerubhai1947.blogspot.de/
    जिसने लास वेगास नहीं देखा
    जिसने लास वेगास नहीं देखा

    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/

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  21. दोस्ती के नाम पर जब विष घुले
    नष्ट हो जाती है तब आबादियाँ,
    - सच्ची बात !

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  22. बहुत अच्छे धीरेन्द्र जी .... सुन्दर..... बिना रदीफ की मुकफ्फा गज़ल...वाह...

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  23. दोस्ती के नाम पर जब विष घुले
    नष्ट हो जाती है तब आबादियाँ,

    सत्ता ने न समझी आह आक्रोश की
    स्वार्थ में जलने लगी चिंगारियाँ,

    फूल काटों की चुभन जब सह गया
    स्नेह से खिलने लगी फुलवारियाँ,

    मन की गहराई को छूती ग़ज़ल देश प्रेम का सन्देश देती

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  24. लोग कीचड फेकने आते सामने
    मौन होती है सब किलकारियाँ,

    बहुत अच्छी पंक्तियाँ ...

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आपकी टिप्पणियाँ मेरे लिए अनमोल है...अगर आप टिप्पणी देगे,तो निश्चित रूप से आपके पोस्ट पर आकर जबाब दूगाँ,,,,आभार,