
जख्म
जब तेरी याद आई आँखों में आँसू आ गये,
तुम्हारी खातिर हँसते-हँसते जख्म खा गये!
न दिन को चैन रहा न रात को नीद आई,
जिसके लिए जंग छेडा वो गैरों को भा गई!
एक इन्तजार था कि कभी तुझे घर लायेगें,
कल्पना न की थी कभी ऐसा जख्म पायेगें!
बेवफा, देखना एक दिन हम जरूर याद आयेगें,
ये झूठ,फरेब,के आँसू हम छुपा के मुस्कुरायेगें!
dheerendra bhadauriya,,,
जब तेरी याद आई आँखों में आँसू आ गये,
तुम्हारी खातिर हँसते-हँसते जख्म खा गये!
न दिन को चैन रहा न रात को नीद आई,
जिसके लिए जंग छेडा वो गैरों को भा गई!
एक इन्तजार था कि कभी तुझे घर लायेगें,
कल्पना न की थी कभी ऐसा जख्म पायेगें!
बेवफा, देखना एक दिन हम जरूर याद आयेगें,
ये झूठ,फरेब,के आँसू हम छुपा के मुस्कुरायेगें!
dheerendra bhadauriya,,,