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शनिवार, 25 अगस्त 2012

जख्म,,,


जख्म

जब तेरी याद आई आँखों में आँसू आ गये,
तुम्हारी खातिर हँसते-हँसते जख्म खा गये!

न दिन को चैन रहा न रात को नीद आई,
जिसके लिए जंग छेडा वो गैरों को भा गई!

एक इन्तजार था कि कभी तुझे घर लायेगें,
कल्पना न की थी कभी ऐसा जख्म पायेगें!

बेवफा, देखना एक दिन हम जरूर याद आयेगें,
ये झूठ,फरेब,के आँसू हम छुपा के मुस्कुरायेगें!

dheerendra bhadauriya,,,