रविवार, 27 अप्रैल 2014

अनाडी बन के आता है

 
अनाडी बन के आता है
 
 अनाडी  बन के  आता है, खिलाड़ी  बन  के  जाता है 
  लगे  जो  दाग  दामन  में, उन्हें  सब  से  छुपाता  है,

अगर  इंसान  ये  होता , कभी  का  मर  गया  होता
  फकत दो वक्त की रोटी में,ये क्या-क्या मिलाता है,

मेरा  हमर्दद  बन  करके , मेरे  ही  आँख  का  आंसू
  चुरा   करके   उन्हें   बाजार  में , ये   बेच   आता  है,

कभी  उम्मीद  बन  जाता,कभी  संगीन  बन  जाता
  मेरी   ही  जेब  पर  हर  वक्त,  ये  पहरा  लगाता  है,

न  ये  जाने  न  मैं  जानूं , न  ये  माने  न  मैं  मानूं
  वही  किस्से  यहाँ  आकर,मुझे  हर  दिन  सुनाता है,

मैं अपनी  भूख  से  डरता  नहीं,बस  नींद  से  डरता
  मेरे  सपनों  में आ करके ,मेरी  कमियां  गिनाता है,

है  इसके  शब्द  में  जादू, ये  जादू  का  असर  यारा
  मेरे   ही   हाथ   से   ये  क़त्ल , मेरा   ही  कराता  है,

कहीं  पर आम  बन जाता, कहीं  पर ख़ास हो जाता
  सड़क  पर   हर   खड़ा   बंदा , इसे  नेता  बताता  है,

विक्रम सिंह ( केशवाही )शहडोल.म.प्र.
 

18 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना मंगलवार 29 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. सहमत ...
    रचना बहुतही सुंदर

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  3. जाने कैसे नेता हैं ये ... पर अपने बाखूबी लिखा है इनको ...

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  4. वाह क्या बात है ..बहुत सही लिखा..

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  5. शब्द व्यंजना बहुत खूब । भावों से असहमत।

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  6. कहीं पर आम बन जाता, कहीं पर ख़ास हो जाता
    सड़क पर हर खड़ा बंदा , इसे नेता बताता है,.. बहुत खूब!

    अभी तो आम का सीजन है कुछ दिन बाद खास वाले छा जायेगें .....

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  7. मेरा हमर्दद बन करके , मेरे ही आँख का आंसू
    चुरा करके उन्हें बाजार में , ये बेच आता है,
    बहुत सही लिखा है ।

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  8. बहुत सुन्दर रचना
    जहाँ जाता है वहीँ किसी से गाल पर थप्पड़ खाता है
    बिन मांगे बिन बात के कांग्रेस का समर्थन पाता है ..

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  9. क्या खूब लिखा है आपने
    जी बाबरो हो गयो है

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