मजबूरी गाती है.
पलकों पर आँसू की डोली सहज उठाती है ,
ऐसा भी होता है, तब जब मजबूरी गाती है |
छोटे कदम बड़ी मंजिल का पता बताते है ,
लेकिन छोटे को सुविधा -सम्पन्न दबाते है |
छोटी सी बाती में दुनिया आग लगाती है ,
पर यह छोटी बाती जग रौशन कर जाती है |
ऐसा भी होता है तब जब मजबूरी गाती है |
धरती पर पौधों की दुनिया कोई सजाता है,
पतझड़ को जा, झट कोई न्यौता दे आता है |
पवन बसन्ती भी मरुथल की कथा सुनाती है,
मन में पलती आशा-पथ में फूल बिछाती है |
ऐसा भी होता है तब जब मजबूरी गाती है |
खुशियाँ भी बात-बात पर गाल फुलाती है,
मगर जिन्दगी नहीं खीजती वह मुस्काती है |
लहर - भवँर फिर अहंकार का रौब जमाती है,
कागज़ की ही सही मगर कश्ती टकराती है |
ऐसा भी होता है तब जब मजबूरी गाती है |
मज़बूरी के गान पर, रखें सटीक विचार |
जवाब देंहटाएंतथ्य भाव उत्तम दिखे, धन्य धन्य आभार ||
उत्तम भावों की अति सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट भाव -मछलियाँ
new post हाइगा -जानवर
सुन्दर...बहुत सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधरती पर पौधों की दुनिया कोई सजाता है,
पतझड़ को जा, झट कोई न्यौता दे आता है |
यही प्रकृति है और मानव भी तो प्रकृति कृत ही है, साथ ही मानवों निज स्वार्थ से वशीभूत होकर बुराइयाँ जल्दी अंगीकार करता है ..
बहुत सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : रोग निवारण और संगीत
बहुत सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : रोग निवारण और संगीत
बहुत बढिया.....सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंखुशियाँ भी बात-बात पर गाल फुलाती है,
जवाब देंहटाएंमगर जिन्दगी नहीं खीजती वह मुस्काती है |
लहर - भवँर फिर अहंकार का रौब जमाती है,
कागज़ की ही सही मगर कश्ती टकराती है |
sabhi panktiya sundar bhaw sanjoye hue
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (13-12-13) को "मजबूरी गाती है" (चर्चा मंच : अंक-1460) पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना.......
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत रचना .....!!
जवाब देंहटाएंमजबूरी भी गाती है क्या हमने तो सुना था खुशियाँ ही गाती हैं..
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन संसद पर हमला, हम और ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंलाजवाब
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण ... मन को छूती हुई सरल, सहज रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंखुशियाँ भी बात-बात पर गाल फुलाती है,
जवाब देंहटाएंमगर जिन्दगी नहीं खीजती वह मुस्काती है |
लहर - भवँर फिर अहंकार का रौब जमाती है,
कागज़ की ही सही मगर कश्ती टकराती है |
अत्यंत भावपूर्ण ... मर्मस्पर्शी .....
sahi hai
जवाब देंहटाएंवाह! बढ़िया है..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपकी टिपण्णी के लिए।
जवाब देंहटाएंगा गाके जीवन के राग सुनाती है ,
मजबूरी खुलके गाती है। सुन्दर रचना।
बहुत सहज और खुबसूरत भाव ........
जवाब देंहटाएंलहर - भवँर फिर अहंकार का रौब जमाती है,
जवाब देंहटाएंकागज़ की ही सही मगर कश्ती टकराती है |
bhai bhadauriya ji vakai bahut behatareen rachana ka ap ne janm diya hai bahut bahut aabhar apka......sath hi badhai bhi .
खुशियां लाख गाल फुलाए , जिंदगी सदा मुस्काये
जवाब देंहटाएंमजबूरी गीत सुनाये :)
सुन्दर !
भावनाओं में पगा एक मधुर गीत!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत..आपकी कविता की हर पंक्ति एक मधुर साज गा रही है।।।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंमन में पलते आशा-पथ में फूल बिछाता सुन्दर गीत।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर लयबद्ध रचना ....आनंद आ गया
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत ही गहन और सुन्दर |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट भावाभिव्यक्ति, सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएं