एक जबाब माँगा था
मैंने तुमसे कब, प्यार का हिसाब माँगा था ,
सारे सवालों का, सिर्फ एक जबाब माँगा था i
जिन्दगी की एक तमन्ना तो पूरी की होती ,
दीदार माँगा था , कब ये नकाब माँगा था i
अपने हुजूर में, कुछ कहने की इजाजत दे दो ,
मैने कब तुमसे, शायरी का खिताब माँगा था i
अपने घने आँचल के साये में रहने दो मुझको ,
तुम्हारे रेशमी एहसास का माहताब माँगा था i
आँखों से वयां कुछ , होठों पर अनकहा कुछ ,
सिर्फ जिन्दगी की एक खुली किताब माँगा था i
क्या भला एक कतरे से कभी प्यास बुझती है ,
धीर ने तो बस तुमसे पूरा शबाब माँगा था i
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना...विजयदशमी की शुभकामनाएँ !!
जवाब देंहटाएंवाह, सुन्दर रचना, गहरी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर .......विजयदशमी की शुभकामनाएँ !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंविजयदशमी की शुभकामनाएँ
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (14-10-2013) विजयादशमी गुज़ारिश : चर्चामंच 1398 में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार ! शास्त्री जी ....!
हटाएंलाजवाब ग़ज़ल,बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंअभी अभी महिषासुर बध (भाग -१ )!
वाह...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल....
उम्दा शेर!!
सादर
अनु
बहुत सुंदर रचना,सादर.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (14.10.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की गयी है ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .
जवाब देंहटाएंआभार ! नीरज जी ...!
हटाएंवाह ! पुरज़ोर ख्वाइश की हसरतें .......
जवाब देंहटाएंवाह वाह - बहुत खूब
जवाब देंहटाएंwaah ..gazab ki prastuti .....
जवाब देंहटाएं.मैंने तुमसे कब, प्यार का हिसाब माँगा था ,
जवाब देंहटाएंसारे सवालों का, सिर्फ एक जबाब माँगा था i
ख्वाहिशें कब पूरी हुईं?
वाह!
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल
बहुत खूब ,ख़ास कर ये शेयर ,,,,,
जवाब देंहटाएंअपने हुजूर में, कुछ कहने की इजाजत दे दो ,
मैने कब तुमसे, शायरी का खिताब माँगा था i
बहुत सुंदर ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना !!
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर ,प्यार का अंकगणित अत्यंत जटिल है
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया.. हार्दिक शुभकामनाएँ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.. विजयादशमी की शुभकामनाएँ .
जवाब देंहटाएंbahut sundar abhivyakti
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही खूब।
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत सुंदर भाव भरे शब्द !
जवाब देंहटाएंन न करते सब मांग लिया.. बेहतरीन...बहुत खूब...
जवाब देंहटाएंलाजवाब भाव, बहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंवाह... लाज़वाब रचना … आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंअपने हुजूर में, कुछ कहने की इजाजत दे दो ,
जवाब देंहटाएंमैने कब तुमसे, शायरी का खिताब माँगा था i
बहुत खूब धीर साहब !सुभान!अल्लाह !
वाह धीर जी, आपने जो न मांगा वह तो मिल गया । बहुत प्यारी गज़ल।
जवाब देंहटाएंअपने हुजूर में, कुछ कहने की इजाजत दे दो ,
जवाब देंहटाएंमैने कब तुमसे, शायरी का खिताब माँगा था ..
बहुत खूब ..शायरी न चाहते हुए भी शायरी ... लाजवाब शेर है ...
ख़ूबसूरत प्रस्तुति.....लाजवाब शेर
जवाब देंहटाएंसुंदर गज़ल के लिये बधाइयाँ कबूल कीजिये..............
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंwah ! behtareen........
जवाब देंहटाएंमैंने तुमसे कब, प्यार का हिसाब माँगा था ,
जवाब देंहटाएंसारे सवालों का, सिर्फ एक जबाब माँगा था ।
क्या कहने !
प्रभावशाली रचना |
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना:- "झारखण्ड की सैर"
बहुत सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंbahut sundar gajal waah badhai aapko .
हटाएंसुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुती
जवाब देंहटाएंज़बरदस्त है धीरेन्द्र भाई
जवाब देंहटाएंबहुत मिस किया आपकी ग़ज़लों को धीरेन्द्र भाई!! परिस्थितियों ने दूरी बना दी है!!
जवाब देंहटाएंअपने घने आँचल के साये में रहने दो मुझको ,
जवाब देंहटाएंतुम्हारे रेशमी एहसास का माहताब माँगा था i
प्रेम का कोमल अहसास
बहुत सुंदर गजल
सादर
वाह ... बहुत ही बढिया ।
जवाब देंहटाएंअपने हुजूर में, कुछ कहने की इजाजत दे दो ,
जवाब देंहटाएंमैने कब तुमसे, शायरी का खिताब माँगा था i
वाह क्या बात है
मेरे ब्लॉग पर आप सभी का स्वागत है
http://iwillrocknow.blogspot.in/
बेहतरीन ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंआँखों से वयां कुछ , होठों पर अनकहा कुछ ,
सिर्फ जिन्दगी की एक खुली किताब माँगा था i
अपने हुजूर में, कुछ कहने की इजाजत दे दो ,
जवाब देंहटाएंमैने कब तुमसे, शायरी का खिताब माँगा था
वाह ! बहुत खूबसूरत , लाजवाब !