नीयत बदल गई
क्या बर्फ थी ज़रा सी आँच में पिघल गई
मौक़ा मिला तो आपकी नीयत बदल गई,
मौक़ा मिला तो आपकी नीयत बदल गई,
हाँ में हाँ मिलाने में क्यूं सब लगे हुये
लगता है अक्ल घूमने इनकी निकल गई,
जुल्म देख पूरी पीढी ने ये क्या किया
ये कडवी दवा की तरह पल में निकल गई,
बरसात के लिए जो की खुदा की इबादत
बरसात आई वो भी बाद में बदल गई,
इतना सरल नही धीर उस पतंग को पाना
जों डोर तुम्हारे हाथ से आकर फिसल गई,
धीरेन्द्र सिंह भदौरिया,"धीर"
सुन्दर प्रस्तुति -
जवाब देंहटाएंआभार आपका-
bahut sundar prastuti .......pahale 2 sher pasand aaye
हटाएंसुंदर सृजन , आभार ,
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारे
रिश्तों का खोखलापन
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_8.html
सुन्दर प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदरअभिव्यक्ति ...!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया अर्थपूर्ण ग़ज़ल....
जवाब देंहटाएंबरसात के लिए जो की खुदा की इबादत
बरसात आई वो भी "बाद" में बदल गई, (टंकण त्रुटी है, बाढ़ कर लीजिये.)
सादर
अनु
'बरसात के लिए जो की खुदा की इबादत....'
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !
इतना सरल नही धीर उस पतंग को पाना
जवाब देंहटाएंजों डोर तुम्हारे हाथ से आकर फिसल गई,
वाह वाह, लाजवाब गजल.
रामराम.
इतना सरल नही धीर उस पतंग को पाना
जवाब देंहटाएंजों डोर तुम्हारे हाथ से आकर फिसल गई,
... सार्थक प्रस्तुति..
सुन्दर अभिव्यक्ति, वाह..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसादर
बेहतरीन प्रस्तुति ,अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंआखिरी वाला बढ़िया लगा.......
जवाब देंहटाएंsundar prastuti
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंआशा
बरसात के लिए जो की खुदा की इबादत
जवाब देंहटाएंबरसात आई वो भी बाद में बदल गई,
वाह बहुत सुन्दर ...
बहुत सुन्दर भावमयी रचना...वाह बहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 11/07/2013 के चर्चा मंच पर है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
आभार ,,,दिलबाग जी,
हटाएंRECENT POST ....नीयत बदल गई.
शानदार प्रस्तुती
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुती
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुंदर कृति ...... या कहे काव्य
जवाब देंहटाएंइतना सरल नही धीर उस पतंग को पाना
जवाब देंहटाएंजों डोर तुम्हारे हाथ से आकर फिसल गई,
बेहतरीन रचना (जो ,पीढी ,कड़वी )
क्या बात धीरेन्द्र जी, बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंमजा आ जाता है आपको पढ़ते हुए..
कांग्रेस के एक मुख्यमंत्री असली चेहरा : पढिए रोजनामचा
http://dailyreportsonline.blogspot.in/2013/07/like.html#comment-form
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंखूबसूरत गज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना, लाजवाब!
जवाब देंहटाएंइतना सरल नही धीर उस पतंग को पाना
जवाब देंहटाएंजों डोर तुम्हारे हाथ से आकर फिसल गई,
आपने सौ टके की बात कह दी
kya baat hai bahut khoob..
जवाब देंहटाएंइतना सरल नही धीर उस पतंग को पाना
जवाब देंहटाएंजों डोर तुम्हारे हाथ से आकर फिसल गई,
..बहुत खूब...लुटेरों भतेरे जो हैं...
वाह ! बहुत भावभीनी पंक्तियाँ..आभार !
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंवाह . बहुत उम्दा
बह्हुत ही अच्छे शेरों से सजी गज़ल ..
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना...कुछ छंद तो काफी अच्छे हैं।।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंहाँ में हाँ मिलाने में क्यूं सब लगे हुये
लगता है अक्ल घूमने इनकी निकल गई,
-खूब परखा है आपने!
इतना सरल नही धीर उस पतंग को पाना
जवाब देंहटाएंजों डोर तुम्हारे हाथ से आकर फिसल गई,
... सार्थक प्रस्तुति..
यहाँ भी पधारे ,
राज चौहान
क्योंकि सपना है अभी भी
http://rajkumarchuhan.blogspot.in
वाह बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अशआर ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएं:-)
bahut badhiya prastuti
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंlatest post केदारनाथ में प्रलय (२)
इतना सरल नही धीर उस पतंग को पाना
जवाब देंहटाएंजों डोर तुम्हारे हाथ से आकर फिसल गई,
वाह..बहुत खूबसूरत गजल
बिम्ब और अर्थ भावोद्गार में अप्रतिम रचना .शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .ॐ शान्ति .
जवाब देंहटाएंइतना सरल नही धीर उस पतंग को पाना
जवाब देंहटाएंजों डोर तुम्हारे हाथ से आकर फिसल गई,
सार्थक रचना
बहुत खूब .
जवाब देंहटाएंहाँ में हाँ मिलाने में क्यूं सब लगे हुये
लगता है अक्ल घूमने इनकी निकल गई,
इतना सरल नही धीर उस पतंग को पाना
जवाब देंहटाएंजों डोर तुम्हारे हाथ से आकर फिसल गई,
बहुत खूब, लाजवाब
अच्छे शेर
जवाब देंहटाएंसभी बढ़िया शेर ..... अंतिम खासकर बहुत ही अच्छा लगा .
जवाब देंहटाएंतीसरे चौथे शेर में 'निकल=निगल' 'बाद=बाढ़' टंकण की गलती हुई है कृपया उसे सही कर लें .
सादर शुभ-कामनायें
इतना सरल नही धीर उस पतंग को पाना
जवाब देंहटाएंजों डोर तुम्हारे हाथ में आकर फिसल गई ।
बहुत खूब धीर जी । बहुत प्यारी गज़ल ।
वाह क्या बात है---------
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गजल
बहुत खूब
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
बहुत सुंदरअभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना ....
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति :)
जवाब देंहटाएंइतना सरल नही धीर उस पतंग को पाना
जवाब देंहटाएंजों डोर तुम्हारे हाथ से आकर फिसल गई,
वाह वाह !!! क्या बात है,बहुत ही सुंदर गजल...