एक दिन
बन गई उल्फत की इक उम्दा कहानी एक दिन
जब समंदर से मिला दरिया का पानी एक दिन
रात भर उड़ता रहा कैसे सुहाने लोक में
आह! क्या महकी थी खिलकर रातरानी एक दिन
आँख तो कहती रही इकरार है ,हाँ प्यार है
कान भी सुनते मगर ये सचबयानी एक दिन
देर तक कमरे में परचित गंध का अहसास था
मिलगई बक्से में जब उनकी निशानी एक दिन
आ गया हूँ आज मै उनकी गली में नागहाँ
हो गई ताजा सभी यादें पुरानी एक दिन
अशोक "अंजुम"
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .....!!
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की चर्चा कल रविवार, दिनांक 21/07/13 को ब्लॉग प्रसारण पर भी http://blogprasaran.blogspot.in/ कृपया पधारें । औरों को भी पढ़ें
जवाब देंहटाएंआभार ,,,आपका शालिनी जी,,,
हटाएंबहुत ही लाजवाब पोस्ट
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत ही लाजवाब पोस्ट
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज रविवार (21-07-2013) को चन्द्रमा सा रूप मेरा : चर्चामंच - 1313 पर "मयंक का कोना" में भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार ,,,शास्त्री जी,,
हटाएंबेहतरीन ग़ज़ल !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंदेर तक कमरे में परचित गंध का अहसास था
जवाब देंहटाएंमिलगई बक्से में जब उनकी निशानी एक दिन
आ गया हूँ आज मै उनकी गली में नागहाँ
हो गई ताजा सभी यादें पुरानी एक दिन
बहुत सुन्दर
वाह, बहुत खूब..
जवाब देंहटाएंआँख तो कहती रही इकरार है ,हाँ प्यार है
जवाब देंहटाएंकान भी सुनते मगर ये सचबयानी एक दिन ..
बहुत ही उम्दा ...लाजवाब गज़ल है अशोक अंजुम जी की ... गज़ब के शेर...
बहुत ही सुन्दर। लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंलौट आएँगी वो यादें थीं साथ मिलकर जो चलीं
लौट आएगा वो बचपन, वो जवानी एक दिन
कृप्या यहाँ http://rajeevranjangiri.blogspot.in/ भी पधारें।
बेहतरीन ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल
जवाब देंहटाएं.......सराहनीय प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंसुंदर बयानगी भावों की ...!!
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंआ गया हूँ आज मै उनकी गली में नागहाँ
हो गई ताजा सभी यादें पुरानी एक दिन
............बहुत सुन्दर
राज चौहान
http://rajkumarchuhan.blogspot.in
सुन्दर रचना।।
जवाब देंहटाएंनये लेख : आखिर किसने कराया कुतुबमीनार का निर्माण?
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंसाभार.....
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंlatest post क्या अर्पण करूँ !
latest post सुख -दुःख
खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंवाह: बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंरात भर उड़ता रहा कैसे सुहाने लोक में
जवाब देंहटाएंआह! क्या महकी थी खिलकर रातरानी एक दिन
बहुत प्यारी गज़ल ।
सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सशक्त गजल, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
देर तक कमरे में परचित गंध का अहसास था
जवाब देंहटाएंमिलगई बक्से में जब उनकी निशानी एक दिन
बहुत खूब !
वाह!!! बहुत खूब
जवाब देंहटाएंप्रेम रस में डूबी यादों के झारोंखों से झाँकती कविता...
शानदार
जवाब देंहटाएंआभार ,,,, ब्लॉग बुलेटिन में मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए,,,,,
जवाब देंहटाएंsundar abhivyakti ..
जवाब देंहटाएंदेर तक कमरे में परचित गंध का अहसास था
जवाब देंहटाएंमिलगई बक्से में जब उनकी निशानी एक दिन
bahut khoob
rachana
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंअशोक अंजुम जी की खूबसूरत गज़ल पढ़वाने का शुक्रिया
जवाब देंहटाएंदेर तक कमरे में परचित गंध का अहसास था
जवाब देंहटाएंमिलगई बक्से में जब उनकी निशानी एक दिन
....वाह! बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंखूबसूरत कविता है सर..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंखूबसूरत भाव लिए हुए गज़ल .....अशोक जी को शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंदेर तक कमरे में परचित गंध का अहसास था
जवाब देंहटाएंमिलगई बक्से में जब उनकी निशानी एक दिन
बधाई अंजुम जी को...और आपको भी...
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंअति उत्तम |
जवाब देंहटाएंबढ़िया अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुद सुंदर... :)
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खुबसूरत ग़ज़ल,,,
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल.साझा करने के लिए आभार,,,
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