शनिवार, 20 जुलाई 2013

एक दिन


एक दिन

बन गई उल्फत  की इक उम्दा  कहानी एक दिन
  जब समंदर से  मिला  दरिया का  पानी एक दिन
 

रात भर   उड़ता    रहा    कैसे   सुहाने   लोक   में
  आह! क्या महकी थी खिलकर रातरानी एक दिन  

आँख   तो   कहती  रही  इकरार   है ,हाँ  प्यार  है
 कान  भी  सुनते  मगर  ये  सचबयानी एक  दिन 

  देर तक कमरे  में  परचित  गंध  का अहसास था  
   मिलगई  बक्से में जब  उनकी निशानी एक दिन  
 

     आ  गया  हूँ  आज   मै  उनकी   गली  में  नागहाँ     
 हो  गई   ताजा   सभी   यादें   पुरानी   एक  दिन
 

अशोक "अंजुम" 

52 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की चर्चा कल रविवार, दिनांक 21/07/13 को ब्लॉग प्रसारण पर भी http://blogprasaran.blogspot.in/ कृपया पधारें । औरों को भी पढ़ें

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज रविवार (21-07-2013) को चन्द्रमा सा रूप मेरा : चर्चामंच - 1313 पर "मयंक का कोना" में भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  4. देर तक कमरे में परचित गंध का अहसास था
    मिलगई बक्से में जब उनकी निशानी एक दिन

    आ गया हूँ आज मै उनकी गली में नागहाँ
    हो गई ताजा सभी यादें पुरानी एक दिन

    बहुत सुन्दर

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  5. आँख तो कहती रही इकरार है ,हाँ प्यार है
    कान भी सुनते मगर ये सचबयानी एक दिन ..

    बहुत ही उम्दा ...लाजवाब गज़ल है अशोक अंजुम जी की ... गज़ब के शेर...

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  6. बहुत ही सुन्दर। लाजवाब ...

    लौट आएँगी वो यादें थीं साथ मिलकर जो चलीं
    लौट आएगा वो बचपन, वो जवानी एक दिन

    कृप्या यहाँ http://rajeevranjangiri.blogspot.in/ भी पधारें।

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  7. आ गया हूँ आज मै उनकी गली में नागहाँ
    हो गई ताजा सभी यादें पुरानी एक दिन

    ............बहुत सुन्दर


    राज चौहान
    http://rajkumarchuhan.blogspot.in

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  8. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....
    साभार.....

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  9. वाह: बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  10. रात भर उड़ता रहा कैसे सुहाने लोक में
    आह! क्या महकी थी खिलकर रातरानी एक दिन

    बहुत प्यारी गज़ल ।

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  11. बहुत ही सशक्त गजल, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  12. देर तक कमरे में परचित गंध का अहसास था
    मिलगई बक्से में जब उनकी निशानी एक दिन

    बहुत खूब !

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  13. वाह!!! बहुत खूब
    प्रेम रस में डूबी यादों के झारोंखों से झाँकती कविता...

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  14. आभार ,,,, ब्लॉग बुलेटिन में मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए,,,,,

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  15. देर तक कमरे में परचित गंध का अहसास था
    मिलगई बक्से में जब उनकी निशानी एक दिन
    bahut khoob
    rachana

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  16. अशोक अंजुम जी की खूबसूरत गज़ल पढ़वाने का शुक्रिया

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  17. देर तक कमरे में परचित गंध का अहसास था
    मिलगई बक्से में जब उनकी निशानी एक दिन

    ....वाह! बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...

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  18. खूबसूरत भाव लिए हुए गज़ल .....अशोक जी को शुभकामनाएँ

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  19. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  20. देर तक कमरे में परचित गंध का अहसास था
    मिलगई बक्से में जब उनकी निशानी एक दिन

    बधाई अंजुम जी को...और आपको भी...

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  21. वाह बहुत खुबसूरत ग़ज़ल,,,

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  22. बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल.साझा करने के लिए आभार,,,

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