रविवार, 9 जून 2013

मैनें अपने कल को देखा,

  मैनें अपने कल को देखा, 

 

मैनें  अपने   कल  को  देखा
उन्मादित सपनों के छल से
  आहत  था झुठलाये  सच से, 

तृष्णा   की  परछाई  से , उसको  मैने  लड़ते  देखा,

मैने  अपने कल  को देखा
वर्तमान  से जो कुछ पाया
 उससे  लगता था घबडाया,

बीते कल की ओर पलट कर,जाने की कोशिश में देखा,

मैने  अपने  कल  को  देखा
जीवन-मरण संधि रेखा पर
  राह  न पाये  खोज  यहाँ पर, 

उसको  अपनी  दुर्बलता पर , फूट-फूट  कर  रोते  देखा,

मैने  अपने  कल  को  देखा,

  
रचनाकार -विक्रम सिंह
 लिंक - vikram7:



52 टिप्‍पणियां:

  1. उसको अपनी दुर्बलता पर , फूट-फूट कर रोते देखा,
    बेबस और कर भी क्या सकता है
    सार्थक अभिव्यक्ति
    सादर

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  2. सार्थक...
    और बेहतरीन......


    सादर
    अनु

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  3. सार्थक और बेहतरीन अभिव्यक्ति,आभार.

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  4. sarthak satik aur samay ki shila pr jindgi ki tasbir ukerti sundar behatareen prastuti

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  5. अपने कल को कौन देख पाया है यहाँ....

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  6. बहुत सही कहा है, विक्रम सिंह जी को हार्दिक शुभकामनाएं, आपका आभार.

    रामराम.

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  7. sarthak abhivykti samay aur zindgi ki tasbhir pesh karti behatareen prastuti

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  8. बीते कल की सीख , आने वाले कल को सुधार सकती है।

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  9. जीवन-मरण संधि रेखा पर
    राह न पाये खोज यहाँ पर,

    उसको अपनी दुर्बलता पर , फूट-फूट कर रोते देखा,

    .....बहुत संवेदनशील रचना...भावों और शब्दों का लाज़वाब संयोजन...

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  10. प्रशंसनीय प्रस्तुति

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  11. प्रशंसनीय प्रस्तुति

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  12. सार्थक और बेहतरीन प्रस्तुति!!

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  13. सार्थक और बेहतरीन अभिव्यक्ति,आभार.

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  14. आपकी यह रचना कल मंगलवार (11-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  15. बहुत सुंदर
    अच्छा लगा
    उम्दा अभिव्यक्ति...

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  16. मैनें अपने कल को देखा
    उन्मादित सपनों के छल से
    आहत था झुठलाये सच से,

    तृष्णा की परछाई से , उसको मैने लड़ते देखा,
    vaah dheerendr ji .. bahut hi hridasparshi bhavon se yukt kavita !

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  17. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार (11-06-2013) के "चलता जब मैं थक जाता हुँ" (चर्चा मंच-अंकः1272) पर भी होगी!
    सादर...!
    शायद बहन राजेश कुमारी जी व्यस्त होंगी इसलिए मंगलवार की चर्चा मैंने ही लगाई है।
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  18. बहुत सुन्दर प्रस्तुति... विक्रम सिंह जी को हार्दिक शुभकामनाएं,...

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  19. आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार ११ /६ /१ ३ के विशेष चर्चा मंच में शाम को राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी वहां आपका स्वागत है

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  20. दुआ चंदन
    बस रहे पावन
    जहाँ भी रहे !

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  21. बहुत सुन्दर.बहुत बढ़िया लिखा है .शुभकामनायें आपको .

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  22. बेहतरीन शब्द और अभिव्यक्ति ...बधाई कवि को !!

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  23. मैनें अपने कल को देखा
    उन्मादित सपनों के छल से
    आहत था झुठलाये सच से,

    बहुत प्रभावशाली पंक्तियाँ..

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  24. वाह बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  25. वाह ... बहुत ही सटीक अभिव्यक्ति ... बीते हुए कल को देखना सुखद रहता है ...

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  26. बहुत सुन्दर मार्मिक अभिव्यक्ति

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  27. गहन ...बहुत गहन अभिव्यक्ति ....!!
    बधाई एवं शुभकामनायें .

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  28. कभी-कभी डराता है ये सोचना कि कल क्‍या होगा..

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  29. .बहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति आभार रुखसार-ए-सत्ता ने तुम्हें बीमार किया है . आप भी दें अपना मत सूरज पंचोली दंड के भागी .नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN क्या क़र्ज़ अदा कर पाओगे?

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  30. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...जय श्री राधे
    भ्रमर ५

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  31. भावनात्मक , संवेदनशील बहुत सुन्दर रचना |

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  32. सुंदर अनुभूति,बेहतरीन रचना
    बधाई

    आग्रह है- पापा ---------

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आपकी टिप्पणियाँ मेरे लिए अनमोल है...अगर आप टिप्पणी देगे,तो निश्चित रूप से आपके पोस्ट पर आकर जबाब दूगाँ,,,,आभार,