मैनें अपने कल को देखा,
मैनें अपने कल को देखा
उन्मादित सपनों के छल से
आहत था झुठलाये सच से,
तृष्णा की परछाई से , उसको मैने लड़ते देखा,
मैने अपने कल को देखा
वर्तमान से जो कुछ पाया
उससे लगता था घबडाया,
उससे लगता था घबडाया,
बीते कल की ओर पलट कर,जाने की कोशिश में देखा,
मैने अपने कल को देखा
जीवन-मरण संधि रेखा पर
राह न पाये खोज यहाँ पर,
उसको अपनी दुर्बलता पर , फूट-फूट कर रोते देखा,
उसको अपनी दुर्बलता पर , फूट-फूट कर रोते देखा,
जवाब देंहटाएंबेबस और कर भी क्या सकता है
सार्थक अभिव्यक्ति
सादर
सार्थक...
जवाब देंहटाएंऔर बेहतरीन......
सादर
अनु
सार्थक और बेहतरीन अभिव्यक्ति,आभार.
जवाब देंहटाएंsarthak satik aur samay ki shila pr jindgi ki tasbir ukerti sundar behatareen prastuti
जवाब देंहटाएंअपने कल को कौन देख पाया है यहाँ....
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा है, विक्रम सिंह जी को हार्दिक शुभकामनाएं, आपका आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बढ़िया
जवाब देंहटाएंsarthak abhivykti samay aur zindgi ki tasbhir pesh karti behatareen prastuti
जवाब देंहटाएंbebasi ki marmik abhivyakti ...
जवाब देंहटाएंविक्रम जी की सुंदर रचना ....
जवाब देंहटाएंबीते कल की सीख , आने वाले कल को सुधार सकती है।
जवाब देंहटाएंजीवन-मरण संधि रेखा पर
जवाब देंहटाएंराह न पाये खोज यहाँ पर,
उसको अपनी दुर्बलता पर , फूट-फूट कर रोते देखा,
.....बहुत संवेदनशील रचना...भावों और शब्दों का लाज़वाब संयोजन...
प्रशंसनीय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसार्थक और बेहतरीन प्रस्तुति!!
जवाब देंहटाएंउम्दा अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंसार्थक और बेहतरीन अभिव्यक्ति,आभार.
जवाब देंहटाएंआपकी यह रचना कल मंगलवार (11-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार,,,,अरुन जी ,,,,
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा
उम्दा अभिव्यक्ति...
मैनें अपने कल को देखा
जवाब देंहटाएंउन्मादित सपनों के छल से
आहत था झुठलाये सच से,
तृष्णा की परछाई से , उसको मैने लड़ते देखा,
vaah dheerendr ji .. bahut hi hridasparshi bhavon se yukt kavita !
सुंदर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार (11-06-2013) के "चलता जब मैं थक जाता हुँ" (चर्चा मंच-अंकः1272) पर भी होगी!
सादर...!
शायद बहन राजेश कुमारी जी व्यस्त होंगी इसलिए मंगलवार की चर्चा मैंने ही लगाई है।
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बहुत बहुत आभार,,,,शास्त्री जी,,,
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति... विक्रम सिंह जी को हार्दिक शुभकामनाएं,...
जवाब देंहटाएंआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार ११ /६ /१ ३ के विशेष चर्चा मंच में शाम को राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी वहां आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार,,,,राजेश कुमारी जी,,,
हटाएंदुआ चंदन
जवाब देंहटाएंबस रहे पावन
जहाँ भी रहे !
जवाब देंहटाएंसार्थक और बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
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बहुत सुन्दर.बहुत बढ़िया लिखा है .शुभकामनायें आपको .
जवाब देंहटाएंबेहतरीन शब्द और अभिव्यक्ति ...बधाई कवि को !!
जवाब देंहटाएंमैनें अपने कल को देखा
जवाब देंहटाएंउन्मादित सपनों के छल से
आहत था झुठलाये सच से,
बहुत प्रभावशाली पंक्तियाँ..
बेहतरीन अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंशानदार रचना
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंवाह ... बहुत ही सटीक अभिव्यक्ति ... बीते हुए कल को देखना सुखद रहता है ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर मार्मिक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंप्रशसनीय रचना। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंगहन ...बहुत गहन अभिव्यक्ति ....!!
जवाब देंहटाएंबधाई एवं शुभकामनायें .
कभी-कभी डराता है ये सोचना कि कल क्या होगा..
जवाब देंहटाएंbhawpurn prastuti..
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंऐसी बेबसी, क्या कहूं
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
.बहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति आभार रुखसार-ए-सत्ता ने तुम्हें बीमार किया है . आप भी दें अपना मत सूरज पंचोली दंड के भागी .नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN क्या क़र्ज़ अदा कर पाओगे?
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ...जय श्री राधे
जवाब देंहटाएंभ्रमर ५
बहुत सुन्दर !!
जवाब देंहटाएंभावनात्मक , संवेदनशील बहुत सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंसुंदर अनुभूति,बेहतरीन रचना
बधाई
आग्रह है- पापा ---------