मौंन बनी क्यूँ मुखरित श्वेता
क्षित की भी तुम सुन्दर-आभा
नील-गगन की हो परिभाषा
है पावक तुमसे ही शोभित
जल की हो तुम ही अभिलाषा
है समीर तुमसे ही चंचल, द्रुपद-सुता सी हो न श्वेता
महाशून्य से उद्दगम करती
दिग्ग-विहीन होकर हो बहती
सरिता महा-मौन की कैसी
हो अरूप रूपों को रचती
मौंन मुखर जीवन -छन्दो में, बस तुम ही होती हो श्वेता
इक कल को कल्पना बनाती
इक कल को जल्पना बनाती
वर्त्तमान भ्रम की परछाई
स्वप्न-छालित जागरण दिखाती
काल-प्रबल की हर स्वरूप की ,जननी क्या तुम हीं हो श्वेता
शब्द एक पर अर्थ कई है
डोर एक पर छोर नहीं है
जीवन मरण विलय कर जाते
रंग हीन के रंग कई है
हो अनंत का अंत समेटे, फिर भी अंत हीन हो श्वेता
है खुद से संलाप तुम्हारा
पंच-तत्व का गीत ये न्यारा
है अखंड आशेष प्रभा-मय
मौंन स्वयम्भू ब्रम्ह तुम्हारा
हो अद्रश्य में द्रश्य, द्रष्टि से फिर भी तुम ओझल हो श्वेता
रचना कार - विक्रम सिंह
लिंक -
वाह...
जवाब देंहटाएंमौंन मुखर जीवन -छन्दो में, बस तुम ही होती हो श्वेता...
बहुत सुन्दर रचना....
साझा करने का शुक्रिया...
सादर
अनु
आभार ,,,शशि पुरवार जी,,,
हटाएंसुन्दर रचना !!
जवाब देंहटाएंशब्द एक पर अर्थ कई है
जवाब देंहटाएंडोर एक पर छोर नहीं है
......... बहुत ही सुंदर भावभरी रचना !!!
सशक्त रचना..
जवाब देंहटाएंउत्प्रेरक रचना
जवाब देंहटाएंbahut sundar geet rachna hai! shabd shaily utkrisht hai.
जवाब देंहटाएंउम्दा अद्धभूत अभिव्यक्ति ..।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया .....।
सादर !!
बहुत सुन्दर....बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंपधारें "आँसुओं के मोती"
है खुद से संलाप तुम्हारा
जवाब देंहटाएंपंच-तत्व का गीत ये न्यारा
है अखंड आशेष प्रभा-मय
मौंन स्वयम्भू ब्रम्ह तुम्हारा
बहुत गहन अभिव्यक्ति...
बहुत सुंदर ....अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहै खुद से संलाप तुम्हारा
जवाब देंहटाएंपंच-तत्व का गीत ये न्यारा
है अखंड आशेष प्रभा-मय
मौंन स्वयम्भू ब्रम्ह तुम्हारा
हो अद्रश्य में द्रश्य, द्रष्टि से फिर भी तुम ओझल हो श्वेता-बहुत सुन्दर भाव !
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विक्रम जी की कविताएं अक्सर पढता हूं उनके ब्लॉग पर ..
जवाब देंहटाएंये रचना भी अनुपम भाव ओर शिल्प लिए प्रभावी रचना है ...
बहुत ही बेहतरीन रचना,विक्रम जी को आभार और आपको डबल आभार इतनी बेहतरीन रचना को शेयर करने के लिए.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना, अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर भावभरी रचना
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंगहन अनुभूति
सुंदर रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई
sundar rachna...
जवाब देंहटाएंसुंदर भावभरी रचना.अच्छी प्रस्तुति .बधाई .
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्द चयन |गहन भाव लिए अभिव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंहै खुद से संलाप तुम्हारा
जवाब देंहटाएंपंच-तत्व का गीत ये न्यारा
है अखंड आशेष प्रभा-मय
मौंन स्वयम्भू ब्रम्ह तुम्हारा
गहन भाव लिए अभिव्यक्ति |
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...।
जवाब देंहटाएंkya bat hai waaaaaaaaaah waaaaaah....behtrin
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर | आभार
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंशानदार रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ही मुखर और उत्प्रेरक कविता.
जवाब देंहटाएंरामराम.
मौन भी और मुखर भी ...क्या कहने!
जवाब देंहटाएंbhavpun rachna
जवाब देंहटाएंbhavpun rachna
जवाब देंहटाएंया कुंदेंदु,तुषार हार धवला !
जवाब देंहटाएंइस रचना को मैंने गाकर पढ़ा सर ,उम्दा रचना | इस रचना को हमसे शेयर करने के लिए धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंउज्जवल ...उत्कृष्ट ...बेहतरीन काव्य ...!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ....!!
बधाई .
बहुत सुन्दर रचना ....!!
जवाब देंहटाएंबधाई .
बहुत सुन्दर वाह!
जवाब देंहटाएंबढ़िया है आदरणीय -
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें-
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंआभार आपका
सुन्दर प्रस्तुति आभार।
जवाब देंहटाएंनये लेख : भारतीय रेलवे ने पूरे किये 160 वर्ष।
शब्द एक पर अर्थ कई है
जवाब देंहटाएंडोर एक पर छोर नहीं है
जीवन मरण विलय कर जाते
रंग हीन के रंग कई है
हो अनंत का अंत समेटे, फिर भी अंत हीन हो श्वेता
...बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
bahut hi utrisht rchna.
जवाब देंहटाएंvikram ji ka aabhaar.
sajha karne hetu dhnyvaad.
बहुत सुंदर प्रस्तुति ......
जवाब देंहटाएंइक कल को कल्पना बनाती
जवाब देंहटाएंइक कल को जल्पना बनाती
वर्त्तमान भ्रम की परछाई
स्वप्न-छालित जागरण दिखाती
क्या बात है धीरेन्द्र जी। बहुत बेहतरीन।
बेहतरीन प्रस्तुति साझा करने के लिए हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंहो अनंत का अंत समेटे, फिर भी अंत हीन हो श्वेता
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना....
साझा करने का आभार.
विक्रम जी कहते तो हैं कुछ खास नहीं !
जवाब देंहटाएंये तो बहुत ही खास है उम्दा है !
क्या आपने विक्रम जी अन्य रचनाओं का अवलोकन किया है,कृपया उनकी अन्य रचनाए पढ़े,फिर अवधारणा बनाए,,,,
हटाएंचिरोपरांत विक्रम सिंह को पढ़ने को मिला....अद्दभुत भाव शब्द, कथ्य ,व स्निग्धता लिए सृजन का उनवान ...हृदय ग्राही है | आप दोनों को बधाई .....
जवाब देंहटाएंअलंकारिक शब्द और चमत्कारिक भाव, वाह............
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचना पढवाई ....आभार
जवाब देंहटाएंबहुत खूब :)
जवाब देंहटाएंभाव अर्थ भाषिक सौन्दर्य और रूप रचाव लिए बढ़िया रचना पढ़वाई आपने भाई विक्रम की .शुक्रिया .
जवाब देंहटाएंजाने कितने रंग समेटे .इतनी सुंदर है ये रचना...
जवाब देंहटाएंसाझा करने के लिए धन्यवाद सर....
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंFor giving place to my poem in your blog i am grately thankfull to you.and i am also thank full to all the respective readers.
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