होली की हुडदंग काव्यान्जलि के संग
( भाग -२ )
अरुण कुमार निगम
(1)
रूपचंद्र शास्त्री जी
रूप चंद्र का नित बढ़े,खिल-खिल जाय सरोज
नित्य रचें कविता नई,विषय नया नित खोज
विषय नया नित खोज,मगर क्या थी लाचारी
विषय नया नित खोज,मगर क्या थी लाचारी
देखा था इक चित्र , बने थे सुन्दर नारी
होली में यह काम , हो न हो रहा इंद्र का
दिखी उर्वशी धरा , बदल कर रूप चंद्र का ||
(२)
रविकर जी
दाढ़ी को बढ़वाय के , फेंके कविता जाल
दाढ़ी को बढ़वाय के , फेंके कविता जाल
गब्बरसिंह ने ओढ़ ली,ज्यों ठाकुर की शाल
ज्यों ठाकुर की शाल, कँटीली हैं कुण्डलिया
श्लेष यमक अनुप्रास , छंद में लाते बढ़िया
ले शब्दों के रंग , सैकड़ों छबियाँ काढ़ी
ले शब्दों के रंग , सैकड़ों छबियाँ काढ़ी
रंग लगायें कहाँ , काट लीजे अब दाढ़ी ||
(3)
धीरेन्द्र भदौरिया
थोड़ा धीरज राखिये, आतुर व्याकुल धीर
एक माह पहले कहें , खेलें आज अबीर
खेलें आज अबीर , इसक की खेलें होली
भीगे साड़ी आज, कि भीगे लहँगा –चोली
नहीं खैर है आज,किसी ने भी मुँह मोड़ा
आतुर व्याकुल धीर, राखिये धीरज थोड़ा ||
आतुर व्याकुल धीर, राखिये धीरज थोड़ा ||
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट,विजय नगर,जबलपुर (मध्य प्रदेश)
शम्भूश्री अपार्टमेंट,विजय नगर,जबलपुर (मध्य प्रदेश)
(1)
होली के हुडदंग में , हुरियारों की जंग
मिल जाए जो सामने ,फेको उस पर रंग
फेको उस पर रंग ,भरे गुब्बारे मारो
सब घेरो चहुँ ओर ,पकड़ कर पानी डारो
मस्ती का उन्माद ,मित्र के संग ठिठोली
जोश जश्न उल्लास ,आया त्यौहार है होली!!
होली के हुडदंग में , हुरियारों की जंग
मिल जाए जो सामने ,फेको उस पर रंग
फेको उस पर रंग ,भरे गुब्बारे मारो
सब घेरो चहुँ ओर ,पकड़ कर पानी डारो
मस्ती का उन्माद ,मित्र के संग ठिठोली
जोश जश्न उल्लास ,आया त्यौहार है होली!!
(२)
आया होली का त्यौहार
सब मिलकर करे धमाल
सब मिलकर करे धमाल
मिल जुल कर जश्न मनाये
स्नेह के भजिये ,
तल कर खाए
रंगों से आँगन नहलाये
हुए मुखड़े पीले लाल .
स्नेह के भजिये ,
तल कर खाए
रंगों से आँगन नहलाये
हुए मुखड़े पीले लाल .
आया होली का त्यौहार .
स्नेही सभी संगी साथी
दूर देश की है पाती
सभी को जोड़ते
दिल के तार ,
सभी पर करो रंगों की बौझार
आया होली का त्यौहार .
स्नेही सभी संगी साथी
दूर देश की है पाती
सभी को जोड़ते
दिल के तार ,
सभी पर करो रंगों की बौझार
आया होली का त्यौहार .
बुरा न मानो होली है ,
भंग में पगी ठिठोली है
नहीं तो ,भैया
पड़ जाएगी मार ,
सब मिलकर करे धमाल .
अरे ..... आया होली का त्यौहार
शशि पुरवर =====================================
भंग में पगी ठिठोली है
नहीं तो ,भैया
पड़ जाएगी मार ,
सब मिलकर करे धमाल .
अरे ..... आया होली का त्यौहार
शशि पुरवर =====================================
सरिता भाटिया जी
चारो और रंग बिखेरे इंद्रधनुषी घटा छाई रे
सारे बच्चे शोर मचाएँ,आई रे होली आई रे!!
होली आई रे,संग फूलों की बहार लाई रे
उससे आज मिलने का यह एक बहाना है
रंगोली वाले कोई रंग मोहब्बत का देदे
हमें तो अपने सजना को रंगने जाना है
रंग गाढ़ा देना,तमाम उमर न उतर पाए
ऐसे रंग से आज सजना को सजाना है
रंग देना साँवरिया की सच्ची प्रीत सा
हमें मीरा राधा को लगाने जाना है
गिले शिकवे नफ़रत की होली जलाकर
मन प्यार स्नेह से भर कर लाना है
प्यार के रंगों की 'सरिता' यूँ बहाकर
इसको प्रेमसागर से आज मिलाना है
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मुमताज अहमद जी
(1)
मेरे ख़त को लेकर,सजनी के छत पर,
चले जाओ घर उनके,मेरे कबूतर
कहना न भाये फाग ,ना ही कोई रंग,
कुछ भी ना अच्छा लगे, बिना तुम्हारे संग !
रंग भंग ना भाए कबूतर,होरी नही सुहाय,
जाओ कहो,मेरे सजनी से,होली में आजाय !
चले जाओ घर उनके,मेरे कबूतर
कहना न भाये फाग ,ना ही कोई रंग,
कुछ भी ना अच्छा लगे, बिना तुम्हारे संग !
रंग भंग ना भाए कबूतर,होरी नही सुहाय,
जाओ कहो,मेरे सजनी से,होली में आजाय !
(२)
पिया तुम्हारा खत पढ़ा,मै कुछ ना लिख पाई,
बिरह में तेरे साजना,आँख मेरी भर आई !
जारे कारी बादरिया,लेजा मेरा सन्देश,
ना गुलाल ना होरी भाये पिया बसे परदेश!
रंग न मोका भाये बदरिया होरी नही सुहाय,
जाओ कहो मोरे सजना से,होली में आजाय !
बिरह में तेरे साजना,आँख मेरी भर आई !
जारे कारी बादरिया,लेजा मेरा सन्देश,
ना गुलाल ना होरी भाये पिया बसे परदेश!
रंग न मोका भाये बदरिया होरी नही सुहाय,
जाओ कहो मोरे सजना से,होली में आजाय !
मुमताज अहमद "अल्फाजं" वेंकटनगर ,अनुपपुर म.प्र.
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विभारानी श्रीवास्तव
होली की उमंग
ठंडाई संग भंग
मस्त चढ़े रंग
फाग तरंग
मिष्ट स्वाद के संग
सब बुढवा
करे तंग
समझे
अपने को
देवरवा मलंग.
होली की उमंग
ठंडाई संग भंग
मस्त चढ़े रंग
फाग तरंग
मिष्ट स्वाद के संग
सब बुढवा
करे तंग
समझे
अपने को
देवरवा मलंग.
हाइकू
(1)
आ होलाष्टक
हरकारा लगता
लाता है ख़ुशी
(1)
आ होलाष्टक
हरकारा लगता
लाता है ख़ुशी
(2)
रंग होली का
भीगा धरा बनाया
इन्द्रधनुष
रंग होली का
भीगा धरा बनाया
इन्द्रधनुष
(3)
भंग औ रंग
नाचे धरा -गगन
गोरी को लागे
भंग औ रंग
नाचे धरा -गगन
गोरी को लागे
(4)
कामदेव ने
मधुमास ले आये
तीर चलाये
कामदेव ने
मधुमास ले आये
तीर चलाये
(5)
श्री रूपा राधा
शरारत कान्हा का
रंग दे चुन्नी
श्री रूपा राधा
शरारत कान्हा का
रंग दे चुन्नी
(6)
देवर-भाभी
मिलकर रंगों की
होड़ लगाईं
देवर-भाभी
मिलकर रंगों की
होड़ लगाईं
(7)
बैर ना पालो
रंग में क्लेश घोलो
तनाव टालो !!
तनाव टालो !!
विभारानी श्रीवास्तव
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संजय भास्कर जी
धूम मची है चारो ओर
इस जग में क्योंकि आज होरी है
होरी है जी होरी है
रंग बिरंगी होरी है
रंग बिरंगे सजे है सभी
प्यार के रंगों में सभी
खूब उडाओ गुलाल
मिलकर सब
ढोल मंजीरा बजा कर
गाओ फाग
चारों और फैला दो
होरी का राग
सखा - सहेली बनाओ मिलकर होली
खेलो मिलकर सब प्यार की होली
वैर भाव को कोसो दूर रखो आज
गले लग सबके
बढाओ प्यार की मिठास ......!!!!
इस जग में क्योंकि आज होरी है
होरी है जी होरी है
रंग बिरंगी होरी है
रंग बिरंगे सजे है सभी
प्यार के रंगों में सभी
खूब उडाओ गुलाल
मिलकर सब
ढोल मंजीरा बजा कर
गाओ फाग
चारों और फैला दो
होरी का राग
सखा - सहेली बनाओ मिलकर होली
खेलो मिलकर सब प्यार की होली
वैर भाव को कोसो दूर रखो आज
गले लग सबके
बढाओ प्यार की मिठास ......!!!!
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रविकर जी
दोहे
रंग रँगीला दे जमा, रँगरसया रंगरूट |
रंग-महल रँगरेलियाँ, फगुहारा ले लूट ||
फ़गुआना फब फब्तियां, फन फ़नकार फनिंद |
रंग भंग भी ढंग से, नाचे गाये हिन्द ||
हुई लाल -पीली सखी, पी ली मीठी भांग |
अँगिया रँगिया रँग गया, रंगत में अंगांग ||
देख पनीले दृश्य को, छुपे शिशिर हेमंत ।
आँख गुलाबी दिख रही, पी ले तनि श्रीमंत ॥
तड़पत तनु तनि तरबतर, तरुनाई तति तर्क ।
लाल नैन बिन सैन के, अंग नोचते *कर्क॥*केकड़ा
रंग रँगीला दे जमा, रँगरसया रंगरूट |
रंग-महल रँगरेलियाँ, फगुहारा ले लूट ||
फ़गुआना फब फब्तियां, फन फ़नकार फनिंद |
रंग भंग भी ढंग से, नाचे गाये हिन्द ||
हुई लाल -पीली सखी, पी ली मीठी भांग |
अँगिया रँगिया रँग गया, रंगत में अंगांग ||
देख पनीले दृश्य को, छुपे शिशिर हेमंत ।
आँख गुलाबी दिख रही, पी ले तनि श्रीमंत ॥
तड़पत तनु तनि तरबतर, तरुनाई तति तर्क ।
लाल नैन बिन सैन के, अंग नोचते *कर्क॥*केकड़ा
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अरुन शर्मा जी
रंगों में कोई रंग नहीं, जो तुम फागुन में संग नहीं
लाली नहीं लाल गुलालों में, चढ़ती ठंडाई भंग नहीं.
कभी मिर्च नहीं कभी नमक नहीं,
चेहरे पर तुम बिन चमक नहीं,
बड़ी मुश्किल है परेशानी है,
रोटी जो गोल बनानी है,
मुझमें इतना भी ढंग नहीं, चढ़ती ठंडाई भंग नहीं.
रंगों में कोई रंग नहीं, जो तुम फागुन में संग नहीं
चीनी फीकी गुझिया तीखी,
नहीं चाय बनानी तक सीखी,
घर की हरियाली सूख गई,
ऐसे में मेरी भूख गई,
अब जीवन में हुड्दंग नहीं, चढ़ती ठंडाई भंग नहीं.
रंगों में कोई रंग नहीं, जो तुम फागुन में संग नहीं.
लाली नहीं लाल गुलालों में, चढ़ती ठंडाई भंग नहीं.
कभी मिर्च नहीं कभी नमक नहीं,
चेहरे पर तुम बिन चमक नहीं,
बड़ी मुश्किल है परेशानी है,
रोटी जो गोल बनानी है,
मुझमें इतना भी ढंग नहीं, चढ़ती ठंडाई भंग नहीं.
रंगों में कोई रंग नहीं, जो तुम फागुन में संग नहीं
चीनी फीकी गुझिया तीखी,
नहीं चाय बनानी तक सीखी,
घर की हरियाली सूख गई,
ऐसे में मेरी भूख गई,
अब जीवन में हुड्दंग नहीं, चढ़ती ठंडाई भंग नहीं.
रंगों में कोई रंग नहीं, जो तुम फागुन में संग नहीं.
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आप सभी मित्रो ने रचनाए भेज कर मुझे सहयोग देने के लिए बहुत २ आभार,धन्यवाद
प्रस्तुतकर्ता - धीरेन्द्र सिंह भदौरिया,
बेहतरीन संकलन
जवाब देंहटाएंsabhi rachnaye bahut sundar hai , badhai aapko ,
हटाएंshashi purwar
bahut khoob ,sundar rang sundar roop avm sabkuch sundar
जवाब देंहटाएंbahut khoob......
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत होली के रंग बढ़िया आयोजन बहुत ही सुन्दर....बहुत बहुत आभार और होली की ढेर सारी शुभकामनाएँ !!!!!
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक रचनाये पढने को मिली एक ही मंच पर सभी रचनकारों को हार्दिक बधाई !!
जवाब देंहटाएं@ संजय भास्कर
बहुत सुंदर संकलन बेहतरीन प्रयास मैं अपनी रचना भेजने से ना जाने कैसे चूक गई कई दिन से नेट भी परेशान कर रहा है हार्दिक बधाई आपको व सभी रचनाकारो को|
जवाब देंहटाएंवाकई में होली के सारे रंग दिखाई दे रहे हैं यहां....
जवाब देंहटाएंबहुत ही खास और सुन्दर हुडदंग है आदरणीय ऐसी हुडदंग तो होती रहनी चाहिए, कुछ अलग कार्य ही ह्रदय को प्रभावित करता है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूब!!! रंग जमा दिया :)
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार जमी ये होली की कवि गोष्ठी, एक ही मंच पर इतने सारे गुणीजनों की रचनाएं पढने को मिली, बहुत आभार आपका. होली की शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
रविकर sir ,निगम sir ,गुरु जी ,धिरेंधर जी ,अरुण ,संजय भास्कर जी विभा रानी जी अहमद जी एवं सभी रचनाकारों को ढेरों बधाई क्या सुंदर होली खेली है रंगीन रचनाओं ने समय बाँध दिया है ,मजा आ गया sir ,विशेषकर धिरेंधर sir जिनकी कोशिशों से यह मुमकिन हुआ हार्धिक बधाई जी
जवाब देंहटाएंबस अगर सबकी रचनाओं को कमेंट करने की अलग अलग सुविधा होती तो और भी बढ़िया रहता जी
वाह ! विविध रसीले रंग ..
जवाब देंहटाएंखुबसूरत संकलन सभी रचनाएँ काबिले तारीफ बधाई .....
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स ......
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट की चर्चा कल शनिवार (30-03-2013) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सादर...सूचनार्थँ!
शुक्रिया ,शास्त्री जी
हटाएंबहुत सुन्दर धीरेन्द्र जी .... मज़ा आ गया पढ़कर :)
जवाब देंहटाएंबहुत मेहनत से तैयार की गई पोस्ट ...बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचनायें।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंholi ke mahkte rangon se saji baht sunder post
जवाब देंहटाएंbadhai
rachana
bahuta umda...behtareen!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर । वाह वाह ।
जवाब देंहटाएं---दीवाली दीवाला कर गयी ,होली कर गयी होल ।
घरवाली ने जेबें फाड़ीं ,नोट टटोल ,टटोल ॥
नोट टटोल ,टटोल ,हाथ में कुछ ना आया ।
जगह नोट के ,कविता के नोटों को पाया ॥
कह कवि" ओ.पी .व्यास " मनी ऐंसे दीवाली ।
फूट गए सिर पैर ,हो गयी ,खूब दिवा ली ॥....डॉ .ओ.पी .व्यास गुना म .प्र .29/3/2013
Abhar...
हटाएंएक से बढ़कर एक
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुती
बहुत ही बेहतरीन रचनाएँ शानदार महफिल,आपको और सभी महानुभावों को सादर धन्यबाद.
जवाब देंहटाएंआदरणीय धीरेन्द्र जी मैं इस होली पर कई जगह घूमा लेकिन असली होली तो यहां खेली गई। इस सुन्दर संकलन के लिए आपका आभार!
जवाब देंहटाएंhttp://voice-brijesh.blogspot.com
wah wah wah bahut badhiya रंगोत्सत्व की हार्दिक शुभकामनायेँ hapPY holi ,,,,
जवाब देंहटाएंमेरा ठिकाना _>> वरुण की दुनियाँ
बढ़िया रचनाएँ है ... सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएंbadiya rachnaye...
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचनाएँ है ... सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचनाएँ धीरेन्द्र जी ,एक होली अंक का पुस्तक निकाल दीजिये .स्मरणीय होगा
latest post कोल्हू के बैल
latest post धर्म क्या है ?
बहुत बढ़िया संकलन ...आभार
जवाब देंहटाएंयह तो अनूठा कवि सम्मलेन जैसा ही हो गया.
जवाब देंहटाएंसभी कवियों की रचनाएँ एक से बढ़कर एक हैं.
आभार.
वाह जी वाह ... मस्त कवि सम्मलेन ...
जवाब देंहटाएंरस की धार बह रही है ...
जवाब देंहटाएंहुड़ दंग भाग दो होली में अरुण कुमार निगम छा गए ,मन भा गए ,फाग के सारे रंग लिए आ गए अपनी सांगीतिक व्यक्ति चित्रों में .बढ़िया बंदिश पढ़ वाई .
हुड़ दंग भाग दो होली में अरुण कुमार निगम छा गए ,मन भा गए ,फाग के सारे रंग लिए आ गए अपनी सांगीतिक व्यक्ति चित्रों में .बढ़िया बंदिश पढ़ वाई .
जवाब देंहटाएंशशिपुर्वर जी ,मुमताज़ अहमद भाई बढ़िया रंग लाये हैं होली के .
पिया तुम्हारा खत पढ़ा,मै कुछ ना लिख पाई,
बिरह में तेरे साजना,आँख मेरी भर आई !
जारे कारी बादरिया,लेजा मेरा सन्देश,
ना गुलाल ना होरी भाये पिया बसे परदेश!
रंग न मोका भाये बदरिया होरी नही सुहाय,
जाओ कहो मोरे सजना से,होली में आजाय !
एक ही जगह पर जमा हो गये एक से एक कवि ,
जवाब देंहटाएंकवि सम्मेलन बन गया आपका काव्यांजली।
वाकई रंग जम रहा है !
जवाब देंहटाएंवाकई रंग जम रहा है !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया हुडदंगी रचनाएँ ......बहुत सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंकवि -सम्मलेन सा समाँ बांध दिया आपने तो.....
साभार.....
बड़ी जबरदस्त प्रविष्टियां हैं। किसी के भी साथ पक्षपात बाक़ियों के साथ अन्याय होगा।
जवाब देंहटाएंहोली का हुडदंग रंग जमा गया. सारी प्रविष्टियाँ एक से बढ़कर एक. मज़ा आ गया.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंबहुत मजेदार हुड़दंग. सभी रचनाएं होली के रंग से सराबोर. बधाई.
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति।।। होली की बधाई...
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ बहुत सुन्दर... बढ़िया लिंक्स ....
जवाब देंहटाएंएक ही जगह सारा संग्रह मिला गया .. अच्छा संकलन .. कुछेक पढ़ी मैंने, अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंसादर शुभकामनाएं,
मधुरेश
बहुत ही बढ़िया ...जमा रहे रंग
जवाब देंहटाएंAre Wassssssh! Kab se iski taiyari kr rahe the bhaisss jaaan? Bhanak tak n lagne di aur ekdam se Hurdaasssng macha diya. ye bataaiya animation bhi sikha hai kyaaa? Bahuuuuuuuut Majedaaaaar badhai sir!
जवाब देंहटाएंआदरणीय धीरेंद्र जी, वार्षिक लेखाबंदी की व्यस्ततावश विलम्ब से टिप्पणियाँ प्रेषित कर रहा हूँ. बुरा न मानों होली है.....
जवाब देंहटाएंआदरेया शशि पुरवार जी की रचना को समर्पित.......
जवाब देंहटाएं“होली” हो ली प्रेम का , बना रहे उन्माद
वाणी में मिष्ठान्न-सा , रहे हमेशा स्वाद
रहे हमेशा स्वाद , साल भर जश्न मनायें
चटनी सी तकरार,स्नेह-भजिया तल खायें
किन्तु नीर के साथ न होवे हँसी-ठिठोली
पानी है अनमोल , बचा कर खेलें होली ||
आदरेया सरिता भाटिया जी की रचना को समर्पित.........
जवाब देंहटाएंमीरा राधा कृष्णमय , होता है मन आज
उठी पलक में मस्तियाँ,झुकी पलक में लाज
झुकी पलक में लाज,सजनवा से मिलवा दो
छूट सकें ना रंग , आज ऐसो मँगवा दो
प्रेम - राग गा फाग , बजाऊँ ढोल –मँजीरा
राधा कान्हा बनूँ , कभी बन जाऊँ मीरा ||
आदरणीय भाई मुमताज अहमद जी की दोनों रचनाओं को समर्पित.....
जवाब देंहटाएंजा जा सुवना खत लिये ,तू सजनी के पास
बतलाना उनको पिया , तुम बिन बहुत उदास
तुम बिन बहुत उदास,जलाए हिय जिय होली
रंग भंग बेरंग , न भाये हँसी – ठिठोली
खेलूँ किस के संग , जरा इतना समझा जा
तू सजनी के पास , लिए खत सुवना जा जा ||
सजनी का जवाब.......................
प्रिययम की चिठिया पढ़ी, मैं भी हुई उदास
इस होली में मिलन की, नहीं दीखती आस
नहीं दीखती आस , जमे तो तुम आ जाओ
बदरा कारे नैन , समाये इन्हें हटाओ
प्रेम - रंग भर आज, मुझे रँग डालो बालम
मैं भी आज उदास, पास आ जाओ प्रियतम ||
आदरणीय भाई रविकर जी के दोहों को समर्पित.........
जवाब देंहटाएंरविकर सातों रंग को, पीकर दिखते श्वेत
विश्लेषण कर सोचिये , देते क्या संकेत
देते क्या संकेत , एकता सिखलाते हैं
जीवन का क्या अर्थ, सभी को बतलाते हैं
गुणीजनों की बात , सदा होती श्रेयस्कर
पीकर दिखते श्वेत, सात रंगों को रविकर ||
ब्लॉग जगत के युवा कवि प्रिय अरुण शर्मा 'अनंत' जी की रचना को समर्पित............
जवाब देंहटाएंचढ़ती उमर उफान पर, विरह लगे नमकीन
रोटी चंदा - सी लगे , सुंदर और हसीन
सुंदर और हसीन , प्रेम – पिचकारी छूटे
सुन होली का नाम , हृदय में लड्डू फूटे
नये – नये इतिहास ,जवानी हरदम गढ़ती
विरह लगे नमकीन,उमर जब-जब है चढ़ती ||
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