( भाग-1 )
शालिनी रस्तोगी जी
होरी में धूम मचाये, नटखट नन्द किशोर !
वृन्दावन कि गलियन में, मचा रहा है शोर !!
वृन्दावन कि गलियन में, मचा रहा है शोर !!
मचा रहा है शोर , गोपियाँ भगती फिरतीं !
कान्हा ऐसो ढीठ, न कोई उनसे बचती !!
भीज गया सब अंग, भिगाई मोरी चोली !
रंग-गुलाल लेकर ,खेलत कान्हा होली !!
++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
+
अरुण कुमार निगम जी
(1)
बीबी के बिन आज तो,नहीं सुहाये फाग !
होली के बदले मुझे,आज लगा दो आग !!
आज लगा दो आग, मायके में जा बैठी !
कुछ दिन से नाराज,थी रहती ऐंठी ऐंठी !!
कब होवेगी दूर , प्रेम की हाय गरीबी !
होली का त्यौहार , मायके बैठी बीबी !!
(2)
होली का त्यौहार है , सैंया मोसे दूर !
करके दारू का नशा , रहते हरदम चूर !!
रहते हरदम चूर , छोड़ घर मैके आई !
रहते हरदम चूर , छोड़ घर मैके आई !
मगर समझते यहाँ ,मुझे तो सभी पराई !!
सुधरें साजन और ,सजा कर लायें डोली !
सुधरें साजन और ,सजा कर लायें डोली !
साथ मनायें हँसी,खुशी हम मिलके होली !!
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट,विजय नगर,जबलपुर म.प्र.
शम्भूश्री अपार्टमेंट,विजय नगर,जबलपुर म.प्र.
+++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
कालीपद "प्रसाद" जी
फागुन में होली का त्यौहार
लेकर आया रंगों का बहार
लड्डू ,बर्फी,हलुआ-पुड़ी का भरमार
तैयार भंग की ठंडाई घर घर।
पीकर भंग की ठंडाई
रंग खेलने चले दो भाई
साथ में है भाभी और घरवाली
और है साली ,आधी घरवाली।
भैया भाभी को प्रणाम कर
पहले भैया को रंगा फिर भाभी संग
पिचकारी मारना , गुलाल मलना
शुरू हुआ खूब हुडदंग।
घरवाली तो पीछे रही
पर आधी घरवाली बोली
"जीजा प्यारे ,साली मैं दूर से आई
छोडो आज घरवाली और भौजाई।
इस साल की रंगीन होली तो
केवल हम दोनों के लिए आई।
आज तुमपर मै रंग लगाउंगी
मौका है आज ,दो दो हाथ करुँगी
न रोकना ,न टोकना, मैं नहीं मानूँगी
आज तो केवल मैं अपना दिल की सुनूँगी।
तुम तो मेरा साथ देते रहना
कदम से कदम मिलाते रहना ,
मैं नाचूँगी , तुम नाचना .
हम नाचेंगे देखेगा ज़माना।"
रंग की बाल्टी साली पर कर खाली
जीजा बोले "सब करूँगा जो तूम कहोगी
आर तुम तो अभी कच्ची कली हो
शबाबे हुश्न को जरा खिलने दो
खिलकर फुल पहले महकने दो
महक तुम्हारे नव यौवन का
मेरे तन मन में समा जाने दो
तब तक तुम थोडा इन्तेजार करो।
वादा है ,अगली होली जमकर
केवल तुम से ही खेलूँगा।
यौवन का मय जितना पिलाओगी
जी भरकर सब पी जाऊँगा .
नाबालिग़ हो ,धैर्य धरो ,जिद छोड़ दो
खिले फूलों पर आज मुझको जी भर के मंडराने दो।"
साली बोली "तुम बड़े कूप मंडुप हो
भारत सरकार के नियम कानून से अनभिज्ञ हो
दो साल का छुट मिला है सहमति रसपान का
हिम्मत करो आगे बढ़ो , अब डर किस बात का ?
भौंरें तो कलियों पर मंडराते हैं ,मुरझाये फूलों पर नहीं
मधुरस तो कलियों में है ,मुरझाये फुलों में नहीं। "
कालीपद "प्रसाद "
+++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
रविकर जी
सवैया -(१ )
गोलक-गोल गुलाब गभीर गनीमत गोल नहीं लपके ।
गोलक-गोल गुलाब गभीर गनीमत गोल नहीं लपके ।
चोंच चकोर चरावर चार सुडौल कपोल नहीं मटके ।
नीति नई जब आय गई तब छोरन सांस लगे अटके ।
होलिक मौसम आय गवा चुपचाप बिता इनसे बचके |
(२)
झट झक्कड़ झोंक झड़ी झकझोर झई *झलकंठ समान लगे ।
कुछ देख सका नहीं सोच सका पल में वह आय हठात भगे ।
नयना मदहोश हुवे तुरतै, तन कम्पित हो मन मोर ठगे ।
दिख जाय पुन: इक बार तनी कवि विह्वल है दिन रात जगे |
(३)
(३)
छंद भरे छल-छंद लगे, छुप *छित्वर छीबर छेद करे |
आँखिन में मद मस्त भरे, पट में तन में नहिं भेद करे |
रंग लिए दुइ हाथन में मुख में मल के फिर खेद करे |
खेल पटेल करे बहु भाँति लड़े फिर मेल करे |*ढोंगी
(४)
(४)
मनसायन आयन मन्मथ भायन मानस वेग बढ़ा कसके |
रजनी सजनी मधुचन्द मिली, मकु खेल-कुलेल पड़ा लसके |
अब स्वप्न भरोस करे मनुवा पिय आय रहो हिय में बस के ।
खट राग लगे कुल रात जगे मन मौज करे रजके हँसके |
+++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
डा.निशा महाराणा
पिया बिन होली
पिया बिन होली
सौतन बन गई नौकरी
पिया जी घर नहीं आये
कैसे खेलूँ होली सखी री
रंग न मुझको भाये ....
कोयलिया तेरी कूक ने
हर लिया दिल का चैन
होली में पिया साथ नहीं हैं
बरसत हैं दोनों नैन ....
टेसू के फूलों जैसे
दहके अंग -प्रत्यंग
अबकी सजन तेरे बिना
होली है बेरंग .....
होली के हुडदंग में
स्वप्न हुए सिन्दूरी
सिसका मन, भटके नयन
कैसी ये मजबूरी .....?
फाल्गुनी बहार है
रंगों का उफान
पिया तुम्हारे साथ बिना
सभी हुए गुमनाम ......
रंगों की बौछार में
जले जियरा हमार
तुम बिन फीका हो गया
रंगों का त्यौहार ......
पिया जी घर नहीं आये
कैसे खेलूँ होली सखी री
रंग न मुझको भाये ....
कोयलिया तेरी कूक ने
हर लिया दिल का चैन
होली में पिया साथ नहीं हैं
बरसत हैं दोनों नैन ....
टेसू के फूलों जैसे
दहके अंग -प्रत्यंग
अबकी सजन तेरे बिना
होली है बेरंग .....
होली के हुडदंग में
स्वप्न हुए सिन्दूरी
सिसका मन, भटके नयन
कैसी ये मजबूरी .....?
फाल्गुनी बहार है
रंगों का उफान
पिया तुम्हारे साथ बिना
सभी हुए गुमनाम ......
रंगों की बौछार में
जले जियरा हमार
तुम बिन फीका हो गया
रंगों का त्यौहार ......
+++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
मदन मोहन सक्सेना जी
फागुन
फागुन
देखा जब नहीं उनको और हमने गीत नहीं गाया
जमाना हमसे ये बोला की फागुन क्यों नहीं आया
फागुन गुम हुआ कैसे ,क्या तुमको कुछ चला मालूम
कहा हमने ज़माने से की हमको कुछ नहीं मालूम
पाकर के जिसे दिल में ,हुए हम खुद से बेगाने
उनका पास न आना ,ये हमसे तुम जरा पुछो
बसेरा जिनकी सूरत का हमेशा आँख में रहता
उनका न नजर आना, ये हमसे तुम जरा पूछो
जीवितं है तो जीने का मजा सब लोग ले सकते
जीवितं रहके, मरने का मजा हमसे जरा पूछो
रोशन है जहाँ सारा मुहब्बत की बदौलत ही
अँधेरा दिन में दिख जाना ,ये हमसे तुम जरा पूछो
खुदा की बंदगी करके अपनी मन्नत पूरी सब करते
इबादत में सजा पाना, ये हमसे तुम जरा पूछो
तमन्ना सबकी रहती है, की जन्नत उनको मिल जाए
जन्नत रस ना आना ये हमसे तुम जरा पूछो
सांसों के जनाजें को, तो सबने जिंदगी जाना
दो पल की जिंदगी पाना, ये हमसे तुम जरा पूछो
जमाना हमसे ये बोला की फागुन क्यों नहीं आया
फागुन गुम हुआ कैसे ,क्या तुमको कुछ चला मालूम
कहा हमने ज़माने से की हमको कुछ नहीं मालूम
पाकर के जिसे दिल में ,हुए हम खुद से बेगाने
उनका पास न आना ,ये हमसे तुम जरा पुछो
बसेरा जिनकी सूरत का हमेशा आँख में रहता
उनका न नजर आना, ये हमसे तुम जरा पूछो
जीवितं है तो जीने का मजा सब लोग ले सकते
जीवितं रहके, मरने का मजा हमसे जरा पूछो
रोशन है जहाँ सारा मुहब्बत की बदौलत ही
अँधेरा दिन में दिख जाना ,ये हमसे तुम जरा पूछो
खुदा की बंदगी करके अपनी मन्नत पूरी सब करते
इबादत में सजा पाना, ये हमसे तुम जरा पूछो
तमन्ना सबकी रहती है, की जन्नत उनको मिल जाए
जन्नत रस ना आना ये हमसे तुम जरा पूछो
सांसों के जनाजें को, तो सबने जिंदगी जाना
दो पल की जिंदगी पाना, ये हमसे तुम जरा पूछो
मदन मोहन सक्सेना
+++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
अरुन शर्मा जी
यादों के झूलने पे हरपल झुलाया यारों,
होली पे दूरियों ने मुझको रुलाया यारों,
कुछ काम ना मिला जो फुर्सत के इन दिनों में,
सुबहा से शाम खुद को मैंने सुलाया यारों,
लाली गुलाल की तो भाई नहीं जरा भी,
अश्कों की धार से ही तन को धुलाया यारों,
बीबी के मायके में हुडदंग मच रहा था,
सब भंग के नशे में हमने भुलाया यारों,
गुझिया जँची न मेरे पकवान मन को भाये,
गुस्से से कुप्पे जैसा था मुँह फुलाया यारों.
होली पे दूरियों ने मुझको रुलाया यारों,
कुछ काम ना मिला जो फुर्सत के इन दिनों में,
सुबहा से शाम खुद को मैंने सुलाया यारों,
लाली गुलाल की तो भाई नहीं जरा भी,
अश्कों की धार से ही तन को धुलाया यारों,
बीबी के मायके में हुडदंग मच रहा था,
सब भंग के नशे में हमने भुलाया यारों,
गुझिया जँची न मेरे पकवान मन को भाये,
गुस्से से कुप्पे जैसा था मुँह फुलाया यारों.
+++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
मित्रों आपके द्वारा भेजी गई रचनाओं में से कुछ रचनाए प्रकाशित कर रहा हूँ पोस्ट बड़ी होने के कारण शेष रचनाए अगली पोस्ट में प्रकाशित करूगां,,,सहयोग के लिए धन्यवाद ,,,,
प्रस्तुतकर्ता.....धीरेन्द्र सिंह भदौरिया,
होली के अवसर पर यह कवि सम्मलेन तो बड़ा अच्छा रहा!
जवाब देंहटाएंbahut khoob dheerendra ji , sabhi rachnaye sundar haii holi ki shubhkamnaye aapko
हटाएंबढिया रहा होली का आयोजन!
जवाब देंहटाएंहोली के रसपान से दिल गद गद हो उठा | सभी को होली की बहुत बहुत बधाई |
जवाब देंहटाएंहोली की बहुत-बहुत शुभकामनायें और
जवाब देंहटाएंरंग-गुलाल संग नहीं भंग !!
होली की शुभकामना सहित शालिनी रस्तोगी जी, अरुण कुमार निगम, काली प्रसाद जी, रविकर जी, डॉ निशा महाराणा जी संग मदन मोहन सक्सेना, अरुण शर्मा की रचनाये बहुत खुबसूरत लगी . आप सबको बधाई .....
जवाब देंहटाएंहोली की बहुत-बहुत शुभकामनायें !!!!!
जवाब देंहटाएंH O L I ki HARDIK SHUBHKAMNAYE
जवाब देंहटाएंख्यात कवि रत्नों से मंच सजाया है, शालिनी रस्तोगी जी, अरुण कुमार निगम जी, कलिपद जी,आशुकवि रविकर जी, डॉ निशा महाराणा जी मदन मोहन सक्सेना जी, साथ अरुण शर्मा जी. सभी के वाणी-वर्ण से रंगों की अद्भुत छटा छायी है. सभी को होली की शुभकामनाएँ.......
जवाब देंहटाएंआपको भी इस रंगमय उत्साह पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
बहुत ही सुन्दर है होली का आयोजन,आप सभी की होली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया काव्य गोष्ठी .... होली की शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंरंगोत्सव अनेक रंगों में प्रखारित व आभामयी हो....बहुत -2 स्नेह व शुभकामनाएं .....
जवाब देंहटाएं****
मत घोल ऐसे रंग की बदरंग हो कायनात
ऐसी कोई शै नहीं, जिसे रब ने रंगा नहीं -
हुनरमंद वो है, जो रंगों को मिलाना जाने
रंगों से दूर रहो किसी किताब ने कहा नहीं -
- उदय वीर सिंह
बढिया रहा होली का कवि सम्मलेन. होली की शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबहुत ही मधुर रचनाओं से ओतप्रोत रही ये काव्य संगोष्ठी, होली की हार्दिक शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत बढ़िया ..... शुभ होली.....
जवाब देंहटाएंKhoobsurat rang bikherati rachnaen.
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ बहुत सुन्दर...होली की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंbahut accha laga holi vishesh ki rachnaaon ko padhkar ....thanks nd aabhar dhirendra jee ...
जवाब देंहटाएंसभी रचनाये बहुत बढ़िया हैं .. आप सभी को होली की शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंधीरेद्र सिंह जी बहुत बहुत बधाई ,आयोजन सफल रहा .होली की शुभकामनाएं
latest post धर्म क्या है ?
वाह ! एक से बढ़कर एक !
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ बहुत सुंदर...होली की अनंत शुभकामनाएँ !!
जवाब देंहटाएंसभी सुंदर रचनाओं के साथ बहुत बढ़िया आयोजन ....बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत रंग बिरंगा संकलन , लाजवाब
जवाब देंहटाएंहोली की शुभकनाओं सहित
Mahaphilo me vo, najar aane lage. ab phariste bhi, vaha jane lage. apane daman phir se ,sab ne rag liye. unake rag me,sab najar aane lage.
जवाब देंहटाएंKuchh kahe bin ,ab raha jata nahi. paththaro ka sath, bhi bhata nahi . apani aadat jo,badal sakate nahi. unake rag me,ham bhi,rag sakate nahi.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया काव्य गोष्ठी
जवाब देंहटाएंहोली की शुभकामनायें
सुन्दर संकलन ...
जवाब देंहटाएंहोली पर्व की शुभकामनाएँ...
:-)
होली का मज़ा हो गया दुगना ....बहुत बहुत आभार और होली की ढेर सारी शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक !
जवाब देंहटाएंकवी सम्मेलन शानदार रहा।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई अच्छा लगा यह आयोजन !
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक ! रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंवाह बेहद खूबसूरत होली के रंग लाल - हरा और नीला - पीला हर रंग कविताओं में है फैला बहुत सुन्दर कवितायेँ बहुत मज़ा आया |
जवाब देंहटाएंसभी रचनकारों को हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंहोली की शुभकामनाएँ...nice
जवाब देंहटाएंहोली का हुड़दंग हम देखा किये ,
जवाब देंहटाएंप्रेम निर्झर हर बरस देखा किये .
अच्छी रसधार, बहा दी होली में ,
काव्यांजलि पे, हंसी ठिठोली होली पे .
एक साथ इतने रचनाकारों का भिन्न-भिन्न होली वर्णन अत्यंत विहंगम लगा...होली की शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंखूब रंग जमाया आपने..
जवाब देंहटाएंवाह भाई जी क्या होली का रंग जमाया है
जवाब देंहटाएंसुंदर संयोजन सभी रचनाकारों को बधाई
आपका आभार
वाह जी वाह ! बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंहोली के सतरंगी रंगों से सजी सुन्दर काव्य रचनायें !!
जवाब देंहटाएंआभार !!
होली के मौके पर बहुत मनभावन प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंसुन्दर और रसमय आयोजन..
जवाब देंहटाएंवाह-बेहतरीन आयोजन!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति रही धीरेन्द्र जी ..होली का असली हुडदंग तो यहाँ मचा है !
जवाब देंहटाएंयहाँ तो होली ही होली बढ़िया होली !
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह ... मज़ा आ गया ...
जवाब देंहटाएंwah ek se badhkar ek rachnayen...
जवाब देंहटाएंप्रथम कुण्डलिया छ्न्द को समर्पित.......
जवाब देंहटाएंवृन्दावन के दृश्य का, सुंदर हुआ बखान
बच-बच भागें गोपियाँ, भीग रहे परिधान
भीग रहे परिधान , रंग कान्हा ने डाला
धूम मची हर ओर , ढीठ है मुरली वाला
होली का त्यौहार,लगे सबको मन-भावन
प्रेम रंग में डूब , गया सारा वृन्दावन ||
आदरणीय कालीपद "प्रसाद" जी की रचना को समर्पित....
जवाब देंहटाएंलड्डू हल्वा बर्फियाँ , ठंडाई और भांग
होली के त्यौहार में, भाँति-भाँति के स्वांग
भाँति-भाँति के स्वांग , सूरतें गोरी- काली
आँख तरेरे कहीं , देखती है घरवाली
साली भी है मस्त, देख जीजा का जल्वा
मतवाले पी भाँग , माँगते लड्डू – हल्वा ||
आदरणीय रविकर जी के अद्भुत सवैया छंदों को समर्पित...
जवाब देंहटाएंहोली के त्यौहार पर , रचे सवैया-छंद
शब्द चयन अद्भुत अहा, भाव भरे आनंद
भाव भरे आनंद , रंग बरसायें अक्षर
छुपे कहाँ हैं आज , सामने आयें रविकर
खेलें रंग—गुलाल , गटकें भांग की गोली
भूलें सब परहेज , मस्त हों खेलें होली ||
आदरेया डॉ. निशा महाराणा जी की उत्कृष्ट रचना को सादर समर्पित....
जवाब देंहटाएंनौकरिया सौतन भई , होली है बेरंग
कोयलिया क्यों कूक कर,करती मुझको तंग
करती मुझको तंग, न भाये टेसू मन को
नैना नीर बहाय ,तरसते पिय दरसन को
जियरा जर-जर जाय , बसे परदेस सँवरिया
होली है बेरंग , भई सौतन नौकरिया ||
आदरणीय मदन मोहन सक्सेना जी की रचना को सादर समर्पित.......
जवाब देंहटाएंफागुन गुमसुम गुम हुआ, तुम बिन सब बेनूर
होली का त्यौहार है , छोड़ो आज गुरूर
छोड़ो आज गुरूर , झूम कर खेलें होली
प्रेम - रंग में डूब , करें हम हँसी – ठिठोली
जीवन आज सजायँ , फूल चाहत के चुन-चुन
सिखलाने को प्यार , महीना आया फागुन ||
परम आदरणीय श्री अरुण शर्मा अनंत को सादर समर्पित.....
जवाब देंहटाएंबीबी बैठी मायके , गुझिया ना दे स्वाद
भंग गटकता रात-दिन, हो कर के आजाद
हो कर के आजाद , मनाता जी भर होली
मचा रहा हुड़दंग , लिये मित्रों की टोली
बड़े दिनों के बाद , मिले सब यार करीबी
किस्मत की है बात , मायके बैठी बीबी ||
श्री अरुण निगम जी रचना पर सादर समर्पित,,,,
जवाब देंहटाएंबीबी बैठी माइके ,होरी नही सुहाय
सजनी मोरे घर नही,रंग न मोको भाय
रंग न मोको भाय रूठ मइके में बैठी
होली में दिलवाव ,नहि तो रहेगी ऐठी
अरूण अब ले आव,बड़ी एल.ई.डी.टीबी
घर लौट आ जाये ,गई जो मइके बीबी,,,,