इधर- देखता हूँ उधर-देखता हूँ,
नजरे उठाकर जिधर देखता हूँ!
मेरा देश आजाद हो तो गया है,
गुलामी का अभी असर देखता हूँ!
पिताजी को डैडी, माँ को मम्मी,
इंग्लिश के आगे हिंदी निक्कमी
बहन पुकारा तो मुह तोप जैसा,
मैडम पुकारा चमत्कार है कैसा!
चेहरा खिलकर कमल देखता हूँ,,
केक काट कर जन्मदिन मनाते,
फूँक मारकर मोमबत्तियाँ बुझाते!
हवन - यज्ञ अपवाद अब हो रहे है,
संस्कार अपने ही हम खो रहे है!
घुला संस्कृति में जहर देखता हूँ,,
फैशन परेड और सौन्दर्य का मेला,
घूँघट की नारी को कहा जा धकेला!
नक़ल व् बनावट से बाजार ठगते,
सौन्दर्य के मेले भी बेमानी लगते!
लैला का होता जिकर देखता हूँ,,,
कुश्ती कबड्डी कहाँ खो गए है,
क्रिकेट में पागल सभी हो गए है!
हर गेंद पर सट्टा है लगता,
निकम्मे ठलुओं को ये खेल रमता!
बरपा है ,कैसा ये कहर देखता हूँ,
लोकगीत छोड़ म्यूजिक बजाते,
नया साल भी हम विदेशी मनाते!
फूहड़ और अश्लील ढंग से जीते,
नशे में हो धुत रम मस्ती में पीते!
पश्चमी नक़ल का असर देखता हूँ,,
सोने की चिड़िया हम ही को बताते,
गुरू विश्व का भी हम ही कहलाते!
मुझे शून्य की खोज पर भी नाज है,
सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत में आज है!
दुश्मनों की आज टेढी नजर देखता हूँ,,
विदेशी निवेशक बुलाये जा रहे है,
किसानो के हको को कब्जाये जा रहे है!
अयोध्या का मुद्दा भ्रष्टाचार का किस्सा,
सियासत नहीं यह गुलामी का हिस्सा!
बिना सर के जवानों का धड़ देखता हूँ,,
बहुत खूब... समसामयिक और दमदार।
जवाब देंहटाएंगुलामी कि सोच को इंगित करती एक सार्थक रचना !!
जवाब देंहटाएंसामयिक व बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसटीक, सामयिक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत सही बात कही है आपने .सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति करें अभिनन्दन आगे बढ़कर जब वह समक्ष उपस्थित हो .
जवाब देंहटाएंआप भी जाने कई ब्लोगर्स भी फंस सकते हैं मानहानि में .......
इधर- देखता हूँ उधर-देखता हूँ,
जवाब देंहटाएंनजरे उठाकर जिधर देखता हूँ!
मेरा देश आजाद हो तो गया है,
गुलामी का इसमे्ं असर देखता हूँ!
--
वास्तविकता से परिपूर्ण सुन्दर गीत!
हमेशा की तरह उम्दा प्रस्तुती !!
जवाब देंहटाएंछोड़ा है कुछ भी नहीं, सबको लिया लपेट |
जवाब देंहटाएंसंस्कार के गाल पर, पड़ते रहे चपेट |
पड़ते रहे चपेट, आज का नकली जीवन |
देखो राधा नाच, तेल बहता है नौ-मन |
परंपरा को तोड़, आधुनिकता तो जोड़ा |
लेकिन भौंड़ी नक़ल, कहीं का नैहै छोड़ा ||
आभार, रविकर जी,,,
हटाएंयह टीस हर सच्चे हिन्दुस्तानी के दिल में है.
जवाब देंहटाएंलेकिन लाचार हैं!
आपका कहना सही है ....गुलामी मनकी अभी भी बाकी है .....देश से जो निकाल दिया ...तो क्या गज़ब किया ...
जवाब देंहटाएंआदरणीय धीरेन्द्र सर सत्य का सुन्दर आईना दिखाया है आपने इस रचना में. हार्दिक बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंअंग्रेज चले गए ... हमारी मानसिकता को,समझ को गुलाम बनाकर
जवाब देंहटाएंवर्त्तमान स्थिति को आपने हुबहू आईने में उतार दिया -बहुत उम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआज की फैसन हो गयी है | इसे ही लोग आधुनिकता मानाने लगे है | आधुनिक बनाम दुराचार |बहुत सुन्दर |
जवाब देंहटाएंलोकगीत छोड़ म्यूजिक बजाते,
जवाब देंहटाएंनया साल भी हम विदेशी मनाते!
फूहड़ और अश्लील ढंग से जीते,
नशे में हो धुत रम मस्ती में पीते!
बहुत ही उम्दा प्रस्तुति ...
आधुनिकता मन के विचारों पर नहीं चढ़ी... उसके ग़लत इस्तेमाल का असर भी उल्टा ही होगा...
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
आज के हालातों पर कटाक्ष करती प्रभावशाली रचना..
जवाब देंहटाएंफैशन परेड और सौन्दर्य का मेला,
जवाब देंहटाएंघूँघट की नारी को कहा जा धकेला!
नक़ल व् बनावट से बाजार ठगते,
सौन्दर्य के मेले भी बेमानी लगते!
वाह क्या बात है ...बहुत सुन्दर और सटीक
विदेशी निवेशक बुलाये जा रहे है,
जवाब देंहटाएंकिसानो के हको को कब्जाये जा रहे है!
अयोध्या का मुद्दा भ्रष्टाचार का किस्सा,
सियासत नहीं यह गुलामी का हिस्सा!
बिना सर के जवानों का धड़ देखता हूँ,,
bahut hi umda prastuti bhaduria ji ......badhai sweekaren .
वाकई...हम सब के बीच गुलामी का असर साफ़ नज़र आ रहा है
जवाब देंहटाएंलाजबाब रचना
बहुत सुन्दर गीत .रूपकात्मक परिधान गीत का आकर्षक है मोहक है .शिंदे की नंगई खुली देखता हूँ ,मीरा का सिर अब झुका देखता हूँ .
जवाब देंहटाएंसच है ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
आधुनिक समाज पर करारा व्यंग्य। आभार।
जवाब देंहटाएंबुराइयों की जगह अच्छाइयों को अपनाएं तो गुलामी नहीं लगेगी।
जवाब देंहटाएंइधर- देखता हूँ उधर-देखता हूँ,
जवाब देंहटाएंनजरे उठाकर जिधर देखता हूँ!
मेरा देश आजाद हो तो गया है,
गुलामी का अभी असर देखता हूँ...बहुत खूब लिखा आपने
इधर- देखता हूँ उधर-देखता हूँ,
जवाब देंहटाएंनजरे उठाकर जिधर देखता हूँ!
मेरा देश आजाद हो तो गया है,
गुलामी का अभी असर देखता हूँ!
इधर -देखता हूँ उधर -देखता हूँ,
पिताजी को डैडी, माँ को मम्मी,
इंग्लिश के आगे हिंदी निक्कमी
बहन पुकारा तो मुह तोप जैसा,
मैडम पुकारा चमत्कार है कैसा!
आपके पोस्ट सत्यता से परिपूर्ण है। भावभिनी रचना
आपकी कविता गुलामी के असर को चित्रित करती है। बहुत सुंदर। मुझे प्रोत्साहित करने हेतु आपका आभार।
जवाब देंहटाएंगहरे उतरती पंक्तियाँ, स्तब्ध करतीं।
जवाब देंहटाएंआदरणीय धीरेन्द्र जी जबरदस्त समसामयिक कविता रची है आपने करारे कटाक्ष किये हैं आज की सभ्यता पर हार्दिक बधाई आपको
जवाब देंहटाएंयही है सांस्कृतिक प्रदूषण.पर घूँघट की नारी क्यों याद आ रही है आपको?
जवाब देंहटाएंसब कुछ बुरा नहीं है हाँ,अक्ल की बातें छोड़ करर नकल पर उतारू हो जाना गलत है.
पिताजी को डैडी, माँ को मम्मी,
जवाब देंहटाएंइंग्लिश के आगे हिंदी निक्कमी
बहन पुकारा तो मुह तोप जैसा,
मैडम पुकारा चमत्कार है कैसा!
सोने की चिड़िया हम ही को बताते,
गुरू विश्व का भी हम ही कहलाते!
मुझे शून्य की खोज पर भी नाज है,
सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत में आज है!
समसामयिक सत्य, करारा व्यंग्य ,गुलामी का असर साफ़ नज़र आ रहा है ,मीरा का सिर अब झुका देखता हूँ .(hindi me likhne ki jugat kar rahi hu,nahi dikh rahi hai apni bhasa ka khana,gr aap usko yaha jod de to,rahe muskil bahut aasan ho jayegi(please add)
जवाब देंहटाएंगहरे ज़ज्बात ..सुंदर लेखन !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें!
सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंक्या करें गलत नेत्रित्व मिले तो देश गलत रास्ते पर ही जाएगा !
जवाब देंहटाएंसटीक रचना
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
चेतन भगत और भैया जी
वास्तविकता की सुन्दर व्याख्या करती बहुत ही बेहतरीन रचना,सादर।
जवाब देंहटाएंसामयिक रचना
जवाब देंहटाएंsatya ko bayan karti sundar Abhivyakti...
जवाब देंहटाएंhttp://ehsaasmere.blogspot.in/2013/01/blog-post_26.html
करार व्यंग सार्थक रचना.
जवाब देंहटाएंआप सभी को गणतंत्र दिवस पर बधाइयाँ और शुभकामनायें.
सोने की चिड़िया हम ही को बताते,
जवाब देंहटाएंगुरू विश्व का भी हम ही कहलाते!
मुझे शून्य की खोज पर भी नाज है,
सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत में आज है!
सटीक ....
well written Dhirendra jee...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और विचारणीय रचना प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंगणतन्त्रदिवस की शुभकामनाएँ...!
अति उत्तम रचना है
जवाब देंहटाएंबधाई.
सटीक, सामयिक बहुत बढि़या अभिव्यक्ति ...आप को गणतंत्र दिवस पर बधाइयाँ और शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना.
जवाब देंहटाएंआप सभी को गणतंत्र दिवस पर बधाइयाँ और शुभकामनायें.
केक काट कर जन्मदिन मनाते,
जवाब देंहटाएंफूँक मारकर मोमबत्तियाँ बुझाते!
हवन - यज्ञ अपवाद अब हो रहे है,
संस्कार अपने ही हम खो रहे है!
घुला संस्कृति में जहर देखता हूँ,,
बहुत ही सही कहा है आपने ,,,,
सुन्दर ,,,,
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ !
सादर !
सार्थक अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की शुभकामनायें
बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंवस्तुस्थिति और कटु सत्य को व्यक्त करती दमदार रचना |
जवाब देंहटाएंकटु सत्य बयान करती उत्कृष्ट प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंआशा
सुन्दर और सटीक रचना..
जवाब देंहटाएंगुलामी के असर को चित्रित करती विचारणीय रचना,,,,,
जवाब देंहटाएं