बस्तर-बाला"
केश तुम्हारे घुंघराले , ज्यों केशकाल की घाटी
देह तुम्हारी ऐसे महके ,ज्यों बस्तर की माटी.
केश तुम्हारे घुंघराले , ज्यों केशकाल की घाटी
देह तुम्हारी ऐसे महके ,ज्यों बस्तर की माटी.
इन्द्रावती की कल-कल जैसी,चाल तुम्हारी रुमझुम
कोरंडम भी तरस रहा है ,बन जाने को कुमकुम.
गुस्सा इतना प्यारा कि जब भी भौंहें तन जाये
चित्रकोट के जल प्रपात पर,इन्द्र धनुष बन जाये.
तीरथगढ़ के झरने जैसा , काँधे पर है आँचल
वन में बहती पवन सरीखी,पग में रुनझुन पायल.
बारसूर में सात धार का जैसा सुन्दर संगम
कंठ तुम्हारे समा गई है , सात सुरों की सरगम.
गुफा कुटुम्बसर की गहरी ,रहस्यमयी हो जैसे
श्वेत श्याम रतनार दृगों की थाह मैं पाऊँ कैसे ?
रूठे तो भोपाल पट्टनम -सी , गरम बन जाती
प्यार करे;कांकेर की रातों -सी,शबनम बन जाती.
मुस्काए तो महुवारी में ,महुआ झरता जाए
और हँसे खुलकर तो कोयल , अमराई में गाए.
नारायणपुर की मड़ई,जगदलपुर की विजयादशमी
क्यों लगता है रूप तुम्हारा , जादू भरा, तिलस्मी ?
बस्तर का भोलापन प्रियतम!मुखपर सदा तुम्हारे
इसी सादगी पर मिट बैठे , अपना सब कुछ हारे.
चिकने-चिकने गाल तुम्हारे , ज्यों तेंदू के पत्ते
अधर रसीले लगते जैसे मधु मक्खी के छत्ते.
प्रश्न तुम्हारे चार-चिरौंजी , उत्तर खट्टी इमली
कोसा जैसी जिज्ञासाएं,कोमल और रूपहली.
कभी सुबह के सल्फी-रस सी, मीठी -मीठी बातें
और कभी संझा की ताड़ी , जैसी बहकी बातें.
पेज सरीखी शीतल , मीठी प्रेम सुधा बरसाओ
राधा बनकर तुम कान्हा के,जीवन में आ जाओ.
धमन भट्टियों में बिरहा की,जिस दिन गल जाओगी
उस दिन मेरे ही सांचे में, प्रियतम तुम ढल जाओगी .
-अरुण कुमार निगम
जगदलपुर ,बस्तर, के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन अरुण कुमार निगम जी ने
अपनी रचना "बस्तर-बाला"में बड़ी खूबसूरती से किया है,जो मुझे बहुत अच्छी
लगी,इसलिए इस रचना को आप लोगों के साथ साझा कर रहा हूँ आशा है कि
आप सभी को ये रचना पसंद आयेगी,,,
http://mithnigoth2.blogspot.in/2011/03/blog-post.html
अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com)
http://mithnigoth2.blogspot.in/2011/03/blog-post.html
अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com)
बहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया लगी ,...
जवाब देंहटाएंक्या बात
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
बहुत बढिया
sundar chitron se susajjit bhav vibhor karne vali prastuti
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लगी .......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना.....
जवाब देंहटाएंबस्तर में बिताये कुछ साल आज तक याद आते हैं...
इस कविता ने यादों को पंख दे दिए..
आभार
अनु
वाह भई निगम जी कहां कहां की सैर करा दी
जवाब देंहटाएंखनिज संपदा से निसृत सौन्दर्य की खान ही हैं बस्तर बालाएं .रूपकात्मक अभिव्यक्तिके शिखर छू लिए इस रचना ने इतनी गहरी पकड़ इन अंचल से जुड़े रूप लावण्य और कुदरती निसर्ग सौन्दर्य की
जवाब देंहटाएं.आभार भाई धीरेन्द्र जी जिन बस्तर दियो मिलाय .
बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति कलम आज भी उन्हीं की जय बोलेगी ...... आप भी जाने @ट्वीटर कमाल खान :अफज़ल गुरु के अपराध का दंड जानें .
जवाब देंहटाएंnice expression
जवाब देंहटाएंnigam ji ne to kamal kar diya hai itna sunder likha ki kya kahen man aanandit ho utha
जवाब देंहटाएंrachana
बस्तर की बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती,चित्रों का प्रदर्शन भी सुंदर है।इसके लिए निगम जी एव आपको धन्यबाद।
जवाब देंहटाएंअहा, बहुत ही सुन्दर और मधुर गीत
जवाब देंहटाएंइतनी प्यारी रचना और मनोहर दृश्य साझा करने के लिए बहुत बहुत आभार..वाकई अरुण कुमार जी की रचना अप्रतिम है ...!
जवाब देंहटाएंमुस्काए तो महुवारी में ,महुआ झरता जाए
जवाब देंहटाएंऔर हँसे खुलकर तो कोयल , अमराई में गाए... बहुत खूब
वाह वाह वाह इतनी वाह वाही देने को जी चाहता है कि जितनी मेरे पास भी नहीं है हर एक पंक्तियाँ का रसपान करके परम आनंद की प्राप्ति हो गई. आदरणीय गुरुदेव श्री अरुण सर को हार्दिक बधाई एवं आदरणीय श्री धीरेन्द्र सर इस रचना को साझा करने हेतु अनेक-अनेक धन्यवाद. सादर
जवाब देंहटाएंमस्त फोटो ओर तिलिस्मी शब्द ...
जवाब देंहटाएंअरुण जी की लेखनी के तो हम वैसे भी मुरीद है ... काव्य निर्झर बहता है उनकी कलम से ...
इसी सादगी पर मिट बैठे , अपना सब कुछ हारे.
जवाब देंहटाएं------------------------------------------
bahut sundar bhadauriya sahab...
अधर रसीले लगते जैसे मधु मक्खी के छत्ते....
जवाब देंहटाएंवा वाह .....
बहुत बढ़िया कथ्य-
जवाब देंहटाएंशानदार शिल्प-
आभार भाई धीरेन्द्र जी ||
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-01-2013) के चर्चा मंच-1130 (आप भी रस्मी टिप्पणी करते हैं...!) पर भी होगी!
सूचनार्थ... सादर!
आभार शास्त्री जी,,,,
हटाएंवाह ! इतनी खूबसूरती से बस्तर की सुंदरता का चित्रात्मक वर्णन करने के लिए अरुण जी को बहुत बहुत बधाई ! इसे पढ़वाने के लिए आपका आभार !
जवाब देंहटाएंअहा....बहुत प्यारे चित्र और पोस्ट।
जवाब देंहटाएंआपने तो प्रेयसी के गुणगान में पृकृति की सुरम्यता का जो बखान किया वो उम्दा है !!
जवाब देंहटाएंतीरथगढ़ के झरने जैसा , काँधे पर है आँचल
जवाब देंहटाएंवन में बहती पवन सरीखी,पग में रुनझुन पायल.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति... शुभकामनायें
बहुत ही सुन्दर वर्णन ,,,,,
जवाब देंहटाएंकाफी अच्छी लगी ,,,
आभार आपका !
बस्तर का भोलापन प्रियतम!मुखपर सदा तुम्हारे
जवाब देंहटाएंइसी सादगी पर मिट बैठे , अपना सब कुछ हारे.
सुन्दर प्रस्तुति साझा करने के लिए बहुत बहुत आभार....!!!!
बस्तर में बिताये हुए छ: महीने की अवधि मेरी स्मृति पटल पर ताजा हो गई . बहुत उम्दा सचित्र वर्णन .
जवाब देंहटाएंNew post : शहीद की मज़ार से
New post कुछ पता नहीं !!! (द्वितीय भाग )
काम में व्यस्तता के चलते ब्लॉग से दूर थी ...इसके लिए माफ़ी चाहती हूँ
जवाब देंहटाएंबस्तर पर लिखी गई एक सार्थक रचना ...यहाँ साँझा करने के लिए आभार
बहुत सुन्दर ये चित्र !!
जवाब देंहटाएंआपना आशीष दीजियेगा
Gift- Every Second of My life.
लाकर अपने ब्लॉग में , बहुत बढ़ाया मान
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत में हो गई , मेरी भी पहचान
मेरी भी पहचान , बहुत मैं हूँ आभारी
कविता के सँग खूब,जमी हैं छबियाँ प्यारी
करते रहें पवित्र , मेरी कुटिया को आकर
बहुत बढ़ाया मान , अपने ब्लॉग में लाकर ||
कविता सुन्दर आपकी,बेहतर किया बखान
हटाएंआपके कारण मेरी ,बढी ब्लॉग पहचान
बढी ब्लॉग पहचान ,आभारी हूँ आपका
मिलता रहे स्नेह,ब्लोगिंग जगत में सबका
मार्ग दर्शन मिले , बहे ज्ञान की सरिता
यूं ही लिखते जाय ,सुंदर सुन्दर कविता,,,,
धीरेंद्र सिंह भदौरिया,चिर-परिचित है नाम
जवाब देंहटाएंकृषकों के उत्थान का ,करते हैं शुभ काम
करते हैं शुभ काम ,किसानी भी हैं करते
ये हैं माटी- पुत्र , सभी के हृदय उतरते
काव्यांजलि में बाँट, रहे साहित का मेवा
उधर भूमि की करें इधर शारद की सेवा ||
आभारी हूँ अरुण जी ,दिया खूब सम्मान
हटाएंकृषि मेरी अजीविका,फिर लेखन पर ध्यान,,,,
सुन्दर चित्र के साथ बहुत सुन्दर वर्णन
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना।।।।।
:-)
गुस्सा इतना प्यारा कि जब भी भौंहें तन जाये
जवाब देंहटाएंचित्रकोट के जल प्रपात पर,इन्द्र धनुष बन जाये.
बहुत सुंदर प्रस्तुति. बधाई अरुण जी को और धीरेन्द्र जी आपको इसे हम तक पेश करने के लिये.
लाजबाब !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चित्रण + वर्णन !!
लाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंबारसूर में सात धार का जैसा सुन्दर संगम
जवाब देंहटाएंकंठ तुम्हारे समा गई है , सात सुरों की सरगम...
चित्र के साथ बहुत सुन्दर वर्णन .
बस्तर का अद्भुत मानवीकरण आहा मज़ा आ गया .
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत हैं सारी तस्वीरें और उनका वर्णन भी..आनंद आ गया
जवाब देंहटाएंwakayee, bahut sunder varnan hai......
जवाब देंहटाएंbahut badhiya prstuti chitron ke sath ........
जवाब देंहटाएंसुंदर वर्णन....
जवाब देंहटाएंसुंदर !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह ! चित्रों व शब्दों का शानदार संगम
जवाब देंहटाएंबस्तर, के प्राकृतिक सौन्दर्य का सुन्दर वर्णन....
जवाब देंहटाएंअधर रसीले लगते जैसे मधु मक्खी के छत्ते.---वा आआ आआअ आह......क्या बात है --
जवाब देंहटाएं---प्रकृति -श्रृंगार का अनुपम उदाहरण है यह रचना .....
आपकी ये रचना हिन्दी साहित्य के छायावादी युग की याद दिलाती है...बेहतरीन प्रस्तुति।।।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बहुत बढ़िया ..-प्रकृति का अनुपम उदाहरण
जवाब देंहटाएंआपकी यह रचना अच्छी लगी। मेरा हौसला बढ़ाने लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंधमन भट्टियों में बिरहा की,जिस दिन गल जाओगी
जवाब देंहटाएंउस दिन मेरे ही सांचे में ,प्रियतम तुम ढल जाओगी.... .-
प्रकृति -श्रृंगार का अनुपम...बेहतरीन प्रस्तुति।।।
चिकने-चिकने गाल तुम्हारे , ज्यों तेंदू के पत्ते
जवाब देंहटाएंअधर रसीले लगते जैसे मधु मक्खी के छत्ते.
...वाह! अद्भुत मनभावन प्रस्तुति...
अति सुन्दर चित्रमय कविता ,महुआ सी बस्तर बाला .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बहुत बढ़िया ..-प्रकृति का अनुपम उदाहरण
जवाब देंहटाएंSUNDAR
जवाब देंहटाएंwah, jitani sunder kawita utane sunder chitr
जवाब देंहटाएंArun jee kee lekhani ko dheeru ji ne kiya sachitr.
बहुत ही अच्छी लगी ..
जवाब देंहटाएं