कैसा,यह गणतंत्र हमारा
भ्रष्टाचार , भूख से हारा
वंसवाद का लिये सहारा
आरक्षण की बैसाखी पर,टिका हुआ यह तंत्र हमारा, भ्रष्टाचार , भूख से हारा
वंसवाद का लिये सहारा
कैसा,यह गणतंत्र हमारा
महंगाई ने पैर पसारा
वोटो को नोटों ने मारा
जाति-धर्म के नाग-पाश में,भ्रमित रहा मतदान हमारा,
कैसा यह गणतंत्र हमारा
संसद में लगता यह नारा
जन से है जनतंत्र हमारा
लोकपाल भी लोभपाल से ,आज वही पर देखो हारा,
कैसा,यह गणतंत्र हमारा,
विक्रम...................
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.....
सोचने को विवश करती सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंगणतन्त्रदिवस की बधाई हो!
कैसा यह गणतंत्र हमारा
जवाब देंहटाएंराजतन्त्र से भी गया-गुजरा .........
भारत का गणतंत्र अब विचार का विषय हो गया है,गण पर तंत्र भारी है,गण से तंत्र में गये टोपी वाले अपने ही मौज में है।
जवाब देंहटाएंआक्रोश-
जवाब देंहटाएंसटीक प्रस्तुति |
आभार भाई जी--
शुभकामनायें ||
विचार करें सब कि यह विकार आया क्यों..
जवाब देंहटाएंवर्तमान हालत पर चोट करती बढ़िया रचना
जवाब देंहटाएंकहानी एक राजपूतानी की.... ~ ज्ञान दर्पण : विविध विषयों का ब्लॉग
विचारणीय अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंसाझा करने का शुक्रिया.
सादर
अनु
प्रवीण जी ने सही बात कही...
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रविष्टि को आज दिनांक 28-01-2013 को चर्चामंच-1138 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
आभार ,,,,गाफिल साहब,,,,
हटाएंमहंगाई ने पैर पसारा
जवाब देंहटाएंवोटो को नोटों ने मारा
जाति-धर्म के नाग-पाश में,भ्रमित रहा मतदान हमारा,
बहुत सही ...सुन्दर रचना ..बधाई
कैसे कैसे लोग मूँग दल रहे हैं माँ की छाती पर ,
जवाब देंहटाएंअपना उल्लू साध रहे भाषा संस्कृति सब दाँव लगा कर !
स्वार्थ और संकीर्ण वृत्ति से जब पायेंगे हम छुटकारा ,
बोलेंगे तब ही जयकारा !
सुन्दर रचना | आभार |
जवाब देंहटाएंTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
जवाब देंहटाएंकैसा ये गण तंत्र हमारा ,
गण फिरता है तंत्र का मारा ,
पाजी कहलाते हैं सेकुलर ,
मंत्री तीर्थ बना है तिहाड़ा .(तिहाड़ जेल )
सुंदर रचना बधाई...
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर ,भावपूर्ण रचना ...
जवाब देंहटाएंजाति वाद को भुला कर हर भारतीय का कर्त्तव्य है की सही व्यक्ति को चुन कर संसद में लाये..आभार इस सुंदर प्रस्तुति के लिए..
जवाब देंहटाएंसुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसटीक आक्रोश.....
जवाब देंहटाएंसुधार की बहुत आवश्यकता है। हम और आप ही सुधारेंगे । शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंकैसा ये गण तंत्र हमारा ,
जवाब देंहटाएंगण फिरता है तंत्र का मारा ,
बहुत सुंदर। मेरा हौसला बढाने के लिए धन्यवाद।
बहुत बढ़िया ...बहुत सटीक विवरण ..बधाई
जवाब देंहटाएंवास्तविकता को उजागर करती रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया है कविता बिलकुल आज की देश की हालत पर. लेकिन क्या किया जाए इस पर चर्चा ज्यादा होनी चाहिए . बहुत हो गया चिल्लाना और चीखना . इसके बाद उस दिशा में कर्म करना जरूरी है . नहीं तो हम सब चीखते ही रहेंगे जंतर मंतर , इडिया गेट आदि. जगह पर.
जवाब देंहटाएंdhanyawad
गणतंत्र की जो भी खामिया है आपने बड़े सुन्दर ढंग से शब्दों बाँधा है -बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना
जवाब देंहटाएंआज के प्रशासनिक रवैये से आक्रोशित मन से निकले उद्दगार बहुत खूब बहुत अच्छा लिखा बधाई आपको
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपकी टिपण्णी का
आज के हालातों की सार्थक बानगी ...
जवाब देंहटाएंयथार्थ कहती सटीक रचना...
जवाब देंहटाएंसटीक अभिव्यक्ति...
बहुत ही शानदार और सराहनीय प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंबधाई
इंडिया दर्पण पर भी पधारेँ।
महंगाई ने पैर पसारा
जवाब देंहटाएंवोटो को नोटों ने माराnice
देश के गणतंत्र की हालत
जवाब देंहटाएंहै आपने सुघर उघारा
बहुत ही बढ़िया ......
अनेकानेक बधाई
बहुत बढ़िया ...सच्चाई का सटीक चित्रण...बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंसटीक प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंbadhai vikrm ji ko .....der se aane ka khed hai !
बेहद सुन्दर और भाव पूर्ण रचना सर हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंदेश के वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य के प्रति आम-जन के आक्रोश को सार्थक शब्द दिये हैं आपने -बधाई
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने हैं ? आप भी जाने इच्छा मृत्यु व् आत्महत्या :नियति व् मजबूरी
जवाब देंहटाएंधीरेन्द्र जी बहुत उम्दा लिखा है आपने और आप हमसे नाराज भी हैं पर नाराज न हों आप स्वयं देख सकते हैं कि लगभग एक महीने बाद हमने कोई पोस्ट डाली है मजबूरन सोमवार की चर्चा लगा पा रहा हूं किसी तरह... इधर कॉलेज काम से कुछ अतिरिक्त व्यस्तता आ गयी है उसके चलते...वैसे आपका नाराज होना लाजमी है पर हमें विश्वास है कि आपकी नाराज़गी ज़ल्द दूर कर दूंगा
जवाब देंहटाएंसटीक रचना...
जवाब देंहटाएंवर्तमान हालात का बहुत सटीक चित्रण...
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा,सुन्दर और भाव पूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंटूटता जाता है
जवाब देंहटाएंताना-बाना तंत्र का
तना हो जब गन
गण कहां गाता है
सही कहा आपने कैसा गणतंत्र हमारा .....इस गणतंत्र को तो हमारे देश के लालची नेता जो गए....
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति.....
आभार....
http://safarhainsuhana.blogspot.in/
रीतेश गुप्ता, आगरा
सुधार की बहुत आवश्यकता है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुबसूरत और सटीक कटाक्ष राष्ट्रीय पर्व के मर्म की कहानी आपकी जुबानी ...
जवाब देंहटाएंकुछ अपरिहार्य कारन वश कमेन्ट लिख नहीं पाया माफ़ी सहित . आप बड़े हैं और वैसे भी आपका दिल बड़ा है .जैसे आपकी हर रचनाएँ चाहे वो ग़ज़ल हों या गीत ...
मौजूदा हालत को बयाँ करती इक सशक्त रचना !
जवाब देंहटाएंसटीक कटाक्ष, शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंबहुत ही उत्क्रष्ट रचना
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंसच्चाई का सटीक चित्रण..,,,,,,
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