रूप संवारा नहीं,
कुहासों ने घूंघट उतारा नही है,
अभी मेरे प्रियतम का इशारा नहीं है!
कुहासों ने घूंघट उतारा नही है,
अभी मेरे प्रियतम का इशारा नहीं है!
किरणों का रथ लगता थम गया,
सूरज ने अभी पूरब निहारा नही है!
चारो दिशाओं में धुंधलके है फैले,
पूनम के चाँद को गंवारा नहीं है!
चाँदनी रातें फीकी सी लग रही,
मेरे प्रियतम ने दीप उजारा नही है!
हेमन्त जा रहा शिशिर आ रहा,
बसंत ने अभी रूप संवारा नहीं है!
OBO अंक - 26 में शामिल,
धीरेन्द्र सिंह भदौरिया,
चाँदनी रातें फीकी सी लग रही,
जवाब देंहटाएंमेरे प्रियतम ने दीप उजारा नही है!
@@ वाह ! शानदार पंक्तियाँ !!
जवाब देंहटाएंbahut achchhi rchna !
बहुत बढ़िया ....
जवाब देंहटाएंचाँदनी रातें फीकी सी लग रही,
मेरे प्रियतम ने दीप उजारा नही है!
बेहद खूबसूरत गज़ल...
सादर
अनु
nice creation
जवाब देंहटाएंचारो दिशाओं में धुंधलके है फैले,
जवाब देंहटाएंपूनम के चाँद को गंवारा नहीं है!
शानदार धीर जी।
अगर इसकी बजाय ''चारो दिशाओं में धुंधलके हों फैले, होता तो इस शेर की खूबसूरती निखार आ जाता।
चाँदनी रातें फीकी सी लग रही,
जवाब देंहटाएंमेरे प्रियतम ने दीप उजारा नही है! बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ...........
खूबसूरत ग़ज़ल !!
जवाब देंहटाएंsundar rachna..
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंकुहासों ने घूंघट उतारा नही है,
अभी मेरे प्रियतम का इशारा नहीं है!
बढ़िया गजल का बेहतरीन मतला है .
ram ram bhai
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रविवार, 9 दिसम्बर 2012
Global warming ,sperm count dropping
http://veerubhai1947.blogspot.in/
मर्दानगी पे भारी पड़ रहा है भूमंडलीय तापन (आलमी ग...गर्मी ,पहली और दूसरी किश्त अब एक साथ )
.सार्थक भावपूर्ण अभिव्यक्ति बधाई भारत पाक एकीकरण -नहीं कभी नहीं
जवाब देंहटाएंरूप संवारा नहीं ............अच्छी रचना !!
जवाब देंहटाएंहेमन्त जा रहा शिशिर आ रहा,
जवाब देंहटाएंबसंत ने अभी रूप संवारा नहीं है!
bahut sundar rachna ....shubhkamnayen ...
हेमन्त जा रहा शिशिर आ रहा,
जवाब देंहटाएंबसंत ने अभी रूप संवारा नहीं है!
बिलकुल सही ! लाजबाब अभिव्यक्ति !!
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ..
जवाब देंहटाएंबढिया, बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंप्रेम की सुन्दर अभिव्यक्ति है ये गज़ल ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिखा है..
जवाब देंहटाएंहेमन्त जा रहा शिशिर आ रहा,
जवाब देंहटाएंबसंत ने अभी रूप संवारा नहीं है
bahut sundar ...
वाह ... बहुत ही बढिया।
जवाब देंहटाएंहेमंत ऋतु को समर्पित उम्दा भाव लिए बेहतरीन प्रस्तुति धीरेन्द्र सर
जवाब देंहटाएंअरुन शर्मा
RECENT POST शीत डाले ठंडी बोरियाँ
बहुत बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढियां गजल.....
:-)
हेमन्त जा रहा शिशिर आ रहा,
जवाब देंहटाएंबसंत ने अभी रूप संवारा नहीं है!
सुंदर नज़्म बसंत के आने की प्रतीक्षा में.
वाह..बहुत खूब्..
जवाब देंहटाएंक्षमा करें देरी हो गई…
जवाब देंहटाएंचारो दिशाओं में धुंधलके है फैले,
पूनम के चाँद को गंवारा नहीं है!
सार्थक!!
waah bahut khoob behad sundar panktiyan sarthak rachna prem me pagi hui , badhai aapko
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति बहुत सुन्दर .. चारो दिशाओं में धुंधलके है फैले,
जवाब देंहटाएंपूनम के चाँद को गंवारा नहीं है!
चाँदनी रातें फीकी सी लग रही,
मेरे प्रियतम ने दीप उजारा नही है!
हेमन्त जा रहा शिशिर आ रहा,
बसंत ने अभी रूप संवारा नहीं है!
OBO अंक - 26 में शामिल,
कुहासों ने घूंघट उतारा नही है,
जवाब देंहटाएंअभी मेरे प्रियतम का इशारा नहीं है!
बहुत सुन्दर रचना है ! कुछ ऐसा ही मौसम है इन दिनों ! बहुत खूब !
वाह, प्रकृति का सुन्दर चित्र .
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए बधाई...
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जवाब देंहटाएंकुहासों ने घूंघट उतारा नही है, नहीं बोल कर तो नकारा नहीं है
अभी प्रियतम का इशारा नहीं है! समझदार को ये इशारा नहीं है ?
किरणों का रथ लगता थम गया है, सभी फ्लाइटों का समय-काल बदला
सूरज ने अभी पूरब निहारा नही है! इसके बिना कोई चारा नहीं है |
चारो दिशाओं में धुंधलके पड़े है, छँटेंगे धुँधलके, जरा धीर रखिए
पूनम के चाँद को गंवारा नहीं है! उधर ग्रीन सिग्नल है,तारा नहीं है |
चाँदनी रातें फीकी सी लग रही है, उनकी भी मानो,उन्हें चाँदनी में
मेरे प्रियतम ने दीप उजारा नही है! दीपक जलाना गवारा नहीं है |
हेमन्त जा रहा शिशिर आ रहा है, चढ़ी भाव मदिरा ,जरा हम हैं बहके
बसंत ने अभी रूप संवारा नहीं है! कोई जोर दिल पर,हमारा नहीं है |
धीरेन्द्र सिंह भदौरिया,,,, अरुण
चाँदनी रातें फीकी सी लग रही,
जवाब देंहटाएंमेरे प्रियतम ने दीप उजारा नही है!
बेहतरीन प्रस्तुति ।
बहुत खूबसूरत गज़ल
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जवाब देंहटाएंहेमन्त जा रहा शिशिर आ रहा,
बसंत ने अभी रूप संवारा नहीं है! waah waah bahut sundar rachna lagi yah
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत गज़ल......!
किरणों का रथ लगता थम गया,
जवाब देंहटाएंसूरज ने अभी पूरब निहारा नही है!...बहुत ही खूबसूरत गज़ल.
हेमन्त जा रहा शिशिर आ रहा,
जवाब देंहटाएंबसंत ने अभी रूप संवारा नहीं है!
....बहुत खूब! बेहतरीन ग़ज़ल...
जवाब नहीं आपकी इस गज़ल का.. समां बांध गया एक एक शेर.. बहुत खूब!!
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना धीरेन्द्र जी ... रहस्यवाद का पुट लिए प्रकृति का सुन्दर वर्णन
जवाब देंहटाएंचाँदनी रातें फीकी सी लग रही,
जवाब देंहटाएंमेरे प्रियतम ने दीप उजारा नही है!
वाह ..बहुत ही शानदार लगी आपकी ये पोस्ट
शानदार कृति प्रकृति के अवयवों पर .......भाव व चित्रण की अनोखी प्रभा अभिसरित हो रही है ....
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रकृति चित्रण
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना है।
जवाब देंहटाएंचंद पंक्तियों में अनुभूतियों का संकुल।
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत गज़ल......
शानदार पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंकिरणों का रथ लगता थम गया,
जवाब देंहटाएंसूरज ने अभी पूरब निहारा नही है!
waah bahut sundar
हेमन्त जा रहा शिशिर आ रहा,
जवाब देंहटाएंबसंत ने अभी रूप संवारा नहीं है.....
खुबसूरत उपमाएं !
सुन्दर चित्रण
जवाब देंहटाएंसुन्दर चित्रण
जवाब देंहटाएंआपकी यह रचना अख़बार में भी
जवाब देंहटाएंhttp://bhaskarbhumi.com/epaper/inner_page.php?d=2012-12-18&id=8&city=Rajnandgaon
बहुत बढ़िया ....शानदार पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब ,,,,,
जवाब देंहटाएंकिरणों का रथ लगता थम गया,
सूरज ने अभी पूरब निहारा नही है!