बात न करो
इस वीराने में बस्ती बसाने की बात न करो,
समुन्दर में कागज की कस्ती चलाने की बात न करो!
अभी-अभी तो इस गम से पिंड छुड़ाकर बैठा हूँ,
अचानक हमसे हँसने- हँसाने की बात न करो!
उम्र भर तो सोने न दिया निगोड़ी मँहगाई ने
कब्र में चैन से सोनेवालों को जगाने की बात न करो!
मारकर मुझे फटने तक ये जख्म बेदर्द,
हम दर्द बनकर दवा देने की बात न करो!
अपनों ने दगा दिया मारा नफरत का बल्लम
अब"धीर" से बेरहम जमाने की बात न करो!
इस वीराने में बस्ती बसाने की बात न करो,
समुन्दर में कागज की कस्ती चलाने की बात न करो!
अभी-अभी तो इस गम से पिंड छुड़ाकर बैठा हूँ,
अचानक हमसे हँसने- हँसाने की बात न करो!
उम्र भर तो सोने न दिया निगोड़ी मँहगाई ने
कब्र में चैन से सोनेवालों को जगाने की बात न करो!
मारकर मुझे फटने तक ये जख्म बेदर्द,
हम दर्द बनकर दवा देने की बात न करो!
अपनों ने दगा दिया मारा नफरत का बल्लम
अब"धीर" से बेरहम जमाने की बात न करो!
उम्दा है
जवाब देंहटाएंहंसने हंसाने की बात न करो-
जवाब देंहटाएंगम रास आ रहे है-
जमाने की बात न करो-
एहसास जा रहे हैं-
बढ़िया ||
सादर भाई जी -
बहुत बढ़िया गज़ल....
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
बहुत बढ़िया फूफाजी ...........
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंवाह-वाह!
जवाब देंहटाएंग़ज़ल पढ़कर आनन्द आ गया!
बहुत बढ़िया रचना
जवाब देंहटाएं
हटाएंइस वीराने में बस्ती बसाने की बात न करो,
समुन्दर में कागज की कस्ती चलाने की बात न करो!
मारकर मुझे फटने तक ये जख्म बेदर्द,
हम दर्द बनकर दवा देने की बात न करो!
बेहतरीन दिनानुदिन निखार पर हैं धीरेन्द्र भाई .
(कश्ती ,हमदर्द )
मारकर मुझे फटने तक ये जख्म बेदर्द,
जवाब देंहटाएंहम दर्द बनकर दवा देने की बात न करो!
वाह धीरेन्द्र जी...बहुत खूब लिखा है!
दर्दे-दिल की पुकार ..तू सुन ले मेरे यार !
जवाब देंहटाएंअपनों ने दगा दिया मारा नफरत का बल्लम
जवाब देंहटाएंअब"धीर" से बेरहम जमाने की बात न करो!
धीरेंद्र जी दुख तो अपने ही देते हैं, गैरों से नही मिलता। आपकी रचना मर्मस्पर्शी लगी। मेरे नए पोस्ट आषाढ़ का एक दिन पर आपकी प्रतिक्रिया से प्रसन्न हुआ। आशा है भविष्य में भी आप मुझे प्रोत्साहित करते रहेंगे। धन्यवाद।
बात न करने की बात करो..
जवाब देंहटाएंवाह ... बेहद जानदार और बेहद उम्दा
जवाब देंहटाएंअब बेरहम जमाने की बात न करो!
जवाब देंहटाएंउत्तम रचना!
अभी-अभी तो इस गम से पिंड छुड़ाकर बैठा हूँ,
जवाब देंहटाएंअचानक हमसे हँसने- हँसाने की बात न करो!
ये लाइने सुपर लगीं।
लगता है आज धीरेन्द्र जी का मुड बदला है ,
आज तो हंसने हंसाने की बिलकुल बात ना करो।
मोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड
गज़ब की गज़ल है दिल को छू गयी।
जवाब देंहटाएंइस वीराने में बस्ती बसाने की बात न करो,
जवाब देंहटाएंसमुन्दर में कागज की कस्ती चलाने की बात न करो!
बात तो तभी है जब समंदर में कागज़ की नाव चले
वीरान बंजर धरती पर कोई बस्ती बसर करे ।
सुंदर प्रस्तुति
बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको .
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़ियाँ गजल...
जवाब देंहटाएं:-)
बहुत बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना !!
जवाब देंहटाएंइस वीराने में बस्ती बसाने की बात न करो,
जवाब देंहटाएंसमुन्दर में कागज की कस्ती चलाने की बात न करो!
सुंदर प्रस्तुति...
अभी-अभी तो इस गम से पिंड छुड़ाकर बैठा हूँ,
जवाब देंहटाएंअचानक हमसे हँसने- हँसाने की बात न करो!---बहुत उम्दा लगा ये शेर सच में हासिले ग़ज़ल है दाद कबूल करें
बेरहम जमाने की बात न करो!nice
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव..
जवाब देंहटाएंआपकी इस रचना को भास्कर भूमि छत्तीसगढ़ में भी आज जगह दी गयी है |
जवाब देंहटाएंबधाई
देखने के लिए निम्न लिंक पर अख़बार की वेब साईट पर आज के अख़बार के पृष्ठ संख्या आठ पर देखें
http://bhaskarbhumi.com/epaper/inner_page.php?d=2012-12-05&id=8&city=Rajnandgaon
Jankari dene ke liye aabhar...ratan je
हटाएंसमुन्दर में कागज की कस्ती चलाने की बात न करो!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव ...
बात नहीं करने के लिए बात तो करनी पड़ेगी भाई ...बहुत सुन्दर नज्म .....यूँ ही लिखते रहिये बेबाक ,विंदास ..बधाईयाँ भदौरिया जी
जवाब देंहटाएंशुरुआत ही शानदार है.शेष लाजवाब है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता है.
वाह बहुत खूब ..........पर ,अगर बात नहीं करंगे तो किसी बात का निदान कैसे निकलेगा ?? :)))
जवाब देंहटाएंअपनों ने दगा दिया मारा नफरत का बल्लम
जवाब देंहटाएंअब"धीर" से बेरहम जमाने की बात न करो!
जब बात न करे तो नफरत का बल्लम का
घाव पर मल्लम(दवा)कैसे लगाएं ..... :))
हमेशा की तरह बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंलाजवाब ग़ज़ल धीरेन्द्र सर दिली दाद कुबूल करें
जवाब देंहटाएंअब"धीर" से बेरहम जमाने की बात न करो....लाजवाब गजल
जवाब देंहटाएंअभी-अभी तो इस गम से पिंड छुड़ाकर बैठा हूँ,
जवाब देंहटाएंअचानक हमसे हँसने- हँसाने की बात न करो!
बहुत बढ़िया गज़ल..आभार
मारकर मुझे फटने तक ये जख्म बेदर्द,
जवाब देंहटाएंहम दर्द बनकर दवा देने की बात न करो!
अपनों ने दगा दिया मारा नफरत का बल्लम
अब"धीर" से बेरहम जमाने की बात न करो!
बहुत बढ़िया गज़ल..आभार
achchhi gazal
जवाब देंहटाएंवाह! ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब, उम्दा !
जवाब देंहटाएंइस वीराने में बस्ती बसाने की बात न करो,
जवाब देंहटाएंसमुन्दर में कागज की कस्ती चलाने की बात न करो!
बहुत खूब,
उम्र भर तो सोने न दिया निगोड़ी महंगाई ने
कब्र में चैन से सोनेवालों को जगाने की बात न करो
बात तो बेशक सही है आपकी
धीरेन्द्र सिंह भदौरिया जी !
सुंदर प्रस्तुति !
खूबसूरत रचना !
शुभकामनाओं सहित…
बढ़िया प्रस्तुति है भाई साहब (हमदर्द को मिलाके लिखें हम दर्द अलग अलग न लिखें ).
जवाब देंहटाएंअभी-अभी तो इस गम से पिंड छुड़ाकर बैठा हूँ,
जवाब देंहटाएंअचानक हमसे हँसने- हँसाने की बात न करो! ..
खूबसूरत शेर है इस लाजवाब गज़ल का ... बहुत खूब ...
बहुत सुन्दर शेर
जवाब देंहटाएंShukriya...shastri jee
जवाब देंहटाएंइस वीराने में बस्ती बसाने की बात न करो,
जवाब देंहटाएंसमुन्दर में कागज की कस्ती चलाने की बात न करो!
सुंदर रचना ॥
बेहतरीन कटाक्ष!
जवाब देंहटाएं('कस्ती' को 'कश्ती' कर लें)
.विचारणीय अभिव्यक्ति .बधाई
जवाब देंहटाएंप्रयास सफल तो आज़ाद असफल तो अपराध [कानूनी ज्ञान ] और [कौशल ].शोध -माननीय कुलाधिपति जी पहले अवलोकन तो किया होता .पर देखें और अपने विचार प्रकट करें
इस वीराने में बस्ती बसाने की बात न करो,
जवाब देंहटाएंसमुन्दर में कागज की कस्ती चलाने की बात न करो!
क्या खूब बात कही है. मुश्किल समय में कीड़े मकोड़े भी पैर सिकोड़ के बैठ जाते है और सही समय का इन्तेज़ार करते हैं.
बहुत बढ़िया गज़ल..
जवाब देंहटाएंहम दर्द बनकर दवा देने की बात न करो!
जवाब देंहटाएंसच कहां आपने
------आभार
बहुत खूबसूरत अंदाज वाह !
जवाब देंहटाएं