तड़प
जिन्दगी आज कैसी बदहवास सी दिखती है,
तन्हाई में भी तू ही तू आस पास दिखती है!
दरिया में रह कर भी मै प्यासा रह गया,
मेरी निगाहों में सदियों की प्यास दिखती है!
तेरी यादें आ के तडपाती तो मयखाने जाता,
मेरी तबाही भी अब देवदास सी दिखती है!
होठों पे शोले रख कर कब तक मुस्कराऊं,
मेरा जिस्म तो अब ज़िंदा लाश सी दिखती है!
दर्द दिल में दफ़न कर अश्रु का आचमन कर लिया,
मकसद न रहा जीने का ,जिन्दगी बेजार सी दिखती है!
dheerendra bhadauriya,,,
दर्द दिल में दफ़न कर अश्रु का आचमन कर लिया,
जवाब देंहटाएंकोई मकसद न रहा,जिन्दगी बेजार सी दिखती है!
सहज सुंदर अभिव्यक्ति!!
दर्दे-दिल दफना दिया, देह दशा दुर्गेश ।
जवाब देंहटाएंबैठ मर्सिया पढ़ रहा, अश्रु हुवे नि:शेष ।
अश्रु हुवे नि:शेष, देह यह कब्रिस्तानी ।
अब भी हलचल करे, बुरी है कारस्तानी ।
ताक-झाँक में तेज, जरा हिलते जो परदे ।
चमके रोती आँख, आस नव रविकर दर-दे ।।
जवाब देंहटाएंजिन्दगी आज कैसी बदहवास सी दिखती है,
तन्हाई में भी तू ही तू आस पास दिखती है!
दरिया में रह कर भी मै प्यासा रह गया,
मेरी निगाहों में सदियों की प्यास दिखती है!
bahut khoob dheerendra j umda sher kahe hai aapne badhai aapko , blog ka naya roop bhi accha hai .
वाह ... बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंkavita me gazal. gazal me kavita.. sundar
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना ।
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (28-11-12) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
सूचनार्थ |
दरिया में रह कर भी मै प्यासा रह गया,
जवाब देंहटाएंमेरी निगाहों में सदियों की प्यास दिखती है!
वाह वाह .....बहुत खूब।
बहुत बढ़िया गज़ल....हाँ जिस्म के साथ -दिखती है थोड़ा अटपटा लगा मगर थोड़ी बहुत छूट कवि ले लिया करते हैं :-)
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
दर्द दिल में दफ़न कर अश्रु का आचमन कर लिया,
जवाब देंहटाएंमकसद न रहा जीने का ,जिन्दगी बेजार सी दिखती है!
बहुत सार्थक प्रस्तुति .aabhar
अच्छी रचना !!
जवाब देंहटाएंदरिया में रह कर भी मै प्यासा रह गया,
जवाब देंहटाएंमेरी निगाहों में सदियों की प्यास दिखती है!
शानदार प्रस्तुति
बहुत शानदार रचना है धीरेन्द्र जी
जवाब देंहटाएंदूर रह कर भी वो है दिल के हर गोशे में समाया सा लगे है
जिस तरफ देखता हूँ उसका ही सरमाया सा लगे है ....
दरिया में रह कर भी मै प्यासा रह गया,
जवाब देंहटाएंमेरी निगाहों में सदियों की प्यास दिखती है!
वाह बहुत खूबसूरत अहसास
बहुत ही दमदार पंक्तियाँ..
जवाब देंहटाएंक्या लिखा है आपने हम बार बार पढ़ते ही रह गये ,
जवाब देंहटाएंआपकी नज्म में अपनी तड़प तलाश करते ही रह गये।
ऐसा लगा की लिखी है आपने तड़प मेरे दिल की ,
हुए जख्म फिर से हरे बर्दाश्त करके ही रह गये।
सुंदर रचना सर ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंवाह ! शानदार पंक्तियाँ|
जवाब देंहटाएंबेहतरीन है कविता ...
जवाब देंहटाएंदर्दभरी गज़ल ।
जवाब देंहटाएंक्या ख़ूब व्यक्त किया है अपने एहसासों को !
जवाब देंहटाएंवाह सर वाह क्या बात लाजवाब, उम्दा खूबसूरत प्रस्तुति खासकर यह शे'र तो जानलेवा है.
जवाब देंहटाएंदरिया में रह कर भी मै प्यासा रह गया,
मेरी निगाहों में सदियों की प्यास दिखती है!
दरिया में रह कर भी मै प्यासा रह गया,
जवाब देंहटाएंमेरी निगाहों में सदियों की प्यास दिखती है!
बढ़िया शैर है भाई साहब .क्या बात है कोई आशिकी सी आशिकी है .तुम मेरे पास होते हो जब कोई दूसरा नहीं होता .
"तड़प" एक बेहद सुन्दर प्रस्तुति के आभार।
जवाब देंहटाएंमेरी नयी पोस्ट "10 रुपये का नोट नहीं , अब 10 रुपये के सिक्के " को भी एक बार अवश्य पढ़े । धन्यवाद
मेरा ब्लॉग पता है :- harshprachar.blogspot.com
बहुत सुन्दर रचना है धीरेन्द्र जी -----
जवाब देंहटाएं-----पर पहले दो शे.रों में .....पास और प्यास काफिया है तो आगे के शे'रों में.. सी.. लगाने की आवश्यकता कहाँ है ..काफिया बदल जाता है ...सी... के बिना ही वही 'अ' से काफिया बन रहा है |
Aabhar.dr.sahab
हटाएं" kripya mykhane se duri banaye rakhen !
जवाब देंहटाएंdevdas ki halat dekhkr jnhit main ek jaruri salah.......
baharhaal uprokt prastuti hetu abhar.
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पी .एस .भाकुनी
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भंग हुईं तन्हाइयाँ है, जब आये वो पास।
जवाब देंहटाएंमिल जाए मीत तो, पल हो जाता खास।।
waah bahut sundar behtreen rachna
जवाब देंहटाएंbehtarin rachna hai aapki jise bahut hi sundar bhavon se sajaya hai aapne
जवाब देंहटाएंदरिया में रह कर भी मै प्यासा रह गया,
जवाब देंहटाएंमेरी निगाहों में सदियों की प्यास दिखती है!
लाजवाब रचना...बधाई.
नीरज
दरिया में रह कर भी मै प्यासा रह गया,
जवाब देंहटाएंमेरी निगाहों में सदियों की प्यास दिखती है!
वाह बहुत खूबसूरत अहसास
भंग हुईं तन्हाइयाँ है, जब आये वो पास।
जवाब देंहटाएंमिल जाए मीत तो, पल हो जाता खास।
आपकी हर रचना ताजा, दिल नवाज और बोलती सी लगती हैं। यह रचना भी काफी अच्छी लगी। मेरे पोस्ट पर प्रतिक्रिया देने हेतु आपका आभार, धीरेंद्र जी।
बढ़िया ग़ज़ल है.
जवाब देंहटाएंदरिया में रह कर भी मै प्यासा रह गया,
मेरी निगाहों में सदियों की प्यास दिखती है! .............वाह
बहुत बढ़िया -
जवाब देंहटाएंखुबसूरत प्रस्तुति ।।
सुन्दर...
जवाब देंहटाएंदिल से निकली ...दिल तक पहुंची !
जवाब देंहटाएंमुबारक कबूलें!
बहुत बढ़िया शेर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसादर- देवेंद्र
मेरी नयी पोस्ट अन्नदेवं,सृष्टि-देवं,पूजयेत संरक्षयेत पर आपका हार्दिक स्वागत है।
होठों पे शोले रख कर कब तक मुस्कराऊं,
जवाब देंहटाएंमेरा जिस्म तो अब ज़िंदा लाश सी दिखती है!
शानदार प्रस्तुति !!
बहुत ही अच्छी कविता |आदरनीय भदौरिया जी सादर नमस्ते |
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंखुबसूरत बातें सुन्दर ख्याल
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक शेर बेहद लाजवाब है
जवाब देंहटाएंमेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/11/3.html
बहुत खूब दर्द बिखेरा है!
जवाब देंहटाएंदरिया में रह कर भी मै प्यासा रह गया,
जवाब देंहटाएंमेरी निगाहों में सदियों की प्यास दिखती है!
बहुत जबरदस्त शेर और की बात क्या कहूँ पूरी ग़ज़ल ही दिल छू गई दाद कबूल कीजिये धीरेन्द्र भदौरिया जी
जबरदस्त .
जवाब देंहटाएंदरिया में रह कर भी मै प्यासा रह गया,
जवाब देंहटाएंमेरी निगाहों में सदियों की प्यास दिखती है!
वाह धीरेंद्र जी, समुंदर सी गहरी बात कह गये.शानदार गज़ल के लिए बधाई.
बहुत सुन्दर रचना ......
जवाब देंहटाएंहोठों पे शोले रख कर कब तक मुस्कराऊं,
जवाब देंहटाएंमेरा जिस्म तो अब ज़िंदा लाश सी दिखती है!
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ...
बांके बिहारी कहाँ मिलेंगे ?
तेरी यादें आ के तडपाती तो मयखाने जाता,
जवाब देंहटाएंमेरी तबाही भी अब देवदास सी दिखती है!
होठों पे शोले रख कर कब तक मुस्कराऊं,
मेरा जिस्म तो अब ज़िंदा लाश सी दिखती है!
शेर जो
दिल को छू गए
बहुत सुन्दर
मेरी निगाहों में सदियों की प्यास दिखती है...वाह..बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसभी शेर कुछ अलग सा एहसास लिए ... जिंदगी के करीब ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन..
जवाब देंहटाएंसहज सुंदर अभिव्यक्ति!!
जवाब देंहटाएं