तेरी फितरत के लोग,,,
खुद रहते शीशे के घर में
पत्थर लिये खड़े क्यों लोग,
अपनी खिड़की बंद किये है
घर दूजे का झाँके क्यों लोग,
है जमीर खुद का सोया फिर
आइना लिये खड़े क्यों लोग,
जन्म लिया जिस धरती में
उससे फिर भागे क्यों लोग,
जब हमे थाम लिया धरती ने
आसमां फिर तकते क्यों लोग,
ऐ"धीर"अपनी बदल ले फितरत
नहीं यहाँ तेरी फितरत के लोग,,,
dheerendra,"dheer"
खुद रहते शीशे के घर में
पत्थर लिये खड़े क्यों लोग,
अपनी खिड़की बंद किये है
घर दूजे का झाँके क्यों लोग,
है जमीर खुद का सोया फिर
आइना लिये खड़े क्यों लोग,
जन्म लिया जिस धरती में
उससे फिर भागे क्यों लोग,
जब हमे थाम लिया धरती ने
आसमां फिर तकते क्यों लोग,
ऐ"धीर"अपनी बदल ले फितरत
नहीं यहाँ तेरी फितरत के लोग,,,
dheerendra,"dheer"
it has a deep meaning ... जो न समझे वो अनाड़ी है
जवाब देंहटाएंhttp://pandeygambhir.blogspot.in/इस ब्लॉग पर आयें
जब हमे थाम लिया धरती ने
जवाब देंहटाएंआसमां फिर तकते क्यों लोग
......बहुत ही सुन्दर धीरेन्द्र जी बधाई स्वीकारें
namaskaar dheerendra ji
हटाएंbahut sundar gajal
है जमीर खुद का सोया फिर
आइना लिये खड़े क्यों लोग,..........waah kya sach ka aaina dikhaya hai aapne ,bahut dino baad post aayi par sarthak ho gayi .badhai .
is baar mere do geet aapki pratiksha kar rahe hai :)
है जमीर खुद का सोया फिर
जवाब देंहटाएंआइना लिये खड़े क्यों लोग,
बेहतरीन अभिव्यक्ति!!
है जमीर खुद का सोया फिर
जवाब देंहटाएंआइना लिये खड़े क्यों लोग....बहुत बढ़िया..बधाई
छोटी बहर की बहुत उम्दा ग़ज़ल!
जवाब देंहटाएंशेअर करने के लिए शुक्रिया!
बहुत ही प्रभावशाली पंक्तियाँ..शुभकामनायें..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल धीरेन्द्र सर क्या बात है
जवाब देंहटाएंऐ"धीर भाई "अपनी बदल ले फितरत
जवाब देंहटाएंनहीं यहाँ तेरी फितरत के लोग,,,
लाजबाब !
उम्दा गज़ल ....अपनी फितरत जैसा कोई मिलेगा भी नहीं ..
जवाब देंहटाएंमरम्मत और करते तो ग़जल बनती,
जवाब देंहटाएंजरा हिम्मत दिखाते तो नज़र मिलती ।
बहुत बढिया
जवाब देंहटाएंक्या कहने
खुद के अंदर झांकना भी सबसे पहले जरुरी है. उम्दा गज़ल धीरेन्द्र जी.
जवाब देंहटाएंबधाई.
जवाब देंहटाएंहै जमीर खुद का सोया फिर
आइना लिये खड़े क्यों लोग,...सोचते ही नहीं कि अपना अक्स ही दिखेगा
बहुत अच्छी रचना !!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया गजल..
जवाब देंहटाएंखुद रहते शीशे के घर में
पत्थर लिये खड़े क्यों लोग,
सभी शेर बहुत ही बढ़िया है..
:-)
फितरत न बदले कभी, सर्प साधु कवि दुष्ट |
जवाब देंहटाएंफुफकारे हुंकार दे, रहे प्रीत या रुष्ट ||
" आइना लिये खड़े क्यों लोग,
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति......
सभी पंक्तिया बहुत ही सुन्दर धीरेन्द्र जी बधाई ....
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना !
जवाब देंहटाएंरहा नहीं जीवन भी अपना
जवाब देंहटाएंपर-जीवन पर जीते लोग!
अपनी खिड़की बंद किये है
जवाब देंहटाएंघर दूजे का झाँके क्यों लोग,
sahi hai ....
प्रभावशाली पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भावों से सजी हुई इन अच्छी पंक्तियों के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंहीरा चाहे जहाँ रहे
जवाब देंहटाएंकीमत नहीं बदल सकती है
कर्म बदल देता है किस्मत
फितरत नहीं बदल सकती है....
सुंदर दार्शनिक रचना हेतु बधाई स्वीकार करें.
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जवाब देंहटाएंरविवार, 7 अक्तूबर 2012
तेरी फितरत के लोग,,,
तेरी फितरत के लोग,,,
खुद रहते शीशे के घर में
पत्थर लिये खड़े क्यों लोग,
अपनी खिड़की बंद किये है..(..(हैं )....झांकें हैं उस घर में लोग ...........)
घर दूजे का झाँके क्यों लोग,
है जमीर खुद का सोया फिर
आइना ...(आईना )...लिये खड़े क्यों लोग,
जन्म लिया जिस धरती में .(...(पे )....फिर धरती से क्यों भागे लोग .....)
उससे फिर भागे क्यों लोग,
जब हमे (हमें )थाम लिया धरती ने ..........(हमें थाम लिया धरती ने जब ,आसमां फिर तकते क्यों लोग )
आसमां फिर तकते क्यों लोग,
ऐ"धीर"अपनी बदल ले फितरत
नहीं यहाँ तेरी फितरत के लोग,,,
बढ़िया रचना है दोस्त .छेड़खानी की है भली लगे या बुरी ,नीयत नहीं है बुरी ....
सच का दर्शन कराती रचना !
जवाब देंहटाएंमै खडा यहा तु बन्दे सोया है कहा
जवाब देंहटाएंनमस्कार धीरेन्द्र जी
badhiya kavita
जवाब देंहटाएंजब हमे थाम लिया धरती ने
जवाब देंहटाएंआसमां फिर तकते क्यों लोग,
बहुत खूब...
है जमीर खुद का सोया फिर
जवाब देंहटाएंआइना लिये खड़े क्यों लोग,waah bahut khub ...bahut sahi kaha
दमदार रचना... आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर लगी पोस्ट।
जवाब देंहटाएंहै जमीर खुद का सोया फिर
जवाब देंहटाएंआइना लिये खड़े क्यों लोग...
बेहतरीन अभिव्यक्ति .
सच्चाई का आइना दिखाती बेबाक रचना...बहुत असरदार व सार्थक !
जवाब देंहटाएंजब हमे थाम लिया धरती ने
जवाब देंहटाएंआसमां फिर तकते क्यों लोग,
बेबाक रचना
अपने घर की खिडकी बंद करके दूसरों के घर में ताक झामक करना कुछ लोगों की आदत होती है । बहुत सुंदर गज़ल ।
जवाब देंहटाएंरचना लिखने में आपका कोई जोड़ नही है.आप काफी परिपक्व हो चुके हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा रचना |
जवाब देंहटाएंहै जमीर खुद का सोया फिर
जवाब देंहटाएंआइना लिये खड़े क्यों लोग,...जी बिलकुल.
साफ़ सरल शब्दों में भी आप कहर ढाते हैं :-)
जवाब देंहटाएंफितरत वाले तो हैं, लेकिन फितरत यह है कि हाथ में आइना है, लेकिन अपना चेहरा कोई देखना ही नहीं चाहता।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना ....
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब..हर शेर एक से बढ़कर एक ....
जवाब देंहटाएंशब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
जवाब देंहटाएंपोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब
बेह्तरीन अभिव्यक्ति .
आप भी बस आप हैं.
जवाब देंहटाएंलोगो का क्या ?
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार धीरेन्द्र जी.
yahi fitarat hai aaj ............ bahut sahi likha hai aapne.
जवाब देंहटाएंsarthak abhivyakti ...
जवाब देंहटाएंsundar rachna ...!!
kya bat hai..behad khoobsurat rachana..
जवाब देंहटाएंखुद रहते शीशे के घर में
जवाब देंहटाएंपत्थर लिये खड़े क्यों लोग,
सुंदर ! अति सुंदर................
जब हमे थाम लिया धरती ने
जवाब देंहटाएंआसमां फिर तकते क्यों लोग
......बहुत ही सुन्दर .......
.... बेहतरीन रचना ....
उम्दा प्रस्तुती।
जवाब देंहटाएंआपके इन शब्दों का तो कोई तोड़ नही है जी।
ऐ"धीर"अपनी बदल ले फितरत
नहीं यहाँ तेरी फितरत के लोग,,,
बहुत बढ़िया, बधाई।
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