हम देख न सके,,,
रोज पढते रहे अखबार हम देख न सके,
आप कब हो गए सरकार हम देख न सके,!
हमने तो आपको अपने करीब देखा था,
बीच में कांच की दीवार हम देख न सके,!
उनकी आँखों में जहर, प्यार मेरी आँखों में,
और मिलती रही हर बार हम देख न सके,!
हम तो दीवाने थे सबसे ही गले मिल बैठे,
गुलों में खार थे पर उन्हें हम देख न सके,!
इस "धीर" का था इल्जाम जमाने भर पर,
और खुद अपना ही किरदार हम देख न सके,!
.................dheerendra,dheer,
रोज पढते रहे अखबार हम देख न सके,
आप कब हो गए सरकार हम देख न सके,!
हमने तो आपको अपने करीब देखा था,
बीच में कांच की दीवार हम देख न सके,!
उनकी आँखों में जहर, प्यार मेरी आँखों में,
और मिलती रही हर बार हम देख न सके,!
हम तो दीवाने थे सबसे ही गले मिल बैठे,
गुलों में खार थे पर उन्हें हम देख न सके,!
इस "धीर" का था इल्जाम जमाने भर पर,
और खुद अपना ही किरदार हम देख न सके,!
.................dheerendra,dheer,
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति... आभार
जवाब देंहटाएंnamaskaar dheerendra ji
हटाएंbahut umda gajal ...aapki post par ana sadaiv sarthak hota hai , maaf kijiyega swasth ke chalte kai dino se nahi aa saki .
बहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल...
सादर
अनु
गजब फोटो-
जवाब देंहटाएंबधाई धीर भाई -
हुस्न-इश्क को भूल जा, रविकर पकड़ सलाह |
सूक्ष्म-दृष्टि अतिशय विकट, अभी गजब उत्साह |
अभी गजब उत्साह, कहीं ना आह निकाले |
यह कंटकमय राह, पड़ो ना इनके पाले |
पड़ जाए गर धीर, ध्यान में रखो रिश्क को |
शुभकामना असीम, भूल जा हुश्न-इश्क को ||
....आप इतने हैं असरदार ,हम देख न सके !?
जवाब देंहटाएंvaah,,,,bhaut lajbab gajal,,,,badhai
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंउनकी आँखों में जहर, प्यार मेरी आँखों में,
जवाब देंहटाएंऔर मिलती रही हर बार हम देख न सके,!
vaah,,,,bhaut lajbab gajal,,,,badhai
इस "धीर" का था इल्जाम जमाने भर पर,
जवाब देंहटाएंऔर खुद अपना ही किरदार हम देख न सके,!
इसे पढ़कर एक दोहा याद आ गया...
बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिल्या कोई
जो दिल देखा आपना मुझसे बुरा न कोई
बेहतरीन सृजन शब्द व भाव भी ...बहुत -२ बधाईयाँ जी ...l
जवाब देंहटाएंवाह! उम्दा...
जवाब देंहटाएंहम तो दीवाने थे सबसे ही गले मिल बैठे,
जवाब देंहटाएंआस्तीनों में थे फनकार हम देख न सके,!
...वाह! बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति..
बेहतरीन, गजब, दमदार..
जवाब देंहटाएंबड़ी प्यारी गजल लगी मुझे ..........
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंरोज पढते रहे अखबार हम देख न सके,
आप कब हो गए सरकार हम देख न सके,!....अब करना है क्या, ये भी सोच न सके
उनकी आँखों में जहर, प्यार मेरी आँखों में,
जवाब देंहटाएंऔर मिलती रही हर बार हम देख न सके,!
bahut hi sundar rachna badhai
हम तो दीवाने थे सबसे ही गले मिल बैठे,
जवाब देंहटाएंआस्तीनों में थे फनकार हम देख न सके,!
बेहतरीन गज़ल...
अब हो रहो तैयार ,जो न देख सके !
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जवाब देंहटाएंइस "धीर" का था इल्जाम जमाने भर पर,
और खुद अपना ही किरदार हम देख न सके,!
बहुत सुन्दर गज़ल लायें हैं इस मर्तबा आप .
बहुत सुंदर वाह !
जवाब देंहटाएंरोज पढते रहे अखबार हम देख न सके,
जवाब देंहटाएंआप कब हो गए सरकार हम देख न सके,!
बहुत सुंदर ....
अच्छी गज़ल है.
जवाब देंहटाएंGazal vakai bahut behtareen likhi hai.abki baar to kafi alg likha hai.lekin ek baat samajh me nhi aayi ''आस्तीनों में थे फनकार हम देख न सके,! kyun ki Fankaar Lugat me sangitkaar ya Gaayak ko kahte hain.saanp ko kisi bhi Juban me fankar nhi kaha jata.khas kar urdu me to iska matlab kuch or nikalta hai.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत ...लिखा है आपने !
जवाब देंहटाएंमुबारक कबूलें .....
गज़ल बहुत उम्दा है .... फनकार शब्द पर आमिर जी लिख ही चुके हैं .... फनकार का अर्थ हुनरमंद होता है ।
जवाब देंहटाएंउनकी आँखों में जहर, प्यार मेरी आँखों में,
जवाब देंहटाएंऔर मिलती रही हर बार हम देख न सके,!
बहुत सुंदर, क्या कहने
जब भी समय मिले, मेरे नए ब्लाग पर जरूर आएं..
http://tvstationlive.blogspot.in/2012/09/blog-post.html?spref=fb
उनकी आँखों में जहर, प्यार मेरी आँखों में,
जवाब देंहटाएंऔर मिलती रही हर बार हम देख न सके,-----इस ग़ज़ल की जितनी तारीफ की जाय कम होगी ये शेर तो ग़ज़ब का है !
हम तो दीवाने थे सबसे ही गले मिल बैठे,
आस्तीनों में थे फनकार हम देख न सके,!----यहाँ फनकार होने से भाव बदल गया (सांप के लिए )फनदार लिख दें या आस्तीनों में थी फुफकार तो भी चलेगा
इस "धीर" का था इल्जाम जमाने भर पर,
जवाब देंहटाएंऔर खुद अपना ही हम देख न सके,!
प्यार में अक्सर नज़रें धोखा खा जाती हैं या फिर उम्र का असर दिखता हो
वाह||
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन गजल..
सुन्दर...
:-)
इस "धीर" का था इल्जाम जमाने भर पर,
जवाब देंहटाएंऔर खुद अपना ही किरदार हम देख न सके,!
..बहुत उम्दा....
लाजवाब!
जवाब देंहटाएंइलजाम के बीच अपना किरदार कौन देखना चाहता है।
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएं"उनकी आँखों में जहर, प्यार मेरी आँखों में,
जवाब देंहटाएंऔर मिलती रही हर बार हम देख न सके,!
लाजवाब.........
बहुत खूबसूरत .........
गैरों का काम है,
जवाब देंहटाएंगैर ही जानें
नहीं मलाल कि रहे
खुद को देखते !
उनकी आँखों में जहर, प्यार मेरी आँखों में,
जवाब देंहटाएंऔर मिलती रही हर बार हम देख न सके, .......बहुत सुन्दर गज़ल..आभार..
कांच की दीवार तो सदियों से है ...कभी किसी ने भी देखी ही नहीं
जवाब देंहटाएंकमाल की गज़ल है धीरेन्द्र जी.. एक एक शेर बेमिसाल!!
जवाब देंहटाएंtabhi to kahte hain pyar andha hota hai. kamal ki gazal.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस "धीर" का था इल्जाम जमाने भर पर,
जवाब देंहटाएंऔर खुद अपना ही किरदार हम देख न सके,!
WAAH धीरेन्द्र जी ज़माने भर पर इल्जाम लगाने के बाद खुद
आपना किरदार देख ना सके बहुत खूब कहा है
हार्दिक बधाई
हम तो दीवाने थे सबसे ही गले मिल बैठे,
जवाब देंहटाएंगुलों में खार थे पर उन्हें हम देख न सके,!bahut khoob ...vaise sare hi gazab dha rahe hain .....
बहुत ख़ूब! वाह!
जवाब देंहटाएंकृपया इसे भी देखें-
नाहक़ ही प्यार आया
खुद अपना ही किरदार हम देख न सके.........!
जवाब देंहटाएंसटीक पंक्ति !
बहुत गहन अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना धीरेंदर जी, बहुत उम्दा ....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया और उम्दा
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव। पढ़कर मन त्रिप्त हो गया कभी मेरे ब्लौग http://www.kuldeepkikavita.blogspot.com पर भीआना अच्छा लगेगा।
जवाब देंहटाएंवाह धीरेन्द्र सर क्या बात है लाजवाब बेहद उम्दा
जवाब देंहटाएंअक्सर ऐसे ही चूक हो जाती है..सुंदर भाव!
जवाब देंहटाएंहमने तो आपको अपने करीब देखा था,
जवाब देंहटाएंबीच में कांच की दीवार हम देख न सके,!
इस "धीर" का था इल्जाम जमाने भर पर,
और खुद अपना ही किरदार हम देख न सके,!
वाह !!!!!!!!! धीरेंद्र जी
खूबसूरत गज़ल के खूबसूरत शेर
मर जाना मंजूर है, यार करे गर वार
हम मिलते दिल खोल कर, उनके हृदय कटार.
हमने तो आपको अपने करीब देखा था,
जवाब देंहटाएंबीच में कांच की दीवार हम देख न सके,!
इस "धीर" का था इल्जाम जमाने भर पर,
और खुद अपना ही किरदार हम देख न सके,!
वाह !!!!!!!!! धीरेंद्र जी
खूबसूरत गज़ल के खूबसूरत शेर
मर जाना मंजूर है, यार करे गर वार
हम मिलते दिल खोल कर, उनके हृदय कटार.
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंखूबसूरत प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट:- वो औरत
इस "धीर" का था इल्जाम जमाने भर पर,
जवाब देंहटाएंऔर खुद अपना ही किरदार हम देख न सके,!
अत्यन्त सुन्दर भाव....
हमने तो आपको अपने करीब देखा था,
जवाब देंहटाएंबीच में कांच की दीवार हम देख न सके,!
बहोत खूब धीरेंद्र जी ।
कमाल है.
जवाब देंहटाएंधीरेन्द्र जी आप देखने से कैसे चूक गए.
चलिये अच्छा हुआ.
इसी बहाने सुन्दर कविता का सर्जन हुआ.
हार्दिक आभार जी.
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वाह बेहतरीन।
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