समय ठहर उस क्षण,है जाता,,,
ज्वार मदन का जब है आता
रश्मि-विभा में रण ठन जाता,
तभी उभय नि:शेष समर्पण
ह्रदयों का उस पल हो जाता,
समय ठहर उस क्षण,है जाता,,,
श्वास सुरभि सी आती जाती
अधरों से मधु रस छलकाती,
आलिंगन आबद्ध युगल तब
प्रणय पाश में है बँध जाता,
समय ठहर उस क्षण,है जाता,,,
कुसुम केंद्र भेदन क्षण आता
मृदुता को, कर्कशता भाता
अग्नि शीत के बाहुवलय में,
अर्पण अपनें को कर पाता
समय ठहर उस क्षण,है जाता,,,,
विक्रम,,,
लिंक-vikram7:
आलिंगन आबध्द(आबद्ध ) युगुल(युगल ) तब
जवाब देंहटाएंप्रणय पाश में है बँध जाता,
बढ़िया प्रस्तुति ,समय ठहर उस क्षण है जाता
ram ram bhai
शनिवार, 22 सितम्बर 2012
असम्भाव्य ही है स्टे -टीन्स(Statins) से खून के थक्कों को मुल्तवी रख पाना
ठहरे ठहरे प्रणय पलों को, हमने इतराते देखा है।
जवाब देंहटाएंअग्नि शीत के बाहुवलय में,
जवाब देंहटाएंअर्पण अपनें को कर पाता
पूरी कविता में दार्शनिकता का पुट अपने अंदाज में कुछ नहीं, बहुत कुछ बिंदास होकर कह रहा है. यह अपनी-अपनी क्षमत है कि हम कितना समझ पते हैं इसे. आभार इस प्रौढ़ और माननीय पोस्ट के लिए. इस रचना से प्रमाणित होता है कि आपकी सोच कितनी पैनी है. आभार ..
वाह ! शानदार रचना !!
जवाब देंहटाएंमधुर पलो को समेटे एक नाज़ुक रचना ....
जवाब देंहटाएंबधाई!
मधुर स्मृतियों को साक्षी बनाती अदभुत प्रस्तुति और सुंदर शब्द सयोजन.
जवाब देंहटाएंबधाई.
वाह!
जवाब देंहटाएंआपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 24-09-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1012 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ
श्वास सुरभि सी आती जाती
जवाब देंहटाएंअधरों से मधु रस छलकाती,
आलिंगन आबध्द युगुल तब
प्रणय पाश में है बँध जाता,
समय ठहर उस क्षण,है जाता,,..
बहुत ही मधुर काव्य वर्षा हो रही है आज ... प्रेम में आलिंगनबध होने पे समय सचमें रुक जाए तो जीवन मधुर हो जाए ...
उम्दा रचना सर अति सुन्दर बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी कविता। चित्र का चयन भी बेहतरीन है। वाह!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत भावों से पूर्ण एक सार्थक रचना के लिए बधाइयां
जवाब देंहटाएंनमस्ते धीरेन्द्र जी ,आपके ब्लॉग पर आना सदा ही सार्थक रहा है ,बधाई शानदार लेखन हेतु|
जवाब देंहटाएंहिंदी के अनमोल शब्दों के प्रयोग ने आपकी पिछली पोस्ट की रचनाओं को भी पढ़ने के लिये बाध्य कर दिया. आदरणीय धीरेंद्र जी का आभार जिन्होंने आपका लिंक देकर श्रेष्ठ साहित्य से साक्षात्कार का सु-अवसर प्रदान किया.विक्रम जी, बधाई.....
जवाब देंहटाएंबेजोड काव्य रचना !!
जवाब देंहटाएंश्रंगार का बेजोड़ समन्वय ..सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंखुबसूरत भाव..सुन्दर अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंविक्रम जी की सशक्त लेखनी से परिचय कराने पर आभार !
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही सुन्दर धीरेन्द्र जी
जवाब देंहटाएंसमय ठहर उस क्षण,है जाता,,,
जवाब देंहटाएंज्वार मदन का जब है आता
रश्मि-विभा में रण ठन जाता, ... बहुत ही बढ़िया
ज्वार मदन का जब है आता
हटाएंरश्मि-विभा में रण ठन जाता
अरे .................. :)बाप रे ............ !
बढ़िया है यह समय की बेबसी
जवाब देंहटाएंविक्रम जी की रचना से परिचय कराने के लिए धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंइसमें कुछ खास है जो हममें श्रृंगार रस का संचार करता है।
जवाब देंहटाएंविक्रम जी की रचना पढ़वाने हेतु धन्यवाद ... सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव
श्वास सुरभि सी आती जाती
अधरों से मधु रस छलकाती,
आलिंगन आबध्द युगुल तब
प्रणय पाश में है बँध जाता,
क्या कहने
वाह ... बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन दार्शनिक अंदाज .....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....हिंदी शब्दों का बहुत अच्छा प्रयोग किया है ।
जवाब देंहटाएंश्रंगार रस में भिगोती बहुत सुन्दर प्रस्तुति...शब्दों और भावों का अद्भुत संयोजन..
जवाब देंहटाएंbahut khub ...sundar rachna
जवाब देंहटाएंएक नए अंदाज में ..अद्भुत शब्द समन्वय.. परदे में रह भी पर्दा उठा दिया , श्रृंगार और प्रणय गीत सुन्दर भाव
जवाब देंहटाएंभ्रमर ५
Merii rachana ko apane blag ke maadhyam se prakaashit karane ke liye aapaka aabhaar,saath hii racana par apanii raay vyakt karane vaale sabhii maananiiy jano ko bahut-bahut dhanyavaad.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद कोई ऐसी रचना
पढने को मिला ! बहुत -बहुत बधाई !
Merii rachana ko apane blag ke maadhyam se prakaashit karane ke liye aapaka aabhaar,saath hii racana par apanii raay vyakt karane vaale sabhii maananiiy jano ko bahut-bahut dhanyavaad.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना..
:-)
संयोग श्रृंगार की अनूठी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबीमारी नें साहब मुझको खूब रुलाया
जवाब देंहटाएंकई माह से बिस्तर में था मुझे सुलाया
और धीर जी ब्लॉग जगत में जमें हुए हो
''अधरों से मधु रस''में अब तक रमें हुए हो.
बेहतरीन प्रस्तुति.
विजय,आपकी टिप्पणी,होती है मजेदार
हटाएंथोड़ा सा जोर लगाए,आये पोस्ट निखार,,
बहुत दिनों बाद आपको पोस्ट पर पाकर अच्छा लगा,आभार,,,
शीघ्र पूर्ण रूप से स्वस्थ हो,,
हटाएंकठिन किंतु सरस।
आलिंगन आबद्ध युगल तब
प्रणय पाश में है बंध जाता
समय ठहर उस क्षण जाता
अतिश्रेष्ठ भावाभिव्यंजना साथ में शब्दों के कारीगर हैं, आप कठिनतम हिंदी शब्दों को ऐसे आबद्ध किया कि वे कठिनाई के कवच से बाहर निश्छल सहज सिर्फ अर्थ बयां करने लगे। बहुत खूब धीरेंद्र जी।
ब्लॉग में कुछ दिक्कत है मुझे टिप्पणी करने में कठिनाई हो रही है।
sundar rachna ...!!
जवाब देंहटाएंजबरदस्त प्रस्तुति ।।
जवाब देंहटाएंसजन श्वांस उच्छवासों में, सजनी जीवन सजना है ।
दिल दोनों धौकनी बने, कानों को तो बजना है ।
स्वेद-कणों की बात करें क्या, गंगा यमुने का संगम हो
जीवन के इन प्रेम पलों हित, जाने क्या क्या तजना है ।।
waah bahut khoob....
जवाब देंहटाएंकठिन किंतु सरस।
जवाब देंहटाएंआलिंगन आबद्ध युगल तब
प्रणय पाश में है बंध जाता
समय ठहर उस क्षण जाता
अतिश्रेष्ठ भावाभिव्यंजना साथ में शब्दों के कारीगर हैं, आप कठिनतम हिंदी शब्दों को ऐसे आबद्ध किया कि वे कठिनाई के कवच से बाहर निश्छल सहज सिर्फ अर्थ बयां करने लगे। बहुत खूब धीरेंद्र जी।
कठिन किंतु सरस।
जवाब देंहटाएंआलिंगन आबद्ध युगल तब
प्रणय पाश में है बंध जाता
समय ठहर उस क्षण जाता
अतिश्रेष्ठ भावाभिव्यंजना साथ में शब्दों के कारीगर हैं, आप कठिनतम हिंदी शब्दों को ऐसे आबद्ध किया कि वे कठिनाई के कवच से बाहर निश्छल सहज सिर्फ अर्थ बयां करने लगे। बहुत खूब धीरेंद्र जी।
ब्लॉग में कुछ दिक्कत है मुझे टिप्पणी करने में कठिनाई हो रही है।
अति सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रेममय रचना |
जवाब देंहटाएंवाह बहुत बढिया
जवाब देंहटाएंज्वार मदन का जब है आता
जवाब देंहटाएंरश्मि-विभा में रण ठन जाता
अनुभूति की अद्धभुत ,अभिव्यक्ति है !
Vaah kya shudh hindi hai.Padhkar to accha lga.lekin samajh nhi paya.
जवाब देंहटाएंमधुर पलो को संजोये एक नाज़ुक रचना ....
जवाब देंहटाएंन्यूज़ पोर्टल
उत्कृष्ठ रचना है
जवाब देंहटाएंरस ....बरसाती .....गहराई का आभास कराती
एक एक लाइन मदमस्त कर गई
वाह और आह ही कह सकते है
भाव के साथ बेहतर शब्दों का चयन
हार्दिक बधाई
Not only time but even earth stops to move at that very moment!
जवाब देंहटाएंA lovelorn poem!
श्वास सुरभि सी आती जाती
जवाब देंहटाएंअधरों से मधु रस छलकाती,
sundar .....
बहुत ही प्रौढ़ रचना है , आचार्य रजनीश के दर्शन को समेटती हुई अद्भुद रचना लगी | समय ठहरना ही तो समाधी है |
जवाब देंहटाएंbhetreen
जवाब देंहटाएंश्वास सुरभि सी आती जाती
जवाब देंहटाएंअधरों से मधु रस छलकाती,
sundar .....
sach hi hai, in palon me vakayi, samay ke thahrne ka ehsaas hota hai, bahut khoobsurat abhivyaktie aur behtreen tippaniyan, dono rasbhari hain!!
जवाब देंहटाएंWah...shbdo ke karigar hai,vikram ji.badhai
जवाब देंहटाएंआलिंगन आबद्ध युगल तब
जवाब देंहटाएंप्रणय पाश में है बँध जाता,
क्या बात हैं कविता की सबसे अच्छी कडी
आभार