यह स्वर्ण पंछी था कभी....
यह स्वर्ण पंक्षी था कभी,
मृतप्राय घोषित कर दिया,
भूमि सात्विक थी कभी
मद्पेय क्लेशित कर दिया!
आक्षेप किस पर क्या रखू
अवयव निरूपित हूँ स्वयं,
यह स्वर्ण पंक्षी है वही
जो जी रहा रहमो करम!
तू मार्ग दर्शक था कभी
अब्बल में पाई सभ्यता,
तर्कस में तेरे बाण है,
पर कोई न एकलव्य सा!
कलंक की गठरी मेरी,
काँधो पर तेरे रख दिया,
यह स्वर्ण पंक्षी था कभी
मृतप्राय घोषित कर दिया!
शागिर्द तुझको कह रहे
प्रतिपल तुझे है कूटते.
सर्वत्र यह संघर्ष है
आक्षेप दूजों के लिये!
मृतप्राय इसको कर दिया,
अटका हुआ थोड़ा जिया,
आशा लगाए बैठी है,
अबला,जियेगा अब पीया!
अबला,जियेगा अब पीया!
बस नब्ज इसकी चल रही
कर्जो से दिल बैठा हुआ,
इस तख्त के संघर्ष में
कंगाल इसको कर दिया!
सर्दी हुई थी, जब इसे
इमली खिलाकर बल दिया,
यह स्वर्ण पंक्षी था कभी,
मृतप्राय घोषित कर दिया!
dheerendra,"dheer"
शनिवार 23/06/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. आपके सुझावों का स्वागत है . धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंक्या कहने
बहुत लाजवाब रचना..आभार
जवाब देंहटाएंदेश काल की चाल का, सही निरूपण मित्र ।
जवाब देंहटाएंअक्षरश: हैं खींचते, चिड़िया चित्र विचित्र ।
चिड़िया चित्र विचित्र, गई अब चिड़िया सोने ।
सोने की उस काल, आज भी देख नमूने ।
रविकर धरिये धीर, पीर यह बढती जाए ।
जो मारे सो मीर, कहावत डाकू गाये ।।
सोने की चिड़िया आज पंखविहीन हो गयी लगती है....लेकिन यह भी एक आभास मात्र है, भारत के पास एक ऐसा धन है जो कभी समाप्त नहीं हो सका...
जवाब देंहटाएंकलंक की गठरी मेरी,
जवाब देंहटाएंकाँधो पर तेरे रख दिया,
यह स्वर्ण पंक्षी था कभी
मृतप्राय घोषित कर दिया! लाजबाब रचना
कलंक की गठरी मेरी,
जवाब देंहटाएंकाँधो पर तेरे रख दिया,
यह स्वर्ण पंक्षी था कभी
मृतप्राय घोषित कर दिया!
बहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....
बेहतरीन रचना..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंकलंक की गठरी मेरी,
काँधो पर तेरे रख दिया,
यह स्वर्ण पंक्षी था कभी
मृतप्राय घोषित कर दिया!
बेहतरीन !!
जवाब देंहटाएंवाह! उत्तम रचना!!
जवाब देंहटाएंये है मेरा इंडिया क्या बात है बोल श्री मनमोहन की जै बोल श्री सोनिया मम्मी की जै ... . .कृपया यहाँ भी पधारें -
जवाब देंहटाएंram ram bhai
बुधवार, 20 जून 2012
ये है मेरा इंडिया
ये है मेरा इंडिया
http://veerubhai1947.blogspot.in/
कलंक की गठरी मेरी,
जवाब देंहटाएंकाँधो पर तेरे रख दिया,
यह स्वर्ण पंक्षी था कभी
मृतप्राय घोषित कर दिया!
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !!
बहुत लाजवाब अभिव्यक्ति !!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंहै देश बनता लोक से
जवाब देंहटाएंअन्यथा मृदा औ स्वर्ण क्या
है दोष देता हर कोई
सोचें स्वयं कि क्या किया!
तू मार्ग दर्शक था कभी
जवाब देंहटाएंअब्बल में पाई सभ्यता,
तर्कस में तेरे बाण है,
पर कोई न एकलव्य सा ...
ये सच है की देश ये सब था ... पहले अब भी हो सकता है अगर देश के नौजवान उसी भूमिका में दुबारा आ जाएँ ...
स्वर्ण पंक्षी था कभी
जवाब देंहटाएंआपकी रचना ने जीवित कर दिया
स्वर्ण पक्षी नहीं पर पक्षी तो अभी भी है .... पंख नोचे जा रहे हैं फिर भी अपने दम पर उड़ान जारी है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
सार्थक चिंतन के साथ उत्तम रचना .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सटीक पोस्ट।
जवाब देंहटाएंकलंक की गठरी मेरी,
जवाब देंहटाएंकाँधो पर तेरे रख दिया,
यह स्वर्ण पंक्षी था कभी
मृतप्राय घोषित कर दिया!
sundar panktiyaan ....
वाह सुन्दर पोस्ट.बधाई.
जवाब देंहटाएंमोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
वाह बहुत खूब ...बढिया
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
काबिले तारीफ़ रचना है सर
जवाब देंहटाएंहिन्दी दुनिया ब्लॉग (नया ब्लॉग)
सुंदर अनोखी रचना ।
जवाब देंहटाएंबस नब्ज इसकी चल रही
जवाब देंहटाएंकर्जो से दिल बैठा हुआ,
इस तख्त के संघर्ष में
कंगाल इसको कर दिया!
आदरणीय धीरेन्द्र जी ..खूबसूरत प्रस्तुति ..इस पक्षी को हार नहीं माननी है अभी भी बड़ा दम है ...उड़ान भरते चले ....
बधाई हो
भ्रमर ५
भास्कर भूमि में already पढ़ी ये रचना..
जवाब देंहटाएंनिस्संदेह सुन्दर..
सादर
शुचिता की संजीवनी चाहिए,,, स्वर्ण-पंछी पुनर्जीवित हो उठेगा
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
बहुत सुन्दर......................
जवाब देंहटाएंप्यारी रचना.......................
सादर
sunder bimb prayog.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति क्षमा चाहती हूँ देर से पढ़ी ...बहुत पसंद आई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक रचना |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंबस नब्ज इसकी चल रही
जवाब देंहटाएंकर्जो से दिल बैठा हुआ,
इस तख्त के संघर्ष में
कंगाल इसको कर दिया!
sunder bhavon se bhari kavita
rachana
बस नब्ज इसकी चल रही
जवाब देंहटाएंस्वर्ण पक्षियों का यही हाल होता है ...
बहुत सुन्दर भाव .. सामाजिक सरोकार युक्त
सुंदर भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबस नब्ज इसकी चल रही
जवाब देंहटाएंकर्जो से दिल बैठा हुआ,
इस तख्त के संघर्ष में
कंगाल इसको कर दिया!
samsamyik dil ko chhune wali rachna !
सामयिक रचना ....!
जवाब देंहटाएंकलंक की गठरी मेरी,
जवाब देंहटाएंकाँधो पर तेरे रख दिया,
यह स्वर्ण पंक्षी था कभी
मृतप्राय घोषित कर दिया!
गहन भाव,अति सुंदर.........
bahut khub:-)
जवाब देंहटाएंapne bilkul sahi bat ki......desh ko logo ne puri tarah se loot liya....bahut badhiya
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उम्दा लेखन, बेहतरीन अभिव्यक्ति
हिडिम्बा टेकरी
चलिए मेरे साथ
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बहुत ही सार्थक और बेहतरीन रचना...
जवाब देंहटाएं:-)
वह स्वर्ण पंछी आज भी है
जवाब देंहटाएंजीवित पंख विहीन
पुनः उगेंगे पँख
भूमि यह नहीं हुई श्री विहीन
नहीं हुई श्री विहीन
अभी है बाकि दमखम
फिर चहकेगी हर बगिया में
भारत भू के नभ मण्डल पर ...।
....धन्यवाद ।
सुन्दर चित्रण... खूबसूरत रचना...
जवाब देंहटाएंसादर बधाई।
बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंbahut hee sunder rachna...sone kee chidia phir se chhke iske liye ham sabhi ko milkar prayas karna padega
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएं