गुरुवार, 24 मई 2012
सुनहरा कल,,,,,
सुनहरा कल,
सड़क तट पर
लिखे हुए अनगिनत नारे
हम एक अरसे से
पढ़ रहे है,
उनमे से एक
'हम सुनहरे कल
की ओर बढ़ रहे है'!
हमने नारी की पीड़ा को
बहुत नजदीक से
मौन रह कर देखा है,
तंदूर में रोटी की जगह
मानव ने एक अबला को
किस प्रकार सेंका है!
नारी के यौन शोषण से
पापों का घडा
ये नर पिशाच भर रहें है,
फिर भी हम अविरल
सुनहरे कल की बात कर रहे है!
औषधालय में रोज
नूतन अग्निदग्धा लाई जाती है,
दहेज न मिलने पर,
बेचारी जबरन जलाई जाती है!
जलती हुई अबला की
चीखें हमे सुनाई नही देती,
लुटती हुई नारी की अस्मत
हमे दिखाई नही देती!
सब कुछ देखते हुए भी,
हम पूरी तरह मौन है,
हम अनभिज्ञ है कि
इस सुनहरे कल का
निर्माता कौन है-?,,,,,
dheerendra,"dheer":
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
बढ़िया प्रस्तुति .कृपया 'प्रकार ' कर लें पकार को .शुक्रिया
जवाब देंहटाएंहमने नारी की पीड़ा को
बहुत नजदीक से
मौन रह कर देखा है,
तंदूर में रोटी की जगह
मानव ने एक अबला को
किस पकार सेंका है!
यही स्थिति रही तो आने वाला कल बड़ा भयानक होगा !
जवाब देंहटाएंसुनहरे कल की बात सब व्यर्थ है ! अच्छी रचना बधाई !
सब कुछ देखते हुए भी,
जवाब देंहटाएंहम पूरी तरह मौन है,
हम अनभिज्ञ है कि
इस सुनहरे कल का
निर्माता कौन है-?
यह बात तो सही कहा आपने...
विचारणीय रचना!
हम अनभिज्ञ है कि
जवाब देंहटाएंइस सुनहरे कल का
निर्माता कौन है-?,,,,,
ज्वलंत प्रश्न ? सार्थक ,उद्वेलित करती सामयिक रचना ...
"सेंक लेते हैं जली आग पर रोटियां ,जलाई किसने पता कर लेते तो अच्छा था " .
मार्मिक चित्रण ..... साभार /
अज कल के हालात पर सटीक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंये कल कों बदलना होगा ... विशवास और मजबूती से ...
जवाब देंहटाएंवाह! फिर भी ये नारा ...
जवाब देंहटाएंहम सुनहरे कल
की ओर बढ़ रहे है'!
सटीक !
मुबारक हो !
पूछ रहे सब,अपने में ही मौन है
जवाब देंहटाएंक्या जाने,कल का निर्माता कौन है!
विकट स्थिति है ।
जवाब देंहटाएंलेकिन निपटना तो होगा ।
सुन्दर प्रस्तुति ।
marmik aur sundar post.
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक और मार्मिक प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंयही स्थिति रही तो सुनहरापन कठिन होगा।
जवाब देंहटाएंwah ..nari ki mansik pida ko apne bakhubi pahchana hai. rachna ki jitni tarif karu kam hi hogi..shabd hi nahi mil rahe..bahut bahut sarahniy
जवाब देंहटाएंबढ़िया धीरेन्द्र भाई ...
जवाब देंहटाएंआभार
बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंयह वाली कविता बिलकुल दिल से निकली है,प्रभावित करती है !
जवाब देंहटाएंअनूठी शैली के माध्यम से व्यवस्था पर एक करारा व्यंग्य. बहुत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंयौन शोसन और दहेज़ प्रथा पर सटीक प्रहार ..........इन सब कों कतम किये बिना पगति की बाते कोखाली है समाज को राह दिखाती हुई प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंह्रिदय उद्वेलित कर रही है रचना ...!!
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखा है ....!!
शुभकामनायें.
सब कुछ देखते हुए भी,
जवाब देंहटाएंहम पूरी तरह मौन है,
हम अनभिज्ञ है कि
इस सुनहरे कल का
निर्माता कौन है-?,,,,,
sach ko vyakt karti sundar bhav purn kavita !
आज की क्रूर सच्चाई को बयान करती पोस्ट सच में क्या ये सब कुकृत्य करके समाज को देश को विकसित कर सकेंगे क्या ??
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...नारी की दशा और पीड़ा को दर्शाती हुयी ..काविले तारीफ़ रचना ...और हम सुनहरे कल की ओर बढ़ रहे हैं ??
जवाब देंहटाएंभ्रमर ५
बहुत सटीक और मार्मिक प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंsir
जवाब देंहटाएंek bahut hi marmik par kadva sach jo aaj tak barkaraar hai aur shayd age bhi rahega fir bhi ham jaane kis ummid se ek sunhre kal ka sapna man me sajaaye biathe hai----
hriday sparshhi rachna
sadar naman
poonam
जब हम मौन हैं तो इस सुनहरे कल का निर्माता कौन होगा !
जवाब देंहटाएंप्रश्न तो वाजिब है !
सुनहरे कल के नाम पर यह कौन शमशान बना रहा .... और रौशनी के नाम पर चिताएं जला रहा !
जवाब देंहटाएंनारी की स्िथती के सुधार तो आया है समय के साथ और आने की सम्भावना है
जवाब देंहटाएंयुनिक तकनीकी ब्लाग
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंaapki post vartman par ktahsh jar rahi haen jo hamara hi bnaya gya hae.aapne mera margdarshan kiya aabhr.
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रश्न उठाती एक सजग जिम्मेदार रचना....
जवाब देंहटाएंसादर बधाई
''क्या सच में कल ऐसी कोई सुनहरी सुबह आएगी ''??????
जवाब देंहटाएंबहुत हि बढिया- व्यवस्था एवं समाज के कुप्रथा पर प्रहार करती दमदार रचना
जवाब देंहटाएंवह सुबह कभी तो आयेगी - इसी आशा पर जीवन बीत रहा है !
जवाब देंहटाएंभाई साहब कथित आर्थिक वृद्धि भी ऐसी ही मृगमरीचिका रच रही है .अरबों पति यहाँ गरीबन को चिढा रहें हैं .कारें आरामदायक पंचर लगी कारों का लूंगी का मज़ाक उड़ा रहीं हैं .औरत तो चंद नारीवाद का परचम लेके चलने वाली अधिकार सचेत औरत के अलावा अब और भी सशक्त जिंस बनाके रख दी गई है उपभोग की .
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन रचना.सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंदूसरा ब्रम्हाजी मंदिर आसोतरा में .....
एक कड़वा सच... बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक और मार्मिक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंविजुअल बेसिक पाठ नंबर -8 अब हिंदी में
इस कल के निर्मात भी हम ही हैं और इसको भोगने वाले भी हम हीं होंगे।
जवाब देंहटाएंsunder shabdon me yatharth ks behtareen sajeev chitran..hardik badhayee ke sath
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनारी मन की पीड़ा को बखूबी बयां किया है..
जवाब देंहटाएंमार्मिक रचना...
Very nice post.....
जवाब देंहटाएंAabhar!
हम सुनहरे कल की और बढ़ रहें हैं इसलिए सिर्फ १० जनपथ को तक रहें हैं .बढ़िया प्रस्तुति है .... .कृपया यहाँ भी पधारें -
जवाब देंहटाएं.
ram ram bhai
रविवार, 27 मई 2012
ईस्वी सन ३३ ,३ अप्रेल को लटकाया गया था ईसा मसीह को सूली पर
http://veerubhai1947.blogspot.in/
तथा यहाँ भी -
चालीस साल बाद उसे इल्म हुआ वह औरत है
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.i
सचमुच, बहुत चिंताजनक स्थिति है।
जवाब देंहटाएंसमय की सच्छी तस्वीर दिखाती रचना।
समाज का विद्रूप चेहरा उघाड़ने का प्रयास करती सार्थक रचना.....
जवाब देंहटाएंसच में सुनहरे कल का निर्माता कौन है ... जब स्तिथि ऐसी है ... बहुत सुन्दर चिंतन समाज की स्तिथि का
जवाब देंहटाएंjindagi ki katu hakikat hai ye panktiyan....
जवाब देंहटाएंसंवेदना से पगी अभिव्यक्ति ! दिल पर गहरा असर छोड़ती है और बहुत-कु सोचने पर मज़बूर करती है !
जवाब देंहटाएंअति सुंदर
सब कुछ देखते हुए भी,
जवाब देंहटाएंहम पूरी तरह मौन है,
हम अनभिज्ञ है कि
इस सुनहरे कल का
निर्माता कौन है-?,,,,,
सबसे अहम बात तो यही है कि हम सभी ये सब देखते और खामोश हैं. आखिर कौन लोग हैं जो ऐसा करते? सुनहरे कल का निर्माता ही तो हमारे आज और कल को भस्म कर रहा है. हम सभी मूक हैं. ज्वलंत विषय पर बहुत अच्छी रचना, बधाई.
बहुत सटीक अभिव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंआशा
एक कड़वा सच ...आपकी लेखनी के माध्यम से सामने आया ...आभार
जवाब देंहटाएं