कभी कभी
देखी है उनकी आँखें, अपलक कभी-कभी,
सपने भी देखे हमने, दिन में कभी-कभी!
किस सोचमें डूबी, किस बात का है गम,
चेहरा जो उनका देखा, मैंने कभी - कभी!
गमसुम सी जा रही थी , मेरी गली से वो,
हाँ"मुड के देखती थी, दर मेरा कभी-कभी!
अनजान मुझसे न थी, पहचान थी पुरानी,
वह दोस्ती निभाती थी, मुझसे कभी-कभी!
DHEERENDRA,"dheer"
देखी है उनकी आँखें, अपलक कभी-कभी,
सपने भी देखे हमने, दिन में कभी-कभी!
किस सोचमें डूबी, किस बात का है गम,
चेहरा जो उनका देखा, मैंने कभी - कभी!
गमसुम सी जा रही थी , मेरी गली से वो,
हाँ"मुड के देखती थी, दर मेरा कभी-कभी!
अनजान मुझसे न थी, पहचान थी पुरानी,
वह दोस्ती निभाती थी, मुझसे कभी-कभी!
DHEERENDRA,"dheer"
अनजान मुझसे न थी, पहचान थी पुरानी,
जवाब देंहटाएंवह दोस्ती निभाती थी, मुझसे कभी-कभी!
बहुत खूब
बहुत खूब, यह कभी कभी की दोस्ती तो मार देती है।
जवाब देंहटाएंक्या बात है , बहुत खूब !
जवाब देंहटाएं" पुराणी दोस्ती बा-ख्याल ,इजलास खाली है
खुशुबू शराब की फिजां में गिलॉस खाली है "
न पीते हो न पिलाते हो,खाली गिलॉस दिखाते हो
हटाएंफिजां की खुशुबू को छोडो,मयखानें कब बुलाते हो
अच्छा है, लेकिन कभी-कभी।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंकभी कभी |
हटाएंबहुत बदिया प्रस्तुति |
बधाई धीरेन्द्र जी ||
अनजान मुझसे न थी, पहचान थी पुरानी,
जवाब देंहटाएंवह दोस्ती निभाती थी, मुझसे कभी-कभी!
bahut sundar panktiyaan ......
वाह वाह बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंवाह: बहुत खुबसुरत रचना...धीरेन्द्र जी..बधाई
जवाब देंहटाएंअनजान मुझसे न थी, पहचान थी पुरानी,
जवाब देंहटाएंवह दोस्ती निभाती थी, मुझसे कभी-कभी!
बहुत खूबसूरत ..
खूबसूरत रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना..
जवाब देंहटाएंगमसुम सी जा रही थी , मेरी गली से वो,
जवाब देंहटाएंहाँ"मुड के देखती थी, दर मेरा कभी-कभी!..
वाह क्या अंदाज़ है ... खूबसूरत सा शेर है मिकम्मल गज़ल का ...
बहुत सुन्दर रचना .......अनजान मुझसे न थी, पहचान थी पुरानी,
जवाब देंहटाएंवह दोस्ती निभाती थी, मुझसे कभी-कभी!
उम्मीद रखे रहिये
जवाब देंहटाएंआ जायेंगे चलते हुए
तेरे दर पर कभी-कभी !
दोनों की उम्मीद एक सी,साझा लगे तराना
हटाएंघर की मुर्गी दाल बराबर,गाते रहो फसाना
कभी-कभी सोचता हूँ ऐसा मैं,
जवाब देंहटाएंकि काश हो पाए हमारे साथ भी ऐसा, कभी-कभी... :)
उस गली से निकले थे हम भी कभी कभी
जवाब देंहटाएंपर दीदार न हुआ हमें उनका अभी तक कभी
वाह वाह वाह बहुत खूब |
गमसुम सी जा रही थी , मेरी गली से वो,
जवाब देंहटाएंहाँ"मुड के देखती थी, दर मेरा कभी-कभी!
बहुत खूबसूरत अंदाज़े बयान!!
अनजान मुझसे न थी, पहचान थी पुरानी,
जवाब देंहटाएंवह दोस्ती निभाती थी, मुझसे कभी-कभी!
vaah!!!!kyaa baat hai sunder prastuti......
थी दबी-दबी सी भीतर, इक आग राख में
जवाब देंहटाएंउठती थी पा के जल-जल,झोंका कभी-कभी!
सुंदर रचना ....!
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ...!!
धीरेन्द्र जी.. आपकी रचनाओं में गज़ब की विविधता देखने को मिलती है और हर बार एक नए मानदंड स्थापित करती है.. ऎसी रचनाएं देखने को मिलती हैं कभी-कभी!!
जवाब देंहटाएंअनजान मुझसे न थी, पहचान थी पुरानी,
जवाब देंहटाएंवह दोस्ती निभाती थी, मुझसे कभी-कभी!
वाह..... कितने सुन्दर शव्द......:)
मज़ा आ गया....:)
वाह क्या बात है!! आपने बहुत उम्दा लिखा है...बधाई
जवाब देंहटाएंगमसुम सी जा रही थी , मेरी गली से वो,
जवाब देंहटाएंहाँ"मुड के देखती थी, दर मेरा कभी-कभी!
वाह ...बहुत खूब...
अत्यन्त भावपूर्ण रचना...
आप अच्छा लिख रहे हैं भाई ....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
अनजान मुझसे न थी, पहचान थी पुरानी,
जवाब देंहटाएंवह दोस्ती निभाती थी, मुझसे कभी-कभी!
...बहुत खूब...
बहुत खूब ....
जवाब देंहटाएंगमसुम सी जा रही थी , मेरी गली से वो,
जवाब देंहटाएंहाँ"मुड के देखती थी, दर मेरा कभी-कभी!
....बहुत खूब !..बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
गमसुम सी जा रही थी , मेरी गली से वो,
जवाब देंहटाएंहाँ"मुड के देखती थी, दर मेरा कभी-कभी!
lagata hae, gahari chot kha kar is dar se gayii hae. sundar rachana.
रचना आपको अच्छी लगी,....आभार नंदित्ता जी
हटाएंवाह बहुत खूब जी .....
जवाब देंहटाएंधीर जी आपका भी जबाब नहीं.
जवाब देंहटाएंफोटो की आँखें,बाप रे बाप.
आप कहे और हम न आये,ऐसी कोई बात नहीं
जवाब देंहटाएं'ग़ालिब''होते वो भी रोते,मेरी कुछ औकात नहीं
आप आये मेरे पोस्ट पर,आपकी जर्रानवाजी है
हटाएंसटीक टिप्पणियाँ देना आपकी हाजिर जबाबी है
bahut khub|||
जवाब देंहटाएंbahut hi badhiya rachana...
गमसुम सी जा रही थी , मेरी गली से वो,
जवाब देंहटाएंहाँ"मुड के देखती थी, दर मेरा कभी-कभी!
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
bahut khub
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव हैं,खूबसूरत रचना।
जवाब देंहटाएंअनजान मुझसे न थी, पहचान थी पुरानी,
जवाब देंहटाएंवह दोस्ती निभाती थी, मुझसे कभी-कभी....ye bhi achchi bat hai varna log to kabhi kabhi bhi dosti nahi nibha sakte ab kam ke bhane yad karte hain....
गमसुम सी जा रही थी , मेरी गली से वो,
हटाएंहाँ"मुड के देखती थी, दर मेरा कभी-कभी! waah bahut bahut khub ..bahtreen blog ..shukriya
आभार,.....रंजना जी,....
हटाएंशुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंसादर!
देखी है उनकी आँखें, अपलक कभी-कभी,
जवाब देंहटाएंसपने भी देखे हमने, दिन में कभी-कभी!
व्यतीत के दरीचों से अच्छा बिम्ब है वर्तमान को चिढाता सा .
बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंगमसुम सी जा रही थी , मेरी गली से वो,
जवाब देंहटाएंहाँ"मुड के देखती थी, दर मेरा कभी-कभी!
एक बेहतरीन नज्म। प्यारी प्यारी...... केवल चार दोहों में ही कविता को फिनिस करना कोई आपसे सीखे, सुन्दर. आभार !
बहुत प्यारी रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंदेखी है उनकी आँखें, अपलक कभी-कभी,
जवाब देंहटाएंसपने भी देखे हमने, दिन में कभी-कभी
बहुत खूब.... दिन में देखे सपने ,अधिकतर हकीकत में बदल जाते हैं .... !!
अनजान मुझसे न थी, पहचान थी पुरानी,
जवाब देंहटाएंवह दोस्ती निभाती थी, मुझसे कभी-कभी!
bhaut khoob sir....
isi shirhak par meri bhi ek kavita padhein http://www.poeticprakash.com/2009/06/kabhi-kabhi.html
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंBicycle shops in north London
जवाब देंहटाएंExcellent Working Dear Friend Nice Information Share all over the world.God Bless You.
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