मंगलवार, 17 अप्रैल 2012
कवि,...
कवि
क्या अपनी, परिभाषा लिख दूँ
क्या अपनी,अभिलाषा लिख दूँ
शस्त्र कलम को, जब भी कर दूँ
तख्तो त्ताज ,बदल के रख दूँ
केंद्र बिंदु, मष्तिक है मेरा
नये विषय का , लगता फेरा
लिखता जो , मन मेरा करता
मेरी कलम से , कायर डरता
क्रोधित होकर कभी न लिखता
सदा सहज बन कर ही रहता
विरह वेदना ,पर भी लिखता
प्यार भरी भी , रचना करता
कभी नयन को,रक्तिम करता
कभी मौन हूँ, सब को करता
कभी वीरता के , गुण गाता
दुर्गुण को भी , दूर भगाता
मन मेरा है, उड़ता रहता
अहंकार से , हरदम लड़ता
गुनी जनीं का ,आदर करता
सारा जग,कवि मुझको कहता
DHEERENDRA,"dheer"
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शस्त्र कलम को, जब भी कर दूँ
जवाब देंहटाएंतख्तो त्ताज ,बदल के रख दूँ
behatariin rachana
कवि मन और कवि कर्म के हर पक्ष को आपने काव्यात्मक अभिव्यक्ति दी है।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
जवाब देंहटाएंचर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
बहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया बधाई ......
जवाब देंहटाएंकवितायेँ लिखते रहें,
जवाब देंहटाएंकवि-ह्रदय भी बने रहें...यही कामना है !
कुछ भी लिखिए ..कैसे भी..!!!:)
जवाब देंहटाएंkalamdaan
bahut sundar.
जवाब देंहटाएंकभी नयन को,रक्तिम करता
जवाब देंहटाएंकभी मौन हूँ, सब को करता
कभी वीरता के , गुण गाता
दुर्गुण को भी , दूर भगाता... कवि का कमाल
bahut badhiya .....
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
शस्त्र कलम को, जब भी कर दूँ
जवाब देंहटाएंतख्तो त्ताज ,बदल के रख दूँ
...और यही एक सक्षम कवि की खूबी है ..सुन्दर !
शस्त्र कलम को, जब भी कर दूँ
जवाब देंहटाएंतख्तो त्ताज ,बदल के रख दूँ
बहुत खुब .... !!
आज इस जोश-जुनून की बहुत जरुरत है .... !!
एक कवि के मन की अथाहता को वर्णन करती सुन्दर कविता..
जवाब देंहटाएंवाह कवि मन का सुन्दर चित्रण्।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर ढंग से व्यक्त मन के भाव..
जवाब देंहटाएंपहली बार ढंग से अपनी बात कही ,बधाई
जवाब देंहटाएंsnndar man ke aundar bhav.
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति - वाह
हटाएंtakhto taj badal ke rakh dun
जवाब देंहटाएंkamal ka likha hai bahut bahut badhai
rachana
क्या अपनी, परिभाषा लिख दूँ
जवाब देंहटाएंक्या अपनी,अभिलाषा लिख.....waah..
kavi hriday ka bahut sundar v sahi vishleshan.badhai.
जवाब देंहटाएंकवि और कविता ...
जवाब देंहटाएंकृपया अवलोकन करे
जवाब देंहटाएंhttp://vjay-vi.blogspot.in/2012/04/blog-post_17.html
मन मेरा है, उड़ता रहता
जवाब देंहटाएंअहंकार से , हरदम लड़ता
गुनी जनीं का ,आदर करता
सारा जग,कवि मुझको कहता
कवि की दुविधा कवि ह्रदय ही समझ सकता है.
सुंदर प्रस्तुति.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंक्या कहने
लिखते पढते रहिये सदा चाहे पढे न् कोय.
जवाब देंहटाएंब्लोगर तुम बन जाओगे, पढ़ना चाहे तोह
पढ़ना चाहे तोह, कमेंट्स तुम करते रहना
एक दंन हिट हो जाओगे,मानो तुम कहना,
लिखने का एक अच्छा प्रयास,...रोचक पोस्ट
इस दमदार टिपण्णी के साथ मेरे ब्लॉग में पधारे इसके लिये धन्यवाद, बस इतनी ही विनती है
ब्लॉगर तो बन गया हूँ भाई ,लेखक भी बनजाता
आप तरह की समझ कहाँ मिलती कोई बतलाता
यही भाव कवि कलम को गतिशील बनाये रखते हैं........बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंमन मेरा है, उड़ता रहता
जवाब देंहटाएंअहंकार से , हरदम लड़ता
गुनी जनीं का ,आदर करता
सारा जग,कवि मुझको कहता
हे कवि- 'ममता' पे तुम, कलम चलाओ ,
कार्टून एक हित बनवाओ ,
मुखड़ा चांदी सा दिखलाओ ,
आगे पीछे बीन बजाओ ,
इस नागिन को तुम नचवाओ -
शस्त्र कलम को, जब भी कर दूँ
जवाब देंहटाएंतख्तो त्ताज ,बदल के रख दूँ
बेहतरीन भाव संयोजन ...
दूँ शस्त्र कलम को, जब भी कर दूँ तख्तो त्ताज ,बदल के रख दूँ
जवाब देंहटाएंबहुत खूब... कवि मन के सुन्दर सशक्त भाव से ओतप्रोत रचना के लिए आभार आपका....
शस्त्र कलम को, जब भी कर दूँ तख्तो त्ताज ,बदल के रख दूँ
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
शस्त्र कलम को, जब भी कर दूँ
जवाब देंहटाएंतख्तो त्ताज ,बदल के रख दूँ
........waah bahut sunder sahi kaha aapne ....aur antim paira bhi bahut sunder laga . badhai .
कवि की रचना पर बधाई स्वीकारें!
जवाब देंहटाएंBahut sundar.......
जवाब देंहटाएंक्रोधित होकर कभी न लिखता
जवाब देंहटाएंसदा सहज बन कर ही रहता
विरह वेदना ,पर भी लिखता
प्यार भरी भी , रचना करता ...
कवी के मन कों खोल के रख दिया है आपने ... बहुत खूब ...
बहुत ही सुन्दर लगी पोस्ट।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और प्रभावी रचना...
जवाब देंहटाएंशस्त्र कलम को, जब भी कर दूँ
जवाब देंहटाएंतख्तो त्ताज ,बदल के रख दूँ......
सुन्दर सशक्त भाव से ओतप्रोत रचना .आभार आपका....
kavi ase hi to hote hai...bahut acchi kavita likhi hai aapne
जवाब देंहटाएंमन मेरा है, उड़ता रहता
जवाब देंहटाएंअहंकार से , हरदम लड़ता
गुनी जनीं का ,आदर करता
सारा जग,कवि मुझको कहता
..kavi hrday ki sundar udgaar..
शस्त्र कलम को, जब भी कर दूँ
जवाब देंहटाएंतख्तो त्ताज ,बदल के रख दूँ
WAH SIR KAVI KI SHAKTIYON KA BAKHOOBI BAYAN KR DIYA APNE ...BADHAI KE SATH ABHAR BHI.
सभी कवियों / ब्लोगर्स के मन की बात कही दी । बहुत सही लिखा है ।
जवाब देंहटाएंकवि / लेखक की कलम में बहुत ताकत होती है ।
बहुत ही सुंदर.
जवाब देंहटाएंसुन्दर सशक्त भाव ......
जवाब देंहटाएंसार्थक अभिव्यक्ती ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें .
आपकी इस कविता से ... मन प्रसन्न हो गया
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट--बेटे और बेटियो में फर्क क्या यही मॉडर्न समाज की पहचान है..?
----सुन्दर...सुन्दर...सुन्दर...
जवाब देंहटाएंन मैं कवि न शायर,गज़लगो,न मैं कोई कलमकार हूं।
उठती है दिल में बात जो, मैं उसी का तलबगार हूं ॥
क्या अपनी, परिभाषा लिख दूँ
जवाब देंहटाएंक्या अपनी,अभिलाषा लिख दूँ
शस्त्र कलम को, जब भी कर दूँ
तख्तो त्ताज ,बदल के रख दूँ
क्या खूब लिखा है.
जवाब देंहटाएंभावों की अच्छी अभिवयक्ति !
जवाब देंहटाएंHTML MODE में आप अपने टेक्स्ट के साईज व रंग को बदलें
अपने ब्लॉग पर Threaded Comments की सुविधा कैसे आन करें ?
कवि के कार्यों का,उसके भाव का बखूबी से परिचय दिया आपने।
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुती
अगर आपका मेरे ब्लॉग पर आगमन होता हैं तो ये मेरे लिए बहुत बड़ी खुशी की बात होगी... आभार
यह कवि का कमाल ही है कि वो कलम को शास्त्र बना सकता है.....तख़्त ओ ताज बदल सकता है .सार्थक रचना .
जवाब देंहटाएंकवि को प्रणाम!
जवाब देंहटाएंकवि कम शब्दों में ही बहुत कुछ कह देता है!...शक्तिमान होता है!...बढियां प्रस्तुति!...आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंसुन्दर :)
जवाब देंहटाएंआप अहंकार से हरदम लड़ते हैं और कुछ अहंकारी भी आपका समर्थन करते दिखे;इस उपलब्धि हेतु हमारी शुभ कामनाएँ आप के साथ हैं।
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणी का उत्तर वहाँ भी लिख दिया है उसकी कापी यहाँ भी दे रहा हूँ-
"मै रेखा जी फैन् हूँ और चाहता हूँ कि वे राजनीति में बढ़ चढ़ कर भाग ले..
निश्चित रूप से सफल रहेगीं,...." धीरेन्द्र जी जब आप ऐसा सोचते हैं तो कृपया दिग्विजय सिंह जी जो आप ही के प्रदेश और ब्रादरी के हैं उनसे कहें कि तमिलनाडू मे अपनी पार्टी मे 'रेखा 'जी को सक्रिय करें। मैंने यह लेख उनकी और राहुल जी की फेसबुक वाल पर लगा दिया था किन्तु कहने की स्थिति मे आप हैं।
रेखा जी को राजनीत में लाना चाहे आप
हटाएंकम था अब तक भांगड़ा,जो कत्थक चाहे आप
Bahut hii sashakt kavita. Badhaaii.
जवाब देंहटाएंsundar rachna
जवाब देंहटाएंwaah..Lajwaab. :)
जवाब देंहटाएंशब्द शब्द जोड़ कर कविता लिख दी ....वाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंधीर जी फिर से जरा पीर पर भी कुछ लिखिये
जवाब देंहटाएंबढ रहा दर्दे जिगर , इसको जरा कम करिये
विजय जी ....आपकी फरमाइश पूरी कर दी है ,.अपने बढते दर्द को कम कर ले....मनभावन
हटाएंMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...:गजल...
Bahut hi Sundar prastuti. Mere post par aapka intazar rahega. Dhanyavad.
जवाब देंहटाएंप्रेम जी ,
हटाएंआप के पोस्ट को देख सबको आमत्रण देते रहते है मै भी पंहुचा पर यह देख ''प्रत्येक जाति के लोग “उर्मिला” कह कर संबोधित करते थे। आशय था भरत एवं उर्मिला का प्रसंग। लोगों का अपना अभिमत था कि उर्मिला भरत जी का घर के चौखट पर फूल और दिया लेकर चौदह वर्ष तक इंतजार करती रहीं लेकिन इन लोगों ने तो चौदह वर्ष से भी अधिक इंतजार किया।''पढ कर चौका.
भाई जी बतलाएगें यह रामायण कब बदली ?
भरत संग उर्मिला कथा,भी अपने मन से लिखली ?
लक्षमण थे जब वन में ,उर्मिल क्या करती थी ?
लक्षमन भूल भरत के चौखट में रहती थी ?
मत बदलो इतिहास भूल यह होगी भारी
नहीं करेगी माफ कभी भी कोई नारी
bahut khoob paribhasha di he aapne ek kavi ki. sach kavi ki shakti se sab darte hai. meri nayi kavita 'chalte chalte ' par bhi najar dalen.
जवाब देंहटाएंयह भी खूब रही.
जवाब देंहटाएंबेशक
आप एक बहुत अच्छे कवि हैं.