मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

कवि,...





कवि

क्या अपनी, परिभाषा लिख दूँ
क्या अपनी,अभिलाषा लिख दूँ
शस्त्र कलम को, जब भी कर दूँ
तख्तो त्ताज ,बदल के रख दूँ

केंद्र
बिंदु, मष्तिक है मेरा
नये विषय का , लगता फेरा
लिखता जो , मन मेरा करता

मेरी कलम से , कायर डरता

क्रोधित होकर कभी न लिखता

सदा सहज बन कर ही रहता
विरह
वेदना ,पर भी लिखता
प्यार भरी भी , रचना करता

कभी
नयन को,रक्तिम करता
कभी मौन हूँ, सब को करता
कभी वीरता के , गुण गाता
दुर्गुण को भी , दूर भगाता

मन
मेरा है, उड़ता रहता
अहंकार से , हरदम लड़ता
गुनी जनीं का ,आदर करता
सारा जग,कवि मुझको कहता

DHEERENDRA,"dheer"

71 टिप्‍पणियां:

  1. शस्त्र कलम को, जब भी कर दूँ
    तख्तो त्ताज ,बदल के रख दूँ
    behatariin rachana

    जवाब देंहटाएं
  2. कवि मन और कवि कर्म के हर पक्ष को आपने काव्यात्मक अभिव्यक्ति दी है।

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
    चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
    आपकी एक टिप्‍पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......

    जवाब देंहटाएं
  4. कवितायेँ लिखते रहें,
    कवि-ह्रदय भी बने रहें...यही कामना है !

    जवाब देंहटाएं
  5. कुछ भी लिखिए ..कैसे भी..!!!:)
    kalamdaan

    जवाब देंहटाएं
  6. कभी नयन को,रक्तिम करता
    कभी मौन हूँ, सब को करता
    कभी वीरता के , गुण गाता
    दुर्गुण को भी , दूर भगाता... कवि का कमाल

    जवाब देंहटाएं
  7. शस्त्र कलम को, जब भी कर दूँ
    तख्तो त्ताज ,बदल के रख दूँ
    ...और यही एक सक्षम कवि की खूबी है ..सुन्दर !

    जवाब देंहटाएं
  8. शस्त्र कलम को, जब भी कर दूँ
    तख्तो त्ताज ,बदल के रख दूँ

    बहुत खुब .... !!
    आज इस जोश-जुनून की बहुत जरुरत है .... !!

    जवाब देंहटाएं
  9. एक कवि के मन की अथाहता को वर्णन करती सुन्दर कविता..

    जवाब देंहटाएं
  10. वाह कवि मन का सुन्दर चित्रण्।

    जवाब देंहटाएं
  11. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत ही सुन्दर ढंग से व्यक्त मन के भाव..

    जवाब देंहटाएं
  13. पहली बार ढंग से अपनी बात कही ,बधाई

    जवाब देंहटाएं
  14. takhto taj badal ke rakh dun
    kamal ka likha hai bahut bahut badhai
    rachana

    जवाब देंहटाएं
  15. क्या अपनी, परिभाषा लिख दूँ
    क्या अपनी,अभिलाषा लिख.....waah..

    जवाब देंहटाएं
  16. कृपया अवलोकन करे
    http://vjay-vi.blogspot.in/2012/04/blog-post_17.html

    जवाब देंहटाएं
  17. मन मेरा है, उड़ता रहता
    अहंकार से , हरदम लड़ता
    गुनी जनीं का ,आदर करता
    सारा जग,कवि मुझको कहता

    कवि की दुविधा कवि ह्रदय ही समझ सकता है.

    सुंदर प्रस्तुति.

    जवाब देंहटाएं
  18. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  19. लिखते पढते रहिये सदा चाहे पढे न् कोय.
    ब्लोगर तुम बन जाओगे, पढ़ना चाहे तोह
    पढ़ना चाहे तोह, कमेंट्स तुम करते रहना
    एक दंन हिट हो जाओगे,मानो तुम कहना,

    लिखने का एक अच्छा प्रयास,...रोचक पोस्ट
    इस दमदार टिपण्णी के साथ मेरे ब्लॉग में पधारे इसके लिये धन्यवाद, बस इतनी ही विनती है

    ब्लॉगर तो बन गया हूँ भाई ,लेखक भी बनजाता
    आप तरह की समझ कहाँ मिलती कोई बतलाता

    जवाब देंहटाएं
  20. यही भाव कवि कलम को गतिशील बनाये रखते हैं........बहुत सुंदर

    जवाब देंहटाएं
  21. मन मेरा है, उड़ता रहता
    अहंकार से , हरदम लड़ता
    गुनी जनीं का ,आदर करता
    सारा जग,कवि मुझको कहता
    हे कवि- 'ममता' पे तुम, कलम चलाओ ,

    कार्टून एक हित बनवाओ ,

    मुखड़ा चांदी सा दिखलाओ ,

    आगे पीछे बीन बजाओ ,

    इस नागिन को तुम नचवाओ -

    जवाब देंहटाएं
  22. शस्त्र कलम को, जब भी कर दूँ
    तख्तो त्ताज ,बदल के रख दूँ
    बेहतरीन भाव संयोजन ...

    जवाब देंहटाएं
  23. दूँ शस्त्र कलम को, जब भी कर दूँ तख्तो त्ताज ,बदल के रख दूँ
    बहुत खूब... कवि मन के सुन्दर सशक्त भाव से ओतप्रोत रचना के लिए आभार आपका....

    जवाब देंहटाएं
  24. शस्त्र कलम को, जब भी कर दूँ तख्तो त्ताज ,बदल के रख दूँ
    बेहतरीन रचना

    जवाब देंहटाएं
  25. शस्त्र कलम को, जब भी कर दूँ
    तख्तो त्ताज ,बदल के रख दूँ
    ........waah bahut sunder sahi kaha aapne ....aur antim paira bhi bahut sunder laga . badhai .

    जवाब देंहटाएं
  26. कवि की रचना पर बधाई स्वीकारें!

    जवाब देंहटाएं
  27. क्रोधित होकर कभी न लिखता
    सदा सहज बन कर ही रहता
    विरह वेदना ,पर भी लिखता
    प्यार भरी भी , रचना करता ...

    कवी के मन कों खोल के रख दिया है आपने ... बहुत खूब ...

    जवाब देंहटाएं
  28. बहुत सुन्दर और प्रभावी रचना...

    जवाब देंहटाएं
  29. शस्त्र कलम को, जब भी कर दूँ
    तख्तो त्ताज ,बदल के रख दूँ......
    सुन्दर सशक्त भाव से ओतप्रोत रचना .आभार आपका....

    जवाब देंहटाएं
  30. मन मेरा है, उड़ता रहता
    अहंकार से , हरदम लड़ता
    गुनी जनीं का ,आदर करता
    सारा जग,कवि मुझको कहता

    ..kavi hrday ki sundar udgaar..

    जवाब देंहटाएं
  31. शस्त्र कलम को, जब भी कर दूँ
    तख्तो त्ताज ,बदल के रख दूँ

    WAH SIR KAVI KI SHAKTIYON KA BAKHOOBI BAYAN KR DIYA APNE ...BADHAI KE SATH ABHAR BHI.

    जवाब देंहटाएं
  32. सभी कवियों / ब्लोगर्स के मन की बात कही दी । बहुत सही लिखा है ।
    कवि / लेखक की कलम में बहुत ताकत होती है ।

    जवाब देंहटाएं
  33. सार्थक अभिव्यक्ती ...
    शुभकामनायें .

    जवाब देंहटाएं
  34. आपकी इस कविता से ... मन प्रसन्न हो गया
    नई पोस्ट--बेटे और बेटियो में फर्क क्या यही मॉडर्न समाज की पहचान है..?

    जवाब देंहटाएं
  35. ----सुन्दर...सुन्दर...सुन्दर...

    न मैं कवि न शायर,गज़लगो,न मैं कोई कलमकार हूं।
    उठती है दिल में बात जो, मैं उसी का तलबगार हूं ॥

    जवाब देंहटाएं
  36. क्या अपनी, परिभाषा लिख दूँ
    क्या अपनी,अभिलाषा लिख दूँ
    शस्त्र कलम को, जब भी कर दूँ
    तख्तो त्ताज ,बदल के रख दूँ

    जवाब देंहटाएं
  37. क्या खूब लिखा है.

    जवाब देंहटाएं
  38. कवि के कार्यों का,उसके भाव का बखूबी से परिचय दिया आपने।
    उम्दा प्रस्तुती

    अगर आपका मेरे ब्लॉग पर आगमन होता हैं तो ये मेरे लिए बहुत बड़ी खुशी की बात होगी... आभार

    जवाब देंहटाएं
  39. यह कवि का कमाल ही है कि वो कलम को शास्त्र बना सकता है.....तख़्त ओ ताज बदल सकता है .सार्थक रचना .

    जवाब देंहटाएं
  40. कवि कम शब्दों में ही बहुत कुछ कह देता है!...शक्तिमान होता है!...बढियां प्रस्तुति!...आभार!

    जवाब देंहटाएं
  41. आप अहंकार से हरदम लड़ते हैं और कुछ अहंकारी भी आपका समर्थन करते दिखे;इस उपलब्धि हेतु हमारी शुभ कामनाएँ आप के साथ हैं।
    आपकी टिप्पणी का उत्तर वहाँ भी लिख दिया है उसकी कापी यहाँ भी दे रहा हूँ-
    "मै रेखा जी फैन् हूँ और चाहता हूँ कि वे राजनीति में बढ़ चढ़ कर भाग ले..
    निश्चित रूप से सफल रहेगीं,...." धीरेन्द्र जी जब आप ऐसा सोचते हैं तो कृपया दिग्विजय सिंह जी जो आप ही के प्रदेश और ब्रादरी के हैं उनसे कहें कि तमिलनाडू मे अपनी पार्टी मे 'रेखा 'जी को सक्रिय करें। मैंने यह लेख उनकी और राहुल जी की फेसबुक वाल पर लगा दिया था किन्तु कहने की स्थिति मे आप हैं।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रेखा जी को राजनीत में लाना चाहे आप
      कम था अब तक भांगड़ा,जो कत्थक चाहे आप

      हटाएं
  42. शब्द शब्द जोड़ कर कविता लिख दी ....वाह बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  43. धीर जी फिर से जरा पीर पर भी कुछ लिखिये
    बढ रहा दर्दे जिगर , इसको जरा कम करिये

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. विजय जी ....आपकी फरमाइश पूरी कर दी है ,.अपने बढते दर्द को कम कर ले....मनभावन

      MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...:गजल...

      हटाएं
  44. उत्तर
    1. प्रेम जी ,
      आप के पोस्ट को देख सबको आमत्रण देते रहते है मै भी पंहुचा पर यह देख ''प्रत्येक जाति के लोग “उर्मिला” कह कर संबोधित करते थे। आशय था भरत एवं उर्मिला का प्रसंग। लोगों का अपना अभिमत था कि उर्मिला भरत जी का घर के चौखट पर फूल और दिया लेकर चौदह वर्ष तक इंतजार करती रहीं लेकिन इन लोगों ने तो चौदह वर्ष से भी अधिक इंतजार किया।''पढ कर चौका.
      भाई जी बतलाएगें यह रामायण कब बदली ?
      भरत संग उर्मिला कथा,भी अपने मन से लिखली ?
      लक्षमण थे जब वन में ,उर्मिल क्या करती थी ?
      लक्षमन भूल भरत के चौखट में रहती थी ?
      मत बदलो इतिहास भूल यह होगी भारी
      नहीं करेगी माफ कभी भी कोई नारी

      हटाएं
  45. bahut khoob paribhasha di he aapne ek kavi ki. sach kavi ki shakti se sab darte hai. meri nayi kavita 'chalte chalte ' par bhi najar dalen.

    जवाब देंहटाएं
  46. यह भी खूब रही.
    बेशक
    आप एक बहुत अच्छे कवि हैं.

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियाँ मेरे लिए अनमोल है...अगर आप टिप्पणी देगे,तो निश्चित रूप से आपके पोस्ट पर आकर जबाब दूगाँ,,,,आभार,