यदि मै तुमसे कहूँ,
कि मेरे मन पर
तुम इस तरह छा गई हो,
कि मै ओत प्रोत हो गया हूँ
तुम्हारे व्यक्तित्व के जादू में
जो व्याप्त है -
प्रकृति की मनमोहक छटाओं में,
उषा की शीतलता में
शून्य की शान्ति में
भक्तों के आल्हादित मन में
कलियों की अल्हडता मे
ऋषियों की तपश्चर्या में
तो क्या तुम मेरा विश्वास करोगी-?
मुझे नहीं लगता ऐसा,
शायद मेरे शब्द में वह शक्तिं नही है,
जो सच बातों में
सच्चाई का बोध करा दे
मेरे मन की निश्छल वाणी
इतनी प्रखर नही है
जो अन्तस् का भाव बता दे,
मेरे पास तुम्हारी यादे ही यादें है,
हर क्षण साथ रहने वाली
इन यादों की कसम उठा कर
यदि मै तुमसे कहूँ
कि यह सचमुच ही सच है,
तुम
प्राणों को भी प्राण बाटनेवाली तुम
सृष्टि रचयिता की रचना को रचनेवाली तुम,
तुम्ही तो हो मेरा सर्वस्व
उत्कर्ष मेरा निष्कर्ष मेरा
क्या मुझे स्वयं में रचा सकोगी-?
मेरे साथ अपने 'स्व' को
विलीन कर मुझमें
और मुझे अपने में
समाहित कर सकोगी-?
एकाकार बने और हो जाएँ अभिन्न
एक नई रचना का हो अभ्युदय
शेष रहे न चिन्ह मेरे और तुम्हारे
सचमुच क्या तुम दोगी साथ
यदि मैं तुमसे कहूँ-?
DHEERENDRA"dheer"
Pasnd aai aap ki yah prastuti
जवाब देंहटाएंमेरे साथ अपने 'स्व' को
जवाब देंहटाएंविलीन कर मुझमें
और मुझे अपने में
एकदम आध्यात्मिक मिलन!
करेगी................यकीनन विश्वास करेगी................और साथ भी देगी.....
जवाब देंहटाएंशब्दों में शक्ति ना भी हो, भावनाओं में अथाह शक्ति होती है.....
बहुत बहुत सुंदर रचना सर.
सादर.
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जवाब देंहटाएंचिट्ठी बढ़िया है बनी, भारी भरकम शब्द ।
जवाब देंहटाएंअब्द गरज बरसन लगे, बे-मौसम नव-अब्द ।
बे-मौसम नव अब्द, भिगोये अक्षर बाकी ।
कर फिर से प्रारब्ध, लगे सिम्पल टुक-टाकी ।
मौलिकता है प्रेम, लगे बाकी सब मिटटी ।
एकाकार स्वरूप, छोड़कर आ जा चिट्ठी ।।
मेरे साथ अपने 'स्व' को
जवाब देंहटाएंविलीन कर मुझमें
और मुझे अपने में
समाहित कर सकोगी-?
खुद से संवाद करती रचना .प्रेम पगी सी मनुहार करती रचना .
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंधीरेन्द्र जी क्या इस टिप्पणी में कोई खोट है
जवाब देंहटाएंभाई प्रेमिका की ओर से प्रत्युत्तर ही तो है--
मेरी दोनों टिप्पणी नहीं पब्लिश हुईं --
एक बार और गौर कर लें--
आगे से ध्यान रखूँगा सुन्दर और अति सुन्दर लिख कर निकल लूँगा
चिट्ठी बढ़िया है बनी, भारी भरकम शब्द ।
अब्द गरज बरसन लगे, बे-मौसम नव-अब्द ।
बे-मौसम नव अब्द, भिगोये अक्षर बाकी ।
कर फिर से प्रारब्ध, लगे सिम्पल टुक-टाकी ।
मौलिकता है प्रेम, लगे बाकी सब मिटटी ।
हो जा एकाकार, छोड़कर आ जा चिट्ठी ।।
मेरे साथ अपने 'स्व' को
जवाब देंहटाएंविलीन कर मुझमें
और मुझे अपने में
समाहित कर सकोगी-?
ek aadhyatmik prem ki or unmukh rachna !
बढ़िया प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंमेरे साथ अपने स्व को
जवाब देंहटाएंविलीन कर मुझमें
और मुझे अपने में
समाहित.....
सुंदर भावाभिव्यक्ति....
सादर।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमेरे साथ अपने 'स्व' को
जवाब देंहटाएंविलीन कर मुझमें
और मुझे अपने में
समाहित कर सकोगी-?
एकाकार बने और हो जाएँ अभिन्न
एक नई रचना का हो अभ्युदय
अद्भुत प्रस्ताव है धीरेन्द्र जी, बहुत अच्छी कविता के लिए बधाई!
बहुत बहुत आभार |
हटाएंधीरेन्द्र जी |
दरअसल आपका गीत इतना प्रभावी है--
कि-
मुझे प्रत्युत्तर लिखना ही पड़ा |
अच्छा है कि आप श्री -- जी है, अन्यथा गड़बड़ तो होनी ही थी |
बहुत ही आकर्षक विषय प्रतिपादन है आपका ||
सादर |
बहुत सुन्दर रचना। मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।
जवाब देंहटाएंman ko choo lene wali rachna
जवाब देंहटाएंधीरेन्द्र जी, धीरे धीरे लेखन - बिधा , भाव परिवर्तन से महसूस हो रहे हैं...
जवाब देंहटाएं---- मनभावन रचना. बधाई.
मन के भावो की सरल अभिव्यक्ति.....
जवाब देंहटाएंसाथ देने वाले कभी पूछा नहीं करते ...और साथ चलने वाले कभी खुद को साबित नहीं करते ....
अद्भुत पंक्तियाँ, बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंआध्यात्मिक प्रेम... बहुत सुन्दर प्रस्तुति, बधाई.
जवाब देंहटाएंअगर प्यार पक्का हो , तो विश्वास भी सच्चा होगा !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...निश्छल प्रेम की सुन्दर अभिव्यक्ति... आभार
जवाब देंहटाएंबखूबी अपने अहसासों को व्यक्त किया है ...बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंBahut khoob sir...bahut badhiya:-)
जवाब देंहटाएंno words to say......gazab ke expression.....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर शब्दो से अपने भावो को समाहित कर रचना को अनुपम बना दिया ..धीरेन्द्र जी..बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंदोः3 दिनों तक नेट से बाहर रहा! एक मित्र के घर जाकर मेल चेक किये और एक-दो पुरानी रचनाओं को पोस्ट कर दिया। लेकिन मंगलवार को फिर देहरा दून जाना है। इसलिए अभी सभी के यहाँ जाकर कमेंट करना सम्भव नहीं होगा। आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
prem gali ati sankari ya me do na samahee..behtarin adhyatmik rachna...man ko choo lene wali..sadar badhayee ke sath
जवाब देंहटाएंsunder srajan abhivyakti.. badhayi
जवाब देंहटाएंशानदार अभिव्यक्ति!!
जवाब देंहटाएंkhubsurat abhivyakti
जवाब देंहटाएं.....सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंआध्यात्मिक निष्ठा व समर्पण चाह का दृष्य देती अद्भुत व सुंदरतम प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंमन की गहन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंकविता की भावभूमि बड़ी ही मोहक है। पर शब्द योजना उतनी अच्छी नहीं बन पड़ी है। एक सुझाव है कि चिह्न होता है, चिन्ह नहीं। हो सकता है टंकणगत अशुद्धि हो। हो सके तो इसे ठीक कर लें। आभार।
जवाब देंहटाएंसुझाव के देने के लिए बहुत२ आभार,....आचार्य जी
हटाएंऐसी अशुद्धि अक्सर यूनिकोड में लिखते वक्त होती है |
हटाएंअच्छी प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना ...गहन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंजरूर साथ मिलता है प्रेम को प्रेम का ... बस निश्चलता बनी रहती चाहिए ... लाजवाब लिखा है ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भाव,बहुत ही सुन्दर अहसास है रचना में
जवाब देंहटाएंकितनी सुंदरता छिपी हुई है इन पक्तियों में...बार बार पढ़ने को मन मचलता है!...आभार!
जवाब देंहटाएंI have only one word for this "अतुल्य"
जवाब देंहटाएंइस रचना में एक अव्यक्त आकर्षण है।
जवाब देंहटाएंबधाई !
क्या मुझे स्वयं में रचा सकोगी-?
जवाब देंहटाएंमेरे साथ अपने 'स्व' को
विलीन कर मुझमें
और मुझे अपने में
समाहित कर सकोगी-?
jatil prashnon ke sath prabhavshali rachana ...abhar dheerendr ji
mano aadhyatmik milan ho raha ho...aisa laga.
जवाब देंहटाएंbahut khoobsurat prastuti.
प्रेम और समर्पण के भावों के साथ सजी एक विलक्षण रचना!!
जवाब देंहटाएंप्रेम की पराकाष्ठा में अपना क्या, बेगाना क्या ? बस समर्पण ही समर्पण.....श्याम में राधा या राधा में श्याम ? यह क्षण देखने का नहीं अनुभूति का है. "एकाकार" को गहरी अनुभूति से परिभाषित किया है, हार्दिक बधाइयाँ..........
जवाब देंहटाएंBehtreen Pannktiyan...Ati Sunder
जवाब देंहटाएंप्राणों को भी प्राण बाटनेवाली तुम
जवाब देंहटाएंसृष्टि रचयिता की रचना को रचनेवाली तुम,
तुम्ही तो हो मेरा सर्वस्व
उत्कर्ष मेरा निष्कर्ष मेरा
क्या मुझे स्वयं में रचा सकोगी-?
प्रिय धीरेन्द्र जी बहुत सुन्दर मूल भाव स्व को समाहित करना तुममे मै मुझ में तुम - वाह -बधाई हो
जय श्री राधे
भ्रमर ५
बहुत सुन्दर रचना...और सुन्दर भाव ..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भाव ,आकर्षण है रचना में.......बधाई !
जवाब देंहटाएंNice .
जवाब देंहटाएंposts ka charcha aaj Bloggers meet weekly 38 me
http://www.hbfint.blogspot.in/2012/04/38-human-nature.html
धीरेन्द्र जी वाह...बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंसुंदर स्वप्न सी यादें .....
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना .
बहुत खूब सर!
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुंदर रचना .......
जवाब देंहटाएंhttp://bulletinofblog.blogspot.in/2012/04/4.html
जवाब देंहटाएंwaah bahut sunder post . badhai
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंवाह....बहुत खूबसूरत लगी पोस्ट....शानदार।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति के लिये बहुत बहुत बधाई....
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा रचना इस बार...!
जवाब देंहटाएंमेरे साथ अपने 'स्व' को
जवाब देंहटाएंविलीन कर मुझमें
और मुझे अपने में
समाहित कर सकोगी-?
एक ऐसा प्रश्न जिसका उत्तर ,
हाँ हो तो जीवन संवर जाए .... !!
उत्तम अभिव्यक्ति .... !!
bahut sundar sashakt prastuti prem ka kitna nishchhal roop prastut kiya hai aapne bahut khoob.
जवाब देंहटाएंकविता प्रशन पूछते आगे बढती है ... और मतलब में कामयाब हो जाती है
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब लिखा है आपने उत्कृष्ट रचना....बधाई
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति के लिये बहुत बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएं"प्रकृति की मनमोहक छटाओं में,
जवाब देंहटाएंउषा की शीतलता में
शून्य की शान्ति में
भक्तों के आल्हादित मन में
कलियों की अल्हडता मे
ऋषियों की तपश्चर्या में" lajabab abhivykti...
आद. श्री धीरेन्द्र जी वाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
BAHUT KHOOBSURAT BHAV...SUNDER RACHNA..
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत सुन्दर कविता है.
जवाब देंहटाएंघुघूतीबासूती
शेष रहे न चिन्ह मेरे और तुम्हारे
हटाएंसचमुच क्या तुम दोगी साथ
यदि मैं तुमसे कहूँ-?
..waah bahut badhiya prastuti
एकाकार बने और हो जाएँ अभिन्न
जवाब देंहटाएंएक नई रचना का हो अभ्युदय
शेष रहे न चिन्ह मेरे और तुम्हारे
सचमुच क्या तुम दोगी साथ
यदि मैं तुमसे कहूँ-?
वाह क्या बात है छा गये हैं आप हमारे दिल में......
मेरे मन की निश्छल वाणी
जवाब देंहटाएंइतनी प्रखर नही है
जो अन्तस् का भाव बता दे,
मेरे पास तुम्हारी यादे ही यादें है,
हर क्षण साथ रहने वाली
इन यादों की कसम उठा कर
यदि मै तुमसे कहूँ
कि यह सचमुच ही सच है,...............................वाह दिल के सच्चे भाव ....बहुत खूब
अद्भुत! अनोखा! अनुपम!! मनोग्रहाई और हृदाह्लादक अभिव्यंजना. निश्छल प्रेम की अतिसुन्दर भावाभिव्यक्ति, सार्थक और समर्थ शब्द विन्यास द्वारा. एक एक शब्द जैसे पुष्पांजलि दे रहा है, भावांजलि दे रहा है. अद्भुत! लेखनी को प्रणाम. लेखक को नमन.
जवाब देंहटाएं"उषा की शीतलता में
जवाब देंहटाएंशून्य की शान्ति में
भक्तों के आल्हादित मन में
कलियों की अल्हडता मे
ऋषियों की तपश्चर्या में
तो क्या तुम मेरा विश्वास करोगी-?"
बहुत ही सुंदर उपमाएँ! मोहक रचना ! बधाई !
adbhut kavitayen .....padhkar bahaut achha laga... ashutosh & Jyotsna
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