तब मधुशाला हम जाते है,...
जब गम के बादल छाते है, तब मधुशाला हम जाते है,
जब गम का कोई इलाज नही, तब थोड़ी सी पी जाते है!
रुक,रुक, थम,थम, सब कहते है,पी इसे भूल गम जाते है,
जब गम के बादल छाते है,तब मधुशाला हम जाते है!
तू गम की दवा की पुडिया है,पीने में भी तू बढ़िया है,
मत पी,मत पी,सब कहते है, हम यार इसे पी जाते है!
तेरे जाने कितने अपवाद पड़े, पी कर बेसुध हो जाते है,
पी लेता जो फिर ख़्वाब बढे,तब मधुशाला हम जाते है!
पतझड में जैसे कली खिली, पीकर ऐसा दिखता है,
गर्मी की लपटे सर्द हवा, इसको पीकर ही लगता है!
घनघोर घटा में सुर्ख धुंआ,आँसू बन कर आ जाते है,
जब गम के बादल छाते है,तब मधुशाला हम जाते है!
जब झील रेत हो जाती है, सैसव भी बूढा सा लगता है.
तब गम के बादल छाते है,सब अन्धकार सा दिखता है!
मुझको मेरी बोतल देदे, पीने दे मुझे बहकने तक साकी.
बेहोश हो जाऊ तो रख देना,बच जाए बोतल में जो बाकी!
तेरे कारण ही बोतल की और, प्याले की इज्जत होती है,
तेरे कारण ही महफिलों की, इज्जत बढती और खोती है!
कुछ हँसते कुछ गुस्साते है, पी तुझे होश में आते है,
जब् गम के बादल छाते है,तब मधुशाला हम जाते है!
जब मस्तिक में चढ़ जाती है,कितनी मस्ती करवाती है,
मस्ती जब हद से बढ़ जाती,तो कभी कभी पिटवाती है!
सावन भी जब बैशाख लगे, बारिष न जब "धीर" धरे,
जब शीत लहर गरमाते है, तब मधुशाला हम जाते है!
--DHEERENDRA,"dheer"--
जब गम के बादल छाते है, तब मधुशाला हम जाते है,
जब गम का कोई इलाज नही, तब थोड़ी सी पी जाते है!
रुक,रुक, थम,थम, सब कहते है,पी इसे भूल गम जाते है,
जब गम के बादल छाते है,तब मधुशाला हम जाते है!
तू गम की दवा की पुडिया है,पीने में भी तू बढ़िया है,
मत पी,मत पी,सब कहते है, हम यार इसे पी जाते है!
तेरे जाने कितने अपवाद पड़े, पी कर बेसुध हो जाते है,
पी लेता जो फिर ख़्वाब बढे,तब मधुशाला हम जाते है!
पतझड में जैसे कली खिली, पीकर ऐसा दिखता है,
गर्मी की लपटे सर्द हवा, इसको पीकर ही लगता है!
घनघोर घटा में सुर्ख धुंआ,आँसू बन कर आ जाते है,
जब गम के बादल छाते है,तब मधुशाला हम जाते है!
जब झील रेत हो जाती है, सैसव भी बूढा सा लगता है.
तब गम के बादल छाते है,सब अन्धकार सा दिखता है!
मुझको मेरी बोतल देदे, पीने दे मुझे बहकने तक साकी.
बेहोश हो जाऊ तो रख देना,बच जाए बोतल में जो बाकी!
तेरे कारण ही बोतल की और, प्याले की इज्जत होती है,
तेरे कारण ही महफिलों की, इज्जत बढती और खोती है!
कुछ हँसते कुछ गुस्साते है, पी तुझे होश में आते है,
जब् गम के बादल छाते है,तब मधुशाला हम जाते है!
जब मस्तिक में चढ़ जाती है,कितनी मस्ती करवाती है,
मस्ती जब हद से बढ़ जाती,तो कभी कभी पिटवाती है!
सावन भी जब बैशाख लगे, बारिष न जब "धीर" धरे,
जब शीत लहर गरमाते है, तब मधुशाला हम जाते है!
--DHEERENDRA,"dheer"--
पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए ... और यही कुछ सुन्दर अंदाज में बताती है आपकी रचना ..तब मधुशाला हम जातें हैं..
जवाब देंहटाएंग़ज़ल दिल को छू गई।
जवाब देंहटाएंबेहद पसंद आई।
bahut sunder
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना लिखी है आपने!
जवाब देंहटाएंकोई न कोई बहाना चाहिये, वहाँ जाने का।
जवाब देंहटाएंअभिव्यक्तियों की स्वतंत्रता के अनुक्रम में भाव अच्छे हैं विकल्प भी बढ़िया है / बधाईयाँ जी /
जवाब देंहटाएंये लाल रंग.........कब पीछा छोडेगा...
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना...दिल से निकली...
:-)
सादर.
हम तो कुछ लिखकर ही गम गलत कर लेते हैं !
जवाब देंहटाएंयह तो बढ़िया है लेकिन दूसरी गज़ल इस विषय पर लिखिये कि जब नशा उतरता है तो क्या होता है?
जवाब देंहटाएंअंकुश हटता बुद्धि से, भला लगे *भकराँध ।
हटाएंभूले भक्ष्याभक्ष्य जब, भावे विकट सडांध ।
भावे विकट सडांध, विसारे देह देहरी ।
टूटे लज्जा बाँध, औंध नाली में पसरी ।।
नशा उतर जब जाय, होय खुद से वह नाखुश ।
कान पकड़ उठ-बैठ, साँझ फिर हटता अंकुश ।।
*सदा हुआ अन्न
दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
अच्छी रचना है..
जवाब देंहटाएंबढ़िया ग़ज़ल बहुत पसंद आई...धीरेन्द्र जी
जवाब देंहटाएंकुछ हट के....
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
गम है तो भी मधुशाला की और ,ख़ुशी है तो भी मधुशाला की और अगर गम और ख़ुशी दोनों ही नहीं तो आदतन मधुशाला की और ......बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंmy new post
मन के जीते जीत है मन के हारे हार ..
बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंमैं भी होली में मधुशाला गया था !
आभार !
पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए.....
जवाब देंहटाएंफिर भी...
पीना लेकिन कम...
ख़ुशी हो या गम.....
गम गलत करने का की बहाना तो चाहिए ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब लगी आपकी रचना ...
गम गलत करना हो या खुशियों को गले लगाना हो!...मधुशाला की तरफ पाँव आगे बढते है!...क्या गजल है!...मजा आ गया!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ,गम को जब्ज करने का बढियां राह 'मधुशाला
जवाब देंहटाएंसुंदर पोस्ट धीरन्द्र जी साधुबाद ... मधुस्हल्ला की उपयोगिता कभी कम नहीं होगी
हटाएंएक शेर याद आ रहा हैं" ना तजुर्बकारीसे वाइज कि यह बातें है | इस रंग को क्या जानें पूछो तो कभी पी हैं|
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर .......
सुन्दर रचना है!
जवाब देंहटाएंजीवन ही मधुशाला... जीवन ही नशा!
सादर!
अच्छी प्रस्तुति ..... और जो न पीता हो वह कहाँ जाये
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा ...
जवाब देंहटाएंBahut Badhiya...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब।
जवाब देंहटाएंसुन्दर है पोस्ट।
जवाब देंहटाएंsabse pahle to aapse kshama chahti hu ki aapke blog par comment nahi kar paati parantu padhti jarur hu isme domat nahi hai.
जवाब देंहटाएंhum to madhushala jate nahi par aaj samjh gae ki log madhushala kyu jate hai...acchi lagi post.dhanyawad
बढ़िया ग़ज़ल हर अश आर अपना रंग और तराना लिए हुए .वाह !
जवाब देंहटाएं:दर्द नशा है ,इस मदिरा का, विगत स्मृतियाँ साकी हैं ,
जहां कहीं मिल बैठे हम तुम वहीँ रही हो मधुशाला .
पीड़ा में आनंद जिसे हो आये मेरी मधुशाला .
अच्छी रचना है भाई साहब !'शैशव 'कर लें सैसव को .
वाह .. मधु और साले का संयोग भी अजब है ! इसके गुड और गुडी लाजबाब है ! भगवान बचाए मधु और साले से ! हा...हा...हा..हा..बहुत सुन्दर गजल ! पिने वाले ही समझे इसके दर्द ! मुझे तो शौक नहीं !
जवाब देंहटाएंमै क्या मेरा पूरा परिवार १०० परसेंट शाकाहारी है,मधुशाळा जाना और पीना तो बहुत दूर की बात है,
हटाएंमधु की तरह मद्ध को बना दिया है.आपके जादूगरी शब्दों ने उनकी गरिमा बढ़ा दी है.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंदाज़ में प्रस्तुत किया है...
सादर...!!!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंbachchan ji ki madhushala yaad aa gayi ,din ko holi raat diwali roj manati madhushala ,aapki rachna bahut achchhi lagi
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - मेरा सामान मुझे लौटा दो - ब्लॉग बुलेटिन
जवाब देंहटाएं"सावन भी जब बैशाख लगे, बारिष न जब "धीर" धरे,
जवाब देंहटाएंजब शीत लहर गरमाते है, तब मधुशाला हम जाते है!"
बहुत खूब, धीरेन्द्र जी,.. वाह ! !
बहुत सुन्दर धीरेन्द्र जी....
जवाब देंहटाएंबहुत सरे बहाने मधुशाला जाने के ....
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखा है ...
बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति है :-)
जवाब देंहटाएंधीरेंद्र जी ,
जवाब देंहटाएंमधुशाला में जाना क्या- ना जाना क्या.
पाकर कुछ खोना, खोकर कुछ पाना क्या..
सुंदर रचना.............वाह .................
वैसे ज्यादा पीने से लीवर ......:)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
सुन्दर रचना,पर इसे पढ़ कर कोई मधुशाला जाने की ना सोचे :) ये सिर्फ कविता है भई
जवाब देंहटाएंye poem ne to bachaan ji ki madhushala ki yaad dila di..
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना और दिलकश अंदाज़ ! बेहतरीन प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंbahut badhiya sarthak prastuti.
जवाब देंहटाएंयह चिंगारी मज़हब की.
सावन भी जब बैशाख लगे, बारिष न जब "धीर" धरे,
जवाब देंहटाएंजब शीत लहर गरमाते है, तब मधुशाला हम जाते है!
bas ek bahana chahiye.MAYKHANA jane ka.
जब झील रेत हो जाती है, सैसव भी बूढा सा लगता है.
जवाब देंहटाएंतब गम के बादल छाते है,सब अन्धकार सा दिखता है!
bahut hi gahri abhivyakti
वो गए मयखाने जिन्हें मय की प्यास थी,
जवाब देंहटाएंरह गए तन्हा "रजनी" निगाहों की प्यास में |
जब गम के बादल छाते है, तब मधुशाला हम जाते है,
जवाब देंहटाएंजब गम का कोई इलाज नही, तब थोड़ी सी पी जाते है!
रुक,रुक, थम,थम, सब कहते है,पी इसे भूल गम जाते है,
जब गम के बादल छाते है,तब मधुशाला हम जाते है!
बहुत खूब लिखा है
अच्छी प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंसादर
waah gazab hai aapki bhi rachna.
जवाब देंहटाएंwaah bahut khoob Dhirendra ji ...
जवाब देंहटाएंरुक,रुक, थम,थम, सब कहते है,पी इसे भूल गम जाते है,
जवाब देंहटाएंजब गम के बादल छाते है,तब मधुशाला हम जाते है!
.........waah bahut sunder , geet , umda rachna , ..
vaise hari vansh rai bacchan ki bhi madhushala yaad aa gayi , hamari pasandida rachna , aapne bahut sunder likha dheerendra ji , vakai gam ko bhulane ka to bahana hai ..madhushala jana hai ......badhai .
आपका ब्लॉग फीड में तो आता ही था... अब follow भी होगी!
जवाब देंहटाएंसादर
sundar rachana
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन, सुन्दर भावाभिव्यक्ति.
हटाएंbahut sundar , pad kar man mugdh ho gaaya..
जवाब देंहटाएंआपको ये मैं बड़े हर्ष के साथ सूचित कर रही हूँ की आपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स मीट वीकली (३५) में शामिल की गई है आप आइये और अपने अनुपम विचारों से हमें अवगत करिए /आपका सहयोग हमेशा इस मंच को मिलता रहे यही कामना है /आभार /लिंक है
जवाब देंहटाएंhttp://hbfint.blogspot.in/2012/03/35-love-improves-immunity.html
रुक,रुक, थम,थम, सब कहते है,पी इसे भूल गम जाते है,
जवाब देंहटाएंजब गम के बादल छाते है,तब मधुशाला हम जाते है.............!
सुन्दर भावाभिव्यक्ति.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंपीने की आदत हो जिसको, उसे कई वजह मिल जाती हैं ...दुःख में तो हर कोई पीता है .....खुशियाँ भी खूब पिलाती हैं .....
जवाब देंहटाएंshaki ke righane me ....lo aa gaye ham mai-khane mai
जवाब देंहटाएंisase kaun chhutta hai..........bahut badiya sirji
Dharmendra Singh Jadon
"जब झील रेत हो जाती है, सैसव भी बूढा सा लगता है.
जवाब देंहटाएंतब गम के बादल छाते है,सब अन्धकार सा दिखता है!"
पीर भरी गहन अभिव्यक्ति !
पीने के न पूछ क्या-क्या बहाने हैं
कभी छुपाने हैं आंसू , कभी उत्सव मनाने हैं |
पीने के अच्छे बहाने लिख दिए हैं आपने .......बस कोई भी मौका हो ...पीने वाले के लिए
जवाब देंहटाएंपीने वालों को पीने का बहाना चाहिए, गम हो तो पीना खुशी हो तो पीना... बहुत खूब...
जवाब देंहटाएंगहरे भाव के सुन्दर मोती
जवाब देंहटाएंफैल रही है कोमल ज्योति
धागे में गाँठें कम होती
माला और भी उम्दा होती ।