मेरे छोटे से आँगन में,..
मेरे छोटे से आँगन में रोज धूप आती है,
मगर दर्द के दरख्तों में,
जाने कहाँ छिप जाती है
ढूँढता है मन ज़रा सी जिंदगी को,
मगर रोज अँधेरे की ठंडक ही
इस मन को जलाती है.,
मेरे छोटे से आँगन में रोज धूप आती है
पेड़ है घने जो कट नहीं सकते
पत्ते है उलझे जो छंट नही सकते
इन्तजार उस आँधी का है
जो इन्हें गिरा दे.
आँधी नही आती
बरसात हो के चली जाती है
मेरे छोटे से आँगन में रोज धूप आती है
कभी तो गरमाऐगा मन
नया उजाला लाएगा जीवन
ये सपना खुली आँखों से
देखता हूँ मगर,
जल्दी ही नीद आ जाती है
मेरे छोटे से आँगन में रोज धूप आती है
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DHEERENDRA
मेरे छोटे से आँगन में रोज धूप आती है,
मगर दर्द के दरख्तों में,
जाने कहाँ छिप जाती है
ढूँढता है मन ज़रा सी जिंदगी को,
मगर रोज अँधेरे की ठंडक ही
इस मन को जलाती है.,
मेरे छोटे से आँगन में रोज धूप आती है
पेड़ है घने जो कट नहीं सकते
पत्ते है उलझे जो छंट नही सकते
इन्तजार उस आँधी का है
जो इन्हें गिरा दे.
आँधी नही आती
बरसात हो के चली जाती है
मेरे छोटे से आँगन में रोज धूप आती है
कभी तो गरमाऐगा मन
नया उजाला लाएगा जीवन
ये सपना खुली आँखों से
देखता हूँ मगर,
जल्दी ही नीद आ जाती है
मेरे छोटे से आँगन में रोज धूप आती है
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DHEERENDRA
बहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंमन को भा गयी..
सादर.
मगर दर्द के दरख्तों में,
जवाब देंहटाएंजाने कहाँ छिप जाती है
इन्तजार उस आँधी का है
जो इन्हें गिरा दे.
आँधी नही आती
बरसात हो के चली जाती है
ये सपना खुली आँखों से
देखता हूँ मगर,
जल्दी ही नीद आ जाती है
आंतरिक वेदना किस अंदाज में पेश की है आपने बहुत खूब
आपके शब्दों के तीर एकदम सटीक लगे हैं ... वाह...
बधाई स्वीकारें करे । -रोहित
बहुत ही गहरा लिखा है आपने, हमने न जाने कितने ही दर्द के साये पाल रखे हैं।
जवाब देंहटाएंमेरे छोटे से आँगन में रोज धूप आती है,
जवाब देंहटाएंमगर दर्द के दरख्तों में,
जाने कहाँ छिप जाती है
ढूँढता है मन ज़रा सी जिंदगी को,
मगर रोज अँधेरे की ठंडक ही
इस मन को जलाती है.,
bahut sundar lage bhav....
bahut khub...wah...
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट व संवेदनशील सृजन ,भाव व कथ्य , प्रशंसनीय दोनों ही ...साधुवाद जी /
जवाब देंहटाएंमन के दर्द को बखूबी बयाँ किया है | ऐसे ही बहुत से लोगों के दिल में ये दर्द हैं फिर ही लोग मुस्कराते हैं | मुस्कराना ही जिंदगी है | आस के दीपक जलानी भी जिंदगी है |
जवाब देंहटाएंटिप्स हिंदी में
man ke bhaavon ko bahut nayaab tareeke se hum sab ke dilon tak pahuchaya hai.bahut umda rachna.
जवाब देंहटाएंwah , behad khoobsoorat - roj andhere ki thandak hi is mann ko jalati h
जवाब देंहटाएंमेरे छोटे से आँगन में रोज धूप आती है,
जवाब देंहटाएंमगर दर्द के दरख्तों में,
जाने कहाँ छिप जाती है
ढूँढता है मन ज़रा सी जिंदगी को,
मगर रोज अँधेरे की ठंडक ही
इस मन को जलाती है.,...
ढूंढता हूँ जीवन का धूप , निकल सकूँ सिकुडन से , पर .... बहुत ही गहन सोच है
जीवन में सुख-दुःख की इस धूप छाँव के बीच जन्मी इस कविता में जो आपने आशा की किरण दिखाई है वह सार है जीवन का! बहुत अच्छी कविता!!
जवाब देंहटाएंकभी तो गरमाऐगा मन
जवाब देंहटाएंनया उजाला लाएगा जीवन
ये सपना खुली आँखों से
देखता हूँ मगर,
जल्दी ही नीद आ जाती है |
bahut sundar rachna..
मेरे छोटे से आँगन में रोज धूप आती है,
जवाब देंहटाएंमगर दर्द के दरख्तों में,
जाने कहाँ छिप जाती है
ढूँढता है मन ज़रा सी जिंदगी को,
मगर रोज अँधेरे की ठंडक ही
इस मन को जलाती है.,......................वाह बहुत खूब
दर्द के साये में जिंदगी की उम्मीद ...जीना इसी का नाम हैं ......आभार
आँगन के मुंडेर से धूप का टकटकी लगाये रखना फिर छुप जाना...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...
सादर...!
बहुत खूब है कविता ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना के लिए साधुवाद!
जवाब देंहटाएं"मगर दर्द के दरख्तों में,
जवाब देंहटाएंजाने कहाँ छिप जाती है
ढूँढता है मन ज़रा सी जिंदगी को,
मगर रोज अँधेरे की ठंडक ही
इस मन को जलाती है."
गहन अभिव्यक्ति...वाह !! .
ढूँढता है मन ज़रा सी जिंदगी को,
जवाब देंहटाएंमगर रोज अँधेरे की ठंडक ही
इस मन को जलाती है.,
बहुत खूब! बेहतरीन रचना के लिये बधाई !
पेड़ है घने जो कट नहीं सकते
जवाब देंहटाएंपत्ते है उलझे जो छंट नही सकते
इन्तजार उस आँधी का है
जो इन्हें गिरा दे.
आँधी नही आती
बरसात हो के चली जाती है
bahut hi sundar rachana .....intjar kijiye jaroor andhiyan ayengi aur khush numa mahul de ke jayengi.
खुली आँखों का सपना साकार हो हम यही कामना करते हैं।
जवाब देंहटाएंjivan ka sar hae aapki post sda ki tarah.dhanyavad.
जवाब देंहटाएंBahut sundar rachna
जवाब देंहटाएंsundar post.....// congratulation...//
जवाब देंहटाएंनया उजाला लाएगा जीवन
जवाब देंहटाएंये सपना खुली आँखों से देखता हूँ मगर...
गहन सोच... सादर
सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंgahri baavnaon se saji sundar rachna,aap ko bdhai...
जवाब देंहटाएंmere chotte se angan me apki ye rachana bahut achi lagi
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी रचना.
जवाब देंहटाएंमगर दर्द के दरख्तों में,
जवाब देंहटाएंजाने कहाँ छिप जाती है
ढूँढता है मन ज़रा सी जिंदगी को,
मगर रोज अँधेरे की ठंडक ही
इस मन को जलाती है.,
छुपे दर्द - बहुत प्यारी रचना.
आशावादी तो होना ही चाहिए.... कभी न कभी तो रोशनी छन कर आएगी॥
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना, ख़ूबसूरत भावाभिव्यक्ति , बधाई.
जवाब देंहटाएंआग्रहों से दूर वास्तविक जमीन और अंतर्विरोधों के कई नमूने प्रस्तुत करता है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत एवं सारगर्भित रचना ! जीवन की धूप छाँव को बड़ी सुंदरता के साथ अभिव्यक्त किया है ! बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंमेरे छोटे से आँगन में रोज धूप आती है,...बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंकभी तो गरमाऐगा मन
जवाब देंहटाएंनया उजाला लाएगा जीवन
ये सपना खुली आँखों से
देखता हूँ मगर,
जल्दी ही नीद आ जाती है
आशा को बनाए रखना होगा।
बढि़या कविता।
bahut achchhi rachna, shubhkaamnaayen.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा है.
जवाब देंहटाएंमगर दर्द के दरख्तों में जाने कहाँ छिप जाती है, मेरे छोटे से आंगन में रोज धूप आती है.
जवाब देंहटाएंदरख्तों के लिए यह धूप भी तो बहुत जरूरी है, सुंदर रचना, वाह !!!!!
बहुत ही बढ़िया कविता....
जवाब देंहटाएंमेरे छोटे से आँगन में रोज धूप आती है,
जवाब देंहटाएंमगर रोज अँधेरे की ठंडक ही
इस मन को जलाती है.,
वाह! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति आदरणीय धीरेन्द्र जी.
सादर.
सुन्दर रचना...!
जवाब देंहटाएंआपके रचना संसार में विचरना अच्छा लगा!
सादर!