हमदर्द
मुश्किलों का सामना करना
बड़ा मुश्किल लगता है ,
पावों में हो छाले तो
चलना बड़ा
मुश्किल लगता है,
भंवर में हो नैया तो
किनारा बहुत
दूर लगता है,
उलझा हो काटों में
गर दामन तो
संभलना मुश्किल लगता है,
पतझड का हो मौसम तो
फूलों का
खिलना मुश्किल लगता है,
हवाऐ हो तेज तो
चिराग जलाए
रखना मुशिकल लगता है,
दौरे-गर्दिशाँ में हो आदमी
तो हमदर्द
मिलना मुश्किल लगता है,
-----------------------
---dheerendra---
पर मुश्किलों में ही संभलना भी आता है...
जवाब देंहटाएंसार्थक विचारणीय पोस्ट है |
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...
जवाब देंहटाएंहर मुश्किल कुछ सिखा जाती है...
सादर.
सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंmushkil lagta hai...magar naamunkin kuch bhi nahi....
जवाब देंहटाएंAise hi kuch mere vichar ek kavita mein yahan padhein http://www.poeticprakash.com/2009/12/blog-post_30.html
jivan aise hin sangharsh ka naam hai, har mushkil se paar pana. shubhkaamnaayen.
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना!
जवाब देंहटाएंसच कहा, गहरी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसचमुच मुश्किलें हो तो और मुश्किलें आ जाती है !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना !
मेरी रचना " पाँव के फफोले" पे आपका
इन्तेजार है !
आभार !
sundar rachna
जवाब देंहटाएंमुश्किलों में ही अपनों की सही पहचान होती है
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर और सार्थक रचना !
बहुत सुन्दर लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंमुश्किलों का सामना करना
जवाब देंहटाएंबड़ा मुश्किल लगता है ,
lekin tabhi tak jab tak aap saamna hnahin karte....
aur ek baar samna ho gaya to sab aasaan lagta hai...
aapne jo foto lagayee hai...
जवाब देंहटाएंkash vaisi mushkilen ishwar kisi ko n de...
सार्थक और गहरी अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंमगर जो इन मुश्किलों से बाहर निकलता है लादकर वही सच्चा इंसान होता है!! अच्छी कविता!!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.
जवाब देंहटाएं"उलझा हो दामन गर ,काँटों में -
जवाब देंहटाएंसंभलना मुश्किल लगता है."
वाह ! ! बहुत खूब.
अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंमकर संक्रान्ति की मंगलकामनाएँ!
sach kaha...mushkil to bahut kuch lagta hai ...par mushkile hi to hame jeena sikhati hai....achchi prastuti
जवाब देंहटाएंati sundar..
जवाब देंहटाएंमगर जीवन में आणि वाली सभी कठनाइयों का सामना करते हुए आगे बढ़ना ही ज़िंदगी है ...
जवाब देंहटाएंहर मुश्किल कुछ सिखा जाती है.
जवाब देंहटाएंsachch-- bahut hi mushkil -------
जवाब देंहटाएंpar sabse jujhna bhi padta hai-----
jindgi shayad isi ka naam hai------
sadar naman
poonam
सार्थक और बेहद खूबसूरत,उम्दा रचना है......
जवाब देंहटाएंहवाऐ हो तेज तो
जवाब देंहटाएंचिराग जलाए
रखना मुशिकल लगता है,
bahut khoob !!
मुश्किलें ही बहुत कुछ सिखा देती हैं...सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंकविता ही नहीं यह जीवन की अभिव्यक्ति का सच है।
जवाब देंहटाएंउलझा हो काटों में
जवाब देंहटाएंगर दामन तो
संभलना मुश्किल लगता है,............सार्थक
बहुत खूब
वक्त वक्त पर संभल कर चलना मुश्किल लगता हैं
इन्हीं मुश्किलों को पार करने वाला ही मंज़िल पाता है॥
जवाब देंहटाएंसामाजिक सीख देती रचना...!
जवाब देंहटाएंदौरे-गर्दिशाँ में हो आदमी
जवाब देंहटाएंतो हमदर्द
मिलना मुश्किल लगता है,
yathaartavaadii abhivykti
बढ़िया प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 16-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
हमदर्द मिलें तो दौरेगर्दिशां ही क्यों हो.बढ़िया रचना.
जवाब देंहटाएंदौरे-गर्दिशाँ में हो आदमी
जवाब देंहटाएंतो हमदर्द
मिलना मुश्किल लगता है,…………सत्य को दर्शाती बेहद उम्दा रचना दिल को छू गयी।
दौरे-गर्दिशाँ में हो आदमी
जवाब देंहटाएंतो हमदर्द
मिलना मुश्किल लगता है,
मुश्किल हो सकता है नामुमकिन नहीं. वैसे भी जिंदगी मुश्किलों में जीना सिखा देती है.
सुंदर प्रस्तुति के लिये बहुत बधाई.
पर ऐसी मुश्किलें ही आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देती हैं ... अच्छी रचना है ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया।
जवाब देंहटाएंसादर
bahut sundar .....
जवाब देंहटाएंदौरे-गर्दिशाँ में हो आदमी
जवाब देंहटाएंतो हमदर्द
मिलना मुश्किल लगता है,
सच का बयान करती अच्छी कविता।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति हैं आपकी, इस ब्लॉग को फालों कर रहा हूं, अब गूगल रीडर से नये पोस्टों को बिना उपस्थिति का आभास दिलाए पढ़ते रहूंगा.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक व सटीक लेखन| मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ|
जवाब देंहटाएंआदरणीय भाई धीरेन्द्र जी कभी -कभी व्यस्तता बढ़ जाती है |कलम भी खामोश हो जाती है |बहुत सुन्दर और सार्थक सृजन के लिए आपको बधाई |
जवाब देंहटाएंयथार्थ को अभिव्यक्त करती आपकी प्रस्तुति अच्छी
जवाब देंहटाएंलगी.पाठकों की प्रतिक्रिया भी विचारणीय हैं.
कहतें मुश्किलों में ही असली परीक्षा होती है व्यक्ति की.
एक गाना अभी सुन रह था
'गिरना नही है,गिर के संभलना है जिंदगी...'
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
दौरे-गर्दिशाँ में हो आदमी
जवाब देंहटाएंतो हमदर्द
मिलना मुश्किल लगता है,
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bhut hi gahan drishtipat badhai dheerendr ji .
काव्यांजलि में पिरो दी सीधी सच्ची बात आपने .बधाई .
जवाब देंहटाएंमुश्किलें ही जिंदगी जीना सिखाती हैं
जवाब देंहटाएंमुश्किलें ही जिंदगी जीना सिखाती हैं
जवाब देंहटाएंगर हो मुश्किलों में जीना मुस्किल
जवाब देंहटाएंरख हौसला,अब कुछ भी ना मुस्किल
बहुत खूब...
मैं आपको मेरे ब्लॉग पर सादर आमन्त्रित करता हूँ.....
अंतिम पंक्तियाँ बेहतरीन हैं.. सच्चाई बिखेरती हुई..
जवाब देंहटाएंbahut marmik rachna bahut achchi likhi hai.tasveer bhi bahut kuch bol rahi hai.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत ..शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएंsundar rachna....sach hai mushkil hi to hai jo jeene ka maksad deti hai
जवाब देंहटाएंदौरे-गर्दिशाँ में हो आदमी
जवाब देंहटाएंतो हमदर्द
मिलना मुश्किल लगता है..
..ekdam sach kaha aapni..
bahut marmsparshi rachna..
मुश्किले दौर ने ही मुझे संभलना सिखाया है ।
जवाब देंहटाएंगिरे जो चलके कुछ कदम तो उठना आया है ।
भंवर में हो नैया तो
जवाब देंहटाएंकिनारा बहुत
दूर लगता है,
nahee ho sukoon to jeevan
dojakh lagtaa hai
bahut badhiyaa
बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण प्रस्तुती! बढ़िया लगा!
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावी रचना...
जवाब देंहटाएंहर मुश्किल कुछ सिखाती है.. बस धैर्य चाहिये.. बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण प्रस्तुती
जवाब देंहटाएंअनुभवी सीख।
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना!गहन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसच कहा....दर्द में कोई हमदर्द नही मिलता..
जवाब देंहटाएंbahut acha likha hai :)
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...
जवाब देंहटाएंमुश्किल कुछ सिखाती है.
सार्थक पोस्ट
उफ्फ ! इतना अन्याय क्यों है इस दुनिया में ?
जवाब देंहटाएंवाह धीरेन्द्र भाई ,.... मुश्किल आने पर ...ही सही की पहचान भी होती है ...सुंदर रचना
जवाब देंहटाएं