यह कदंम का पेड़
यह कदंम का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे
ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली
किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली
तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता
उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता
वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता
अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हे बुलाता
बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आता
माँ, तब माँ का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता
तुम आँचल फैला कर अम्मां वहीं पेड़ के नीचे
ईश्वर से कुछ विनती करतीं बैठी आँखें मीचे
तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे-धीरे आता
और तुम्हारे फैले आँचल के नीचे छिप जाता
तुम घबरा कर आँख खोलतीं, पर माँ खुश हो जाती
जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पातीं
इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे
यह कदंम का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे,
==============================
ये रचना श्री मति सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखित जो मुझे बहुत पसंद
है आप सभी पाठकों के लिए प्रस्तुत है,--dheerendra--
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे
ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली
किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली
तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता
उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता
वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता
अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हे बुलाता
बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आता
माँ, तब माँ का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता
तुम आँचल फैला कर अम्मां वहीं पेड़ के नीचे
ईश्वर से कुछ विनती करतीं बैठी आँखें मीचे
तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे-धीरे आता
और तुम्हारे फैले आँचल के नीचे छिप जाता
तुम घबरा कर आँख खोलतीं, पर माँ खुश हो जाती
जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पातीं
इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे
यह कदंम का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे,
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ये रचना श्री मति सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखित जो मुझे बहुत पसंद
है आप सभी पाठकों के लिए प्रस्तुत है,--dheerendra--
चढ़त कदम्ब, मचे धम ऊधम..
जवाब देंहटाएंआपके पोस्ट पर आकर विचरण करना बड़ा ही आनंददायक लगता है । मेरे नए पोस्ट "लेखनी को थाम सकी इसलिए लेखन ने मुझे थामा": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद। .
जवाब देंहटाएंइसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे
जवाब देंहटाएंयह कदंम का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे,
... aapne achha kiya ise padhaker ...
बहुत सुन्दर हमारी भी बचपन की सबसे प्रिय रचना है यह अभी भी शब्द-शब्द याद हैं.
जवाब देंहटाएंऔर १ कविता थी
उठो लाल अब आँखें खोलो
पानी लायी हूँ मुहं धोलो
बीती रात कमलदल फूले
उनके ऊपर भंवरे झूले
चिड़िया चहक उठी पेड़ों पर
नभ में न्यारी लाली छाई
बहने लगी हवा अति सुन्दर
धरती ने प्यारी छवि पाई
ऐसा सुन्दर समय न खोओ
मेरे प्यारे अब मत सोओ
ati sundar bhaav ..............
हटाएंसंध्या जी,..आपकी टिप्पणी अच्छी लगी,...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति के लिए आभार......
यह कविता हमें भी बहुत पसंद थी|
जवाब देंहटाएंफिर से पढ़कर बहुत अच्छा लगा|
सुंदर प्रस्तुति के लिए आभार|
खूबसूरत प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंधीरेन्द्र जी बचपन याद दिला दी आप ने ..मुझे भी ये कविता बहुत पसंद है...आभार....
जवाब देंहटाएंयह रचना पहले भी पढ़ी है लेकिन इसका रस बना रहता है .वाचन में हर दफा आनंद आता है .
जवाब देंहटाएंबचपन की याद दिला दी आपने...
जवाब देंहटाएंवैसे बचपन को हम भुलाते भी कहाँ है...मैंने कदम्ब के नीचे बैठ कर कुछ लिखा था इस कविता को याद करते करते..
कभी पढियेगा मेरे ब्लॉग पर-"मेरी डायरी का एक पन्ना 5th october."
शुक्रिया
सादर.
सुभद्रा जी की यह रचना बहुत अच्छी लगी सर!
जवाब देंहटाएंसादर
सच में उम्दा प्रस्तुति ..के लिए दिल से आभार
जवाब देंहटाएंधीरेन्द्र जी! आपने तो मुझे बचपन में पहुंचा दिया. मन भर आता है और दुःख होता है कि हमारे बच्चों को यह सब नहीं मिला पढ़ने को!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर"यह कदंम का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे"अभी भी सुभद्रा कुमारी चौहान जी की यह रचना याद है.
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति ने बचपन की यादें ताजा कर दी.
vikram7: हाय, टिप्पणी व्यथा बन गई ....
बचपन की यादें ताजा हो गई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लगी यह रचना.
जवाब देंहटाएंआपका आभार हमें इसे पढवाने
के लिए.
vikram7: हाय, टिप्पणी व्यथा बन गई ....
जवाब देंहटाएंआदरणीय धीरेन्द्र भाई साहब
मेरी इस कविता पर टिप्पणी के लिये,धन्यवाद
ये रचना खुद की आदत पर ,न कि किसी पर व्यंग .
ब्लॉग लेखन विचारों की अभिव्यक्ति का एक जरिया मात्र है. जहाँ अपनी बात कहनें के अलावा दूसरो को जाननें व उनके विचारों से अवगत होने का हमें अवसर मिलाता है..
प्रभावशाली अभिव्यक्ति को प्रचार की आवश्यकता नही होती,कबीर व सूरदास जी इसके उदाहरण हैं. ब्लॉग जगत में हिन्दी पाठकों की संख्या कम है.साथ ही अच्छे लेखन को सही मंच का जरिया भी उपलब्ध नही है . आपकी रचनायें मैं बराबर पढ़ता हूँ,आप का लेखन काफी गंभीर व समाज की ज्वलंत समस्या पर आधारित होता है, वैसे परम्पराओं का निर्वहन भी जरूरी है.
आइये हसते मुस्कराते टिप्पणी का क्रम जारी रखें .
विक्रम जी,..मैंने जो भी लिखा है,वह आम सभी ब्लोगरो की दिली भावनाओं की बात को व्यक्त किया है,अगर मेरी बातों सच्चाई है तो तुम्हे खुद ही तुम्हारा कमेंट्स बाक्स बता देगा,....अगर मेरी बात सच निकले,तो मुझे बधाई जरूर देना
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंबचपन की स्मृति में यह सुन्दर कविता ले जाये,
जवाब देंहटाएंजब भी पढ़ु ये कविता मुझको माँ की याद दिलाये।
ये कविता मन में प्रार्थना की तरह रची बसी है ...पॉडकास्ट बनाया था एक बार हिन्दयुग्म आवाज के लिए ...इसे गाना बेहत सुकून देता है ..इसे आप यहाँ भी पढ़ सकते है --- http://kuchhpuraaniyaadein.blogspot.com/2010/07/blog-post_15.html
जवाब देंहटाएंऔर यहाँ सुन सकते हैं ---
http://baaludyan.hindyugm.com/2010/02/listen-yeh-kadamb-ka-ped.html
आभार फ़िर से याद ताजा करने के लिये..
बहुत सुन्दर रचना..बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंधीरेन्द्र जी , 'रसखान' - "जो खग हों तो बसेरा करूँ - - - - " की यादों के साथ बचपन में पहुंचा दिया आपने . . .आभार.
जवाब देंहटाएंगहन अभिव्यक्ति से परिपूर्ण सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंवहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता
जवाब देंहटाएंअम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हे बुलाता ...
सुभद्रा कुमारी जी की अनुपम कृति .... आनद आ गया पढ़ के ...
are waah achcha lga.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार इस अमर रचना को पढवाने के लिए
जवाब देंहटाएंहमारे कोर्स की किताब में यह कविता थी.. और हमलोग जुबानी याद करते थे उन कविताओं को.. अभूत अच्छी प्रस्तुति!!
जवाब देंहटाएंwah bachpan me padhi kavita kadam ka paid ki yaad dila gayi aapki prastuti.
जवाब देंहटाएंयह कविता मुझे भी बहुत पसंद है । इसे फिर से पढवाने का आभार ।
जवाब देंहटाएंवाह वाह वाह आदरणीय धीरेन्द्र सर...
जवाब देंहटाएंमेरे घर के सामने निकलते ही बाहर उद्यान में लगा कदम्ब का पेड़ रोज ही मुस्कुराता दिखता पड़ता है और इस प्यारे गीत की शुरुआती पंक्तियाँ लगभग रोज ही गुनगुना उठता हूँ उस पेड़ को देखर...
सादर आभार
मजा आ गया पढ़कर।
जवाब देंहटाएंबचपन में यह कविता पढी थी आज फिर बचपन की यादें ताजा हो गई।
जवाब देंहटाएंयह सदाबहार कविता बहुत अच्छी लगती है।
सुभद्रा कुमारी चौहान की इस कविता को पढ़्वाने के लिए आभार॥
जवाब देंहटाएंकुछ पुराने पलों को संस्मरण कराना भी कभी कभी आनंददायक होता है, वैसे इस कविता को संस्मरण कराने के लिए धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंटिप्स हिंदी में
प्राथमिक शाला बाल-भारती कक्षा चौथी(सम्भवत:)की स्मृतियाँ ताजा हो उठी.
जवाब देंहटाएंDheerendraji,
जवाब देंहटाएंkavita prastut karne ke liye dhanyavaad...
hume follow karne yogya samjha uska dhanyavaad...yunhi aashirvaad banaye rakhein....
are waah...! bachpan ki yeden fir se jag gai. ye main paanchmi varg men padha thaa...chhathi men hawa hun hawa main basanti hawa hun...ye sabhi kaveetayen abhi tak man men basi hui hai...!
जवाब देंहटाएंaaj "kadam ka ped" padh kar fir se man school boy ban gaya...apko bahut bahut shukriya!
main aapka dil se samarthak ban raha hun.
bachpan yaad dila diya sir aapne...ek kadamb ka ped agar maa hota yamuna teere main bhi us par beth kanhaiya banta dheere dheere......koun si class me padhi thi ye kavita theek se yaad nahi....par kavita acche se yaad thi....bahut accha laga
जवाब देंहटाएंसुभद्रा कुमारी चौहान जी को पढ़कर बहुत अच्छा लगा |
जवाब देंहटाएंये तो इतनी मनभावन कविता है ..की कोई मेल नहीं ..पहले हमने पढ़ी आज अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद के साथ
कभी पधारें..
kalamdaan.blogspot.com
पुराना काव्य हमेशा से प्रेरणादायक रहा है !
जवाब देंहटाएंधीरेन्द्र भाई ...नाराज न हों ....आजकल काम के बोझ से दवा हूँ .......नव वर्ष की शुभ कामना .....
जवाब देंहटाएंकदम का पेड़ ...मैंने भी अपने बचपन में पढ़ा था.....आपने पुराणी यादे ताजा कर दी
bahut pyaari rachna, ati sundar, shubhkaamnaayen.
जवाब देंहटाएंक्या कहूं , आपने इस कविता की पंक्तियों के माध्यम से मुझे अपना बचपन याद करा दिया, मेरी माँ शिक्षा विभाग से सम्बंधित थीं, और वे अक्सर मुझसे यह कविता गीत के तरीके से सुना करतीं थीं| किन शब्दों में आभार व्यक्त करूं,आपका |
जवाब देंहटाएंमेरे तरफ से आपको एवं समस्त परिवार को
जवाब देंहटाएंमकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें !
तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे-धीरे आता
जवाब देंहटाएंऔर तुम्हारे फैले आँचल के नीचे छिप जाता...
सुंदर प्रस्तुति |
यह रचना है ही बहुत प्यारी। मुझे भी भाई।
जवाब देंहटाएंआभार, बहुत सुन्दर, इस कविता ने मुझे मेेरे बचपन व माॅ की याद में रूला दिया।
जवाब देंहटाएंyeh mere jiven sabse anand dene wali kavita he dhanya he subhadra kumari ji jo aapne bharat me janam liya
जवाब देंहटाएंबहुत - बहुत आभार,
जवाब देंहटाएंbachpan yad aa gaya
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंयह कदम्ब का पेड़
लेखिका-सुभद्रा कुमारी चौहान
आप सभी लोगों का मेरे ब्लाँग पर स्वागत हौं....
https://viratamitraj.blogspot.in/2018/02/yahkadambkaped.html