गुरुवार, 19 जनवरी 2012

वाह रे मंहगाई.....


वाह रे महगांई...

लाठी तो चलती रहे, पर आवाज आय,
मंहगाई की मार से, जनता मरती जाय
!

जनता मरती जाय, होय काला बाजारी,
रोते रहे किसान, हंसे देखो ब्यापारी!

नेता और व्यापारी, के कारण मंहगाई आती
होय तभी सुधार, लेय जब जनता लाठी,

भ्रष्ट आचरण घूस से, धन ज्यों काला होय
उसी तरह से झूठ से, मुह भी काला होय,

मुह भी काला होय, फिर फिर सबसे छिपते
पर ये सब क़ानून , नहीं नेता पर लगते,

दशा देश की देख, कष्ट है हमको होता
बनता नेता वही, भ्रष्ट जो ज्यादा होता,

कही अजीरण हो रहा, कही सताए भूख
चिंतन करना चाहिए, कहाँ हो रही चूक,

कहाँ हो रही चूक , देखो कलयुग का खेल
कौन सुधारे देश को, जब राजा जाए जेल,

बहुत बड़ा यह प्रश्न है, मिलता नही जबाब
स्विस बैंक के खातोंका, देगा कौन जबाब,

नेता गण लगने लगे, जैसे बड़ा गिरोह
सभी लोग करने लगे, कुर्सी का है मोह,

कुर्सी का है मोह ,कर रहे आपस में मेल
चुनाव के लिए हो रहा, आरक्षण का खेल,

जनता गूंगी हो गई, है संसद भी मौन
अंधी है सरकार भी, देखन वाला कौन
,

dheerendra...

73 टिप्‍पणियां:

  1. मन की पीड़ा से निकले इतने गहरे दोहे, अत्यन्त प्रभावी...

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  2. राजनैतिक परिवेश का सटीक चित्रण ..अच्छी प्रस्तुति

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  3. जनता गूंगी हो गई, है संसद भी मौन
    अंधी है सरकार भी, देखन वाला कौन,
    सही है .......हर पंक्ति सार्थक है !

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  4. बहुत बड़ा यह प्रश्न है, मिलता नही जबाब
    स्विस बैंक के खातोंका, देगा कौन जबाब,
    bahut achha likha

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  5. वाह..बहुत बढ़िया..
    सार्थक प्रस्तुति..

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  6. बहुत सुन्दर एवं सार्थक दोहे !
    आभार !

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  7. कल 20/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  8. Wah Dheerendra ji ......Mahgayee ki Vyatha ko dohon dhal kar bahut hi prabhavshali prastuti ko parosa ....abhar ke sath hi badhai.

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  9. महंगाई के दर्द को अभिव्यक्त करने के साथ-साथ व्यवस्था पर करारी चोट है इन दोहों में।

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  10. शुक्रिया धीरेन्द्र जी.......हाँ आप आते रहे हैं अक्सर.......माफ़ कीजिये कई बार समय नहीं मिल पता आज समय निकाल कर आखिर आना हुआ आपके ब्लॉग पर......पहली पोस्ट जो पड़ी तो अच्छी लगी.......देश की सामायिक स्थिति पर शानदार पोस्ट है आपकी.......आज ही फॉलो कर रहा हूँ ताकि आगे भी साथ बना रहे|

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  11. सार्थक, सारगर्भित प्रस्तुति, सादर.

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  12. प्रत्‍येक शब्‍द में सार्थकता झलक रही है ..बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  13. बहुत सुंदर धीरेंद्र जी.

    चुनाव की व्यस्तता में मैं ब्लाग पर कम आ पा रहा हूं, ये स्थिति 29 फरवरी तक रहेगी। लेकिन समय मिलने पर मैं जरूर आप सब के बीच रहूंगा।

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  14. बहोत अच्छा लगा पढकर

    नया हिंदी ब्लॉग

    http://http://hindidunia.wordpress.com/

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  15. बहुत सुंदर रचना, अच्छी लगी

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  16. आप ने इस सुन्दर रचना द्वारा सच्चाई उजागर कर दी है...धन्यवाद!

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  17. प्रभावी भावाभिव्क्ति।
    http://www.nawya.in/hindi-sahitya/item/%E0%A4%A0%E0%A5%80%E0%A4%95-%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A5%80-%E0%A4%87%E0%A4%B8%E0%A5%80-%E0%A4%B5%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4.html

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  18. जनता गूंगी हो गई, है संसद भी मौन
    अंधी है सरकार भी, देखन वाला कौन,

    जवाबी दोहे हैं आभार |

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  19. वाह! आपका भी जबाब नही.
    महंगाई का खेल निराला है जी.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
    नई पोस्ट जारी की है.

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  20. बढिया दोहों के लिए बधाई धीरेंद्र भाई॥

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  21. नेता और व्यापारी, के कारण मंहगाई आती
    होय तभी सुधार, लेय जब जनता लाठी,

    sarthak dohe ...

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  22. एक कडवी सच्चाई से रूबरू करवाती पोस्ट...उम्दा रचना के लिए बधाई.....

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  23. वाह: बहुत ही सटीक व शानदार दोहे..बधाई..

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  24. नेता गण लगने लगे, जैसे बड़ा गिरोह
    सभी लोग करने लगे, कुर्सी का है मोह,
    bahut khoob zanaab shaandaar parivesh bunaa hai dohaavali me ,badhaai .

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  25. वाह धीरेन्द्र जी ! खूब चोट की है आपने इस व्यवस्था, नेता और जनता पर । बहुत कसी हुई चेतना लाती, मानस को जगाती कविता। बधाई !

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  26. चिंतन करना चाहिए, कहाँ हो रही चूक......बहुत ही सटीक.....बधाई !!!

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  27. बहुत बढ़िया धीरेन्द्र भाई ....
    शुभकामनयें आपको !

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  28. बहुत सटीक रचना प्रस्तुत की है आपने । आपका ब्लॉग फोलो कर लिया है ।
    आभार ।

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  29. राजनीतिक कुण्डलियाँ और दोहों से दोहरी मार !

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  30. जनता गूंगी हो गई, है संसद भी मौन
    अंधी है सरकार भी, देखन वाला कौन,

    बहुत बढ़िया दोहे आज के सन्दर्भ में.

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  31. राजनैतिक परिवेश का चित्रण ..अच्छी प्रस्तुति
    आपने जो चित्र लगाया है वो भी उम्दा और सटीक है।

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  32. देश की हालत की सही तस्वीर खींची है ।
    बहुत सुन्दर दोहे ।

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  33. आपका पोस्ट अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट "धर्मवीर भारती" पर आपका सादर आमंत्रण है । धन्यवाद ।

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  34. बहुत अच्छा वार है ..
    kalamdaan.blogspot.com

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  35. वर्तमान हालात को बहुत सलीके से आपने कुंडलियों में ढाला है।
    बहुत बढि़या।

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  36. अद्भुत कुण्डलियाँ... वर्त्तमान व्यथा कथा का मार्मिक चित्र प्रस्तुत करती हैं!!

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  37. कही अजीरण हो रहा, कही सताए भूख
    चिंतन करना चाहिए, कहाँ हो रही चूक,
    न हो कमीज़ तो पांवों से पेट धक् लेंगे ,
    ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिए .
    यदि यही डेमोक्रेसी है तो इसे बदल दो "एंटिला "और सलुम डॉग मिलिनेयर का सहजीवन यहीं है मुमकिन और कहीं नहीं .सुन्दर प्रस्तुति धीरेन्द्र जी .बाराहा बधाई .

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  38. नेता और व्यापारी, के कारण मंहगाई आती
    होय तभी सुधार, लेय जब जनता लाठी,
    भ्रष्ट आचरण घूस से, धन ज्यों काला होय
    उसी तरह से झूठ से, मुह भी काला होय...
    सुन्दर, सटीक एवं ज़बरदस्त दोहे! दिल को छू गई! गहरे भाव के साथ लिखे हुए सारे दोहे एक से बढ़कर एक हैं!

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  39. अद्भुत अभिव्यक्ति..सभी दोहे सार्थक एवं सटीक हैं|

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  40. राजनैतिक परिवेश का सटीक चित्रण| धन्यवाद।

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  41. देश कि यथार्थ स्थिति को ब्यान करती उम्दा प्रस्तुति ....

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  42. dekhana yah hae ki yah laathii uthaata kon hae? achhii prastuti

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  43. जनता मरती जाय, होय काला बाजारी,
    रोते रहे किसान, हंसे देखो ब्यापारी!
    bahut khoob
    badhai
    rachana

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  44. आज के हालात का बहुत सटीक चित्रण...

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  45. मँहगाई का आपने, सुन्दर किया बखान,
    रचना की तारीफ मैं, क्यों न करूँ श्रीमान्।

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  46. इस कविता में प्रत्यक्ष अनुभव की बात की गई है, इसलिए सारे शब्द अर्थवान हो उठे हैं।

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  47. वाह ... महगाई के इस खेल में जनता बेचारी पिस रही है और नेता लोग ऐश कर रहे हैं ...
    आपने बहुरत ही लाजवाब छंदों से बाँधा है मंहगाई के तीर को ...

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  48. वाह - वाह धीरेन्द्र जी क्या बात है, मंहगाई पे शब्दों के तीखे बांड... बहुत उम्दा.

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आपकी टिप्पणियाँ मेरे लिए अनमोल है...अगर आप टिप्पणी देगे,तो निश्चित रूप से आपके पोस्ट पर आकर जबाब दूगाँ,,,,आभार,