वाह रे महगांई...
लाठी तो चलती रहे, पर आवाज न आय,
मंहगाई की मार से, जनता मरती जाय!
जनता मरती जाय, होय काला बाजारी,
रोते रहे किसान, हंसे देखो ब्यापारी!
नेता और व्यापारी, के कारण मंहगाई आती
होय तभी सुधार, लेय जब जनता लाठी,
भ्रष्ट आचरण घूस से, धन ज्यों काला होय
उसी तरह से झूठ से, मुह भी काला होय,
मुह भी काला होय, फिर फिर सबसे छिपते
पर ये सब क़ानून , नहीं नेता पर लगते,
दशा देश की देख, कष्ट है हमको होता
बनता नेता वही, भ्रष्ट जो ज्यादा होता,
कही अजीरण हो रहा, कही सताए भूख
चिंतन करना चाहिए, कहाँ हो रही चूक,
कहाँ हो रही चूक , देखो कलयुग का खेल
कौन सुधारे देश को, जब राजा जाए जेल,
बहुत बड़ा यह प्रश्न है, मिलता नही जबाब
स्विस बैंक के खातोंका, देगा कौन जबाब,
नेता गण लगने लगे, जैसे बड़ा गिरोह
सभी लोग करने लगे, कुर्सी का है मोह,
कुर्सी का है मोह ,कर रहे आपस में मेल
चुनाव के लिए हो रहा, आरक्षण का खेल,
जनता गूंगी हो गई, है संसद भी मौन
अंधी है सरकार भी, देखन वाला कौन,
dheerendra...
मन की पीड़ा से निकले इतने गहरे दोहे, अत्यन्त प्रभावी...
जवाब देंहटाएंbilkul sahi bat khi kavita ke bhane.
जवाब देंहटाएंkarara vyang...umda lekhan...
जवाब देंहटाएंbahut khoob sirji....
bahut prabhaavshali dohe atiuttam....atiuttam.
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंराजनैतिक परिवेश का सटीक चित्रण ..अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमंहगाई पर अच्छी खबर ली है आपने।
जवाब देंहटाएंजनता गूंगी हो गई, है संसद भी मौन
जवाब देंहटाएंअंधी है सरकार भी, देखन वाला कौन,
सही है .......हर पंक्ति सार्थक है !
बहुत बड़ा यह प्रश्न है, मिलता नही जबाब
जवाब देंहटाएंस्विस बैंक के खातोंका, देगा कौन जबाब,
bahut achha likha
महंगाई पर सटीक दोहे ...
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक दोहावली प्रस्तुत की है आपने!
जवाब देंहटाएंसटीक व शानदार दोहे।
जवाब देंहटाएंकमाल की प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंवाह..बहुत बढ़िया..
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति..
बहुत सुन्दर एवं सार्थक दोहे !
जवाब देंहटाएंआभार !
बहुत ही बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
कल 20/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
sateek rachna
जवाब देंहटाएंWah Dheerendra ji ......Mahgayee ki Vyatha ko dohon dhal kar bahut hi prabhavshali prastuti ko parosa ....abhar ke sath hi badhai.
जवाब देंहटाएंमहंगाई के दर्द को अभिव्यक्त करने के साथ-साथ व्यवस्था पर करारी चोट है इन दोहों में।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब।
जवाब देंहटाएंBahut khoob aaj ke daur ki rachna bilkul sateek...
जवाब देंहटाएंAabhaar !
शुक्रिया धीरेन्द्र जी.......हाँ आप आते रहे हैं अक्सर.......माफ़ कीजिये कई बार समय नहीं मिल पता आज समय निकाल कर आखिर आना हुआ आपके ब्लॉग पर......पहली पोस्ट जो पड़ी तो अच्छी लगी.......देश की सामायिक स्थिति पर शानदार पोस्ट है आपकी.......आज ही फॉलो कर रहा हूँ ताकि आगे भी साथ बना रहे|
जवाब देंहटाएंएकदम सही...
जवाब देंहटाएंसार्थक, सारगर्भित प्रस्तुति, सादर.
जवाब देंहटाएंप्रत्येक शब्द में सार्थकता झलक रही है ..बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर धीरेंद्र जी.
जवाब देंहटाएंचुनाव की व्यस्तता में मैं ब्लाग पर कम आ पा रहा हूं, ये स्थिति 29 फरवरी तक रहेगी। लेकिन समय मिलने पर मैं जरूर आप सब के बीच रहूंगा।
बहोत अच्छा लगा पढकर
जवाब देंहटाएंनया हिंदी ब्लॉग
http://http://hindidunia.wordpress.com/
बहुत सुंदर रचना, अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंआप ने इस सुन्दर रचना द्वारा सच्चाई उजागर कर दी है...धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंप्रभावी भावाभिव्क्ति।
जवाब देंहटाएंhttp://www.nawya.in/hindi-sahitya/item/%E0%A4%A0%E0%A5%80%E0%A4%95-%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A5%80-%E0%A4%87%E0%A4%B8%E0%A5%80-%E0%A4%B5%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4.html
जनता गूंगी हो गई, है संसद भी मौन
जवाब देंहटाएंअंधी है सरकार भी, देखन वाला कौन,
जवाबी दोहे हैं आभार |
iska jabab sach hai koun dega.......
जवाब देंहटाएंसटीक व शानदार दोहे
जवाब देंहटाएंवाह! आपका भी जबाब नही.
जवाब देंहटाएंमहंगाई का खेल निराला है जी.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
नई पोस्ट जारी की है.
बढिया दोहों के लिए बधाई धीरेंद्र भाई॥
जवाब देंहटाएंसटीक व शानदार.
जवाब देंहटाएंवाह ! शानदार :)
जवाब देंहटाएंGyan Darpan
..
Shri Yantra Mandir
नेता और व्यापारी, के कारण मंहगाई आती
जवाब देंहटाएंहोय तभी सुधार, लेय जब जनता लाठी,
sarthak dohe ...
एक कडवी सच्चाई से रूबरू करवाती पोस्ट...उम्दा रचना के लिए बधाई.....
जवाब देंहटाएंवाह: बहुत ही सटीक व शानदार दोहे..बधाई..
जवाब देंहटाएंनेता गण लगने लगे, जैसे बड़ा गिरोह
जवाब देंहटाएंसभी लोग करने लगे, कुर्सी का है मोह,
bahut khoob zanaab shaandaar parivesh bunaa hai dohaavali me ,badhaai .
वाह धीरेन्द्र जी ! खूब चोट की है आपने इस व्यवस्था, नेता और जनता पर । बहुत कसी हुई चेतना लाती, मानस को जगाती कविता। बधाई !
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंSateek Panktiyan..... Bahut Badhiya
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar ....samayik aur prabhavshali ....badhai.
जवाब देंहटाएंचिंतन करना चाहिए, कहाँ हो रही चूक......बहुत ही सटीक.....बधाई !!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया धीरेन्द्र भाई ....
जवाब देंहटाएंशुभकामनयें आपको !
बहुत सटीक रचना प्रस्तुत की है आपने । आपका ब्लॉग फोलो कर लिया है ।
जवाब देंहटाएंआभार ।
राजनीतिक कुण्डलियाँ और दोहों से दोहरी मार !
जवाब देंहटाएंजनता गूंगी हो गई, है संसद भी मौन
जवाब देंहटाएंअंधी है सरकार भी, देखन वाला कौन,
बहुत बढ़िया दोहे आज के सन्दर्भ में.
राजनैतिक परिवेश का चित्रण ..अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपने जो चित्र लगाया है वो भी उम्दा और सटीक है।
देश की हालत की सही तस्वीर खींची है ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर दोहे ।
आपका पोस्ट अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट "धर्मवीर भारती" पर आपका सादर आमंत्रण है । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा वार है ..
जवाब देंहटाएंkalamdaan.blogspot.com
bahut badhiya vyangy
जवाब देंहटाएंवर्तमान हालात को बहुत सलीके से आपने कुंडलियों में ढाला है।
जवाब देंहटाएंबहुत बढि़या।
अद्भुत कुण्डलियाँ... वर्त्तमान व्यथा कथा का मार्मिक चित्र प्रस्तुत करती हैं!!
जवाब देंहटाएंकही अजीरण हो रहा, कही सताए भूख
जवाब देंहटाएंचिंतन करना चाहिए, कहाँ हो रही चूक,
न हो कमीज़ तो पांवों से पेट धक् लेंगे ,
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिए .
यदि यही डेमोक्रेसी है तो इसे बदल दो "एंटिला "और सलुम डॉग मिलिनेयर का सहजीवन यहीं है मुमकिन और कहीं नहीं .सुन्दर प्रस्तुति धीरेन्द्र जी .बाराहा बधाई .
नेता और व्यापारी, के कारण मंहगाई आती
जवाब देंहटाएंहोय तभी सुधार, लेय जब जनता लाठी,
भ्रष्ट आचरण घूस से, धन ज्यों काला होय
उसी तरह से झूठ से, मुह भी काला होय...
सुन्दर, सटीक एवं ज़बरदस्त दोहे! दिल को छू गई! गहरे भाव के साथ लिखे हुए सारे दोहे एक से बढ़कर एक हैं!
अद्भुत अभिव्यक्ति..सभी दोहे सार्थक एवं सटीक हैं|
जवाब देंहटाएंराजनैतिक परिवेश का सटीक चित्रण| धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंदेश कि यथार्थ स्थिति को ब्यान करती उम्दा प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंगहरी चोट करती रचना - बधाई !
जवाब देंहटाएंdekhana yah hae ki yah laathii uthaata kon hae? achhii prastuti
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक.....बधाई !!!
जवाब देंहटाएंजनता मरती जाय, होय काला बाजारी,
जवाब देंहटाएंरोते रहे किसान, हंसे देखो ब्यापारी!
bahut khoob
badhai
rachana
आज के हालात का बहुत सटीक चित्रण...
जवाब देंहटाएंमँहगाई का आपने, सुन्दर किया बखान,
जवाब देंहटाएंरचना की तारीफ मैं, क्यों न करूँ श्रीमान्।
इस कविता में प्रत्यक्ष अनुभव की बात की गई है, इसलिए सारे शब्द अर्थवान हो उठे हैं।
जवाब देंहटाएंवाह ... महगाई के इस खेल में जनता बेचारी पिस रही है और नेता लोग ऐश कर रहे हैं ...
जवाब देंहटाएंआपने बहुरत ही लाजवाब छंदों से बाँधा है मंहगाई के तीर को ...
वाह - वाह धीरेन्द्र जी क्या बात है, मंहगाई पे शब्दों के तीखे बांड... बहुत उम्दा.
जवाब देंहटाएं