सब कुछ पाने के बाद.. क्या.?
जिंदगी में इंसान क्या चाहता है सफलता.?
हाँ छोटी बड़ी सफलताओं की चाह ही
जिन्दगी को गतिमान रखती है \
कोई छोटी छोटी उपलब्धियों में
अपनी सफलता तलाश कर
उन्ही के लिए जीता है
तो कोई गगनचुंबी अपेक्षाओं की पूर्ती को
सफलता का राज मान कर
उसी की ओर दौड लगाते हुए,
जिंदगी गुजार देता है
सफलता की राह में असफलता से
लगभग हर व्यक्ति का सामना होता है
अधिकांश लोग...
किसी ना किसी तरह इससे उबर जाते है
और कुछ ऐसे भी होते है
जो असफलता से हताश होकर
जीवन लीला समाप्त कर बैठते है
और जो सफलता पा जाते है
जीवन के हर मकसद में कामयाब हो जाते है
अपना बाकी जीवन वे खुशी खुशी गुजार देते है
लेकिन कुछ ऐसे भी लोग होते है
जो सफलता का शिखर छू लेने के बाद भी
मौत को गले लगा लेने की राह चुनते है
कारण..? कारण यह कि..
सब कुछ पा लेने के बाद,
उन्हें और जीने की वजह नजर नही आती
यह अजीब विरोधाभास है
जहा असफल व्यक्ति हताशा में
डूबकर मौत को गले लगाता है
वहीं भौतिक उपलब्धियों का
शिखर छू लेने के बाद व्यक्ति को
जीवन में किसी उद्देश्य की कमी खटकने लगती है
और यह उद्देश्यहीनता उसे
आत्महत्या की ओर ले जाती है
कुल मिलाकर मेरा कहना ये है
यदि जीवन में खालीपन महसूस हो रहा है
तो उसकी पूर्त्ती मृत्यु से मत करो
जीवन को उद्देश्य दो
अपने लिए तो जी चुके
औरों के लिए जियो..|
००००००००००००००
दु:खद किन्तु सत्य घटना.
अभी पिछले माह ही गोवा में एक युवा दंपति द्वारा की गई आत्महत्या ने
सबको दहला दिया था ३९ वर्षीय साफ्टवेयर इंजीनियर'आनंद रंथीदेवन'और
उसकी३६वर्षीय पत्नी 'दीपा' फांसीपर झूलते पाए गए,किसी आर्थिक कठिनाई
बीमारी या फिर संबंधों में तनाव के कारण इस तरह की आत्महत्या हैरत
पैदा नही करती| हैरत की बात यह थी कि रंथीदेवन दंपंती आर्थिक रूप से
संपन्न था, सफल था, स्वस्थ था.खुश था,.फिर यह कदम क्यों.?उसके फ़्लैट
से मिले सुसाईट नोट में इस सवाल का जबाब दर्ज था,...हमने खूब अच्छी
जिंदगी गुजारी है, हम दुनिया भर में घूमे है, और कई देशों में रहे है, हमने
इतनापैसा कमाया जिसकी कभी कल्पनाभी नही कीथी और इसे उन चीजों
पर खर्च किया जिसमे हमे खुशी मिलतीथी..आगे सार यहथा कि अब जीने
के लिए कुछ बचा नही है, इसलिए हम खुदकुशी कर रहे है|
dheerendra
सबकुछ के बाद बस एक दुखद शून्य ....
जवाब देंहटाएंऔरों के लिए जीना शुरू करने के बाद समय पंख लगाकर उड़ने लगता है.बिलकुल सही कहा.
जवाब देंहटाएंकुछ तो हो जो कभी समाप्त न हो।
जवाब देंहटाएंजीवन में किसी उद्देश्य की कमी खटकने लगती है
जवाब देंहटाएंऔर यह उद्देश्यहीनता उसे
आत्महत्या की ओर ले जाती है
कुल मिलाकर मेरा कहना ये है
यदि जीवन में खालीपन महसूस हो रहा है
तो उसकी पूर्त्ती मृत्यु से मत करो
जीवन को उद्देश्य दो
अपने लिए तो जी चुके
औरों के लिए जियो..|
bahut sundar...
bilkul sahi kaha hai aapne ...apne liye jiye the abtak aa auron ki khatir ji le.
जवाब देंहटाएंदुखद है यह ...सही कहा आपने ..।
जवाब देंहटाएंman ki dukhad sthiti kuchh bhi karvati hai ...
जवाब देंहटाएंYou're right. It's a tragedy! congrats on writing such a meaningful post!
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक रचना...एक गंभीर सन्देश के साथ..बहुत अच्छा लिखा है..
जवाब देंहटाएंye kahna ki jine k liye ab kuchh bacha nahi hai, apne aap mein asantusti, tanaav, haar ayr kaayarta ko darshata hai... main to maanta hun ki har pal naya hai aur karne ko abhi bahut kuchh baaki hai... apne liye kar chuke to apnon k liye karein... wo v pura ho gaya to dusron k liye karein...
जवाब देंहटाएंकोई न कोई उद्देश्य तो तलाशा ही जा सकता है...
जवाब देंहटाएंजीने के कई बहाने हैं!
मेरे पोस्ट आकर अपने अनमोल विचारों से नवाजा उन सभी लोगों को मेरा हार्दिक आभार शुक्रिया...
जवाब देंहटाएंधन्यबाद देता हूँ...dheerendra...
कल 23/11/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, चलेंगे नहीं तो पहुचेंगे कैसे .. ?..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बहुत अच्छी सार्थक मनोवैज्ञानिक प्रस्तुति .सीखना आखिर चुक कैसे जाता है ?क्या आदमी इतनी जल्दी चुक जाता है ?
जवाब देंहटाएंगंभीर सन्देश बहुत सार्थक रचना....!
जवाब देंहटाएंसंजय भास्कर
आदत...मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
सत्य घटना के साये में आपने अत्यंत गंभीर और सार्थक रचना रची है आदरणीय धीरेन्द्र जी...
जवाब देंहटाएंसादर आभार...
बहुत उम्दा व भावपूर्ण,संदेशपूर्ण प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंप्रस्तुत कहानी पर अपनी महत्त्वपूर्ण प्रतिक्रिया से अवगत कराएँ ।
भावना
बहुत अच्छा सबक है उन लोगों के लिए जो उद्देश्य विहीन जीवन जीते हैं ,
जवाब देंहटाएंकुछ न कुछ पाने की इच्छा हर इंसान को रखनी चाहिए जिन्दा रहने के लिए |
सार्थक पोस्ट
जवाब देंहटाएंपाना भीतर ही हो सकता है,बाहर नहीं और भीतर जब सब कुछ मिल जाए,तो वहीं विश्राम करना ठीक।
जवाब देंहटाएंbhaut hi sanvedansheel..aur bhaavpurn rachna....
जवाब देंहटाएंbhaut hi sanvedansheel rachna.....
जवाब देंहटाएंकुछ न था तो खुदा था और सब कुछ है तो भी खुदा ही है
जवाब देंहटाएंविचारोत्तेजक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअपने लिए तो जी चुके
जवाब देंहटाएंऔरों के लिए जियो.behad prerak andaz hai......
यह अजीब विरोधाभास है
जवाब देंहटाएंजहा असफल व्यक्ति हताशा में
डूबकर मौत को गले लगाता है
वहीं भौतिक उपलब्धियों का
शिखर छू लेने के बाद व्यक्ति को
जीवन में किसी उद्देश्य की कमी खटकने लगती है
सही बात कह रहे हैं सर!
सादर
इस खालीपन का कोई संभव राह भी नहीं है ....सूनेपन की राते भी और ये दिन भी .....
जवाब देंहटाएंभीतर की रिक्तता बाहर की उपलब्धियों से
जवाब देंहटाएंकभी नहीं भर सकती ! अच्छी पोस्ट आभार !
भौतिक उपलब्धि को हमारे यहाँ निम्न कोटि की
जवाब देंहटाएंउपलब्धि ही बताया गया है,यही कारण है कि
प्राचीन समय में राजा लोग वानप्रस्थ/संन्यास का
अनुपालन करने के लिए सभी भोग सामग्री का
त्याग कर जीवन को तपोमय बना 'परमानन्द'
की प्राप्ति का यत्न करते थे.
यह जीवन प्रभु की अनमोल धरोहर है.
एक एक क्षण अत्यंत कीमती है.
इसका सदुपयोग करना ही मानव का धर्म है.
dukhad kintu saty majbur hai hai ham apne ichchaon ke age
जवाब देंहटाएंजीवन के हर मकसद में कामयाब हो जाते है
जवाब देंहटाएंअपना बाकी जीवन वे खुशी खुशी गुजार देते है
लेकिन कुछ ऐसे भी लोग होते है
जो सफलता का शिखर छू लेने के बाद भी
मौत को गले लगा लेने की राह चुनते है
जीवन विरोधाभासों के संगम के सिवा कुछ भी नहीं .......!
जहा असफल व्यक्ति हताशा में
जवाब देंहटाएंडूबकर मौत को गले लगाता है
वहीं भौतिक उपलब्धियों का
शिखर छू लेने के बाद व्यक्ति को
जीवन में किसी उद्देश्य की कमी खटकने लगती है
और यह उद्देश्यहीनता उसे
आत्महत्या की ओर ले जाती है ...
मानव मन को समझाना आसान नहीं , अफ़सोस जनक मूर्खता की मिसाल है यह घटना !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !