हम दो हमारे दो .....
अतीत के वे क्षण
कितने उल्लास पूर्ण,मधुर थे
सीमित परिवार में
हम दो हमारे दो थे
लेकिन-?
वर्त्तमान
बढ़ता परिवार
देश के लिए भार
अशांति और मानसिक यातना
भविष्य के लिए
जीवन की कठिन साधना
काम का अकाल
महगाई की मार
सपनों के ताने
जैसे कह रहे हो
हो गए न हमसे बेगाने
पर मै जान गया हूँ
सपने व हकीकत का फर्क
कभी कभी सोचता हूँ
काश लौट आते
अतीत के वे क्षण
जब सिर्फ
हम दो हमारे दो थे...
कितने उल्लास पूर्ण,मधुर थे
सीमित परिवार में
हम दो हमारे दो थे
लेकिन-?
वर्त्तमान
बढ़ता परिवार
देश के लिए भार
अशांति और मानसिक यातना
भविष्य के लिए
जीवन की कठिन साधना
काम का अकाल
महगाई की मार
सपनों के ताने
जैसे कह रहे हो
हो गए न हमसे बेगाने
पर मै जान गया हूँ
सपने व हकीकत का फर्क
कभी कभी सोचता हूँ
काश लौट आते
अतीत के वे क्षण
जब सिर्फ
हम दो हमारे दो थे...
०००००००००००००००
यह मेरे जीवन की पहली रचना -1977-में लिखी थी,उस समय स्व० -संजय गांधी जी ने
परिवार नियोजन की शुरुआत की थी,और नारा दिया था - हम दो हमारे दो -कार्यक्रम से
प्रभावित होकर मैंने लिखा था ,साथ ही उसी समय मैंने राजनीति में प्रवेश किया ,शायद
आपको अच्छी लगे ,......dheerendra...
परिवार नियोजन की शुरुआत की थी,और नारा दिया था - हम दो हमारे दो -कार्यक्रम से
प्रभावित होकर मैंने लिखा था ,साथ ही उसी समय मैंने राजनीति में प्रवेश किया ,शायद
आपको अच्छी लगे ,......dheerendra...
सुन्दर सामाजिक रचना।
जवाब देंहटाएंbahut tarksangat prastuti.
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा लिखा है सर!
जवाब देंहटाएंसादर
सामजिक चेतना जगाने वाली अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना ....बधाई
जवाब देंहटाएंकाश लौट आते वो पल,सच में गरीबी को बढ़िया तरह से लिखा है आपने ।
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट !
अपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।
औचित्यहीन होती मीडिया और दिशाहीन होती पत्रकारिता
atit aur aaj mein fark hi fark hai
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंसमाज को सही सन्देश देती है ये रचना आपकी ...
जवाब देंहटाएंकाश...............गर ऐसा होता तो शायद हमारा देश किसी और ही मुकाम पर होता.बहुत सार्थक रचना...
जवाब देंहटाएंसामजिक परिवेश पर सटीक प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंदेश के लिए भार
जवाब देंहटाएंअशांति और मानसिक यातना
भविष्य के लिए
जीवन की कठिन साधना
काम का अकाल
महगाई की मार
सपनों के ताने
जैसे कह रहे हो
हो गए न हमसे बेगाने
सामाजिक चेतना का यथार्थ चित्रण
अपने समय के
जवाब देंहटाएंमहत्त्व को रेखांकित करती हुई
सशक्त रचना ......
बधाई .
"दानिश"
बेहद खुबसूरत लिखा है.सामजिक चेतना युक्त .
जवाब देंहटाएंसुन्दर सामाजिक रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सीख देती हुयी रचना आप की ..
जवाब देंहटाएंभ्रमर ५
काम का अकाल
महगाई की मार
सपनों के ताने
जैसे कह रहे हो
हो गए न हमसे बेगाने
कभी कभी सोचता हूँ
जवाब देंहटाएंकाश लौट आते
अतीत के वे क्षण
जब सिर्फ
हम दो हमारे दो थे...
Bilkul sahee kah rahe hain aap!
बहुत सही संदेश है।
जवाब देंहटाएंacchi sandesh deti rachana...
जवाब देंहटाएंसच्चाई को आपने बहुत सुन्दरता से शब्दों में पिरोया है! अच्छी रचना!
जवाब देंहटाएं'हम दो हमारे दो' के बाद इंदिरा
जवाब देंहटाएंगाँधी ने १९७५ में यह नारा भी दिया था
'एक हो पर शेर हो' और यह भी
एक ही जादू
कड़ी मेहनत,
पक्का इरादा..
आपने पुरानी यादें ताजा कर दी हैं,धीरेन्द्र जी.
मेरे ब्लॉग पर आकर आपने मुझे नई पोस्ट
लिखने का जो स्नेहिल आग्रह किया,उसके
लिए बहुत बहुत आभारी हूँ मैं.व्यस्तता के कारण नही लिख पा रहा था.कोशिश है इस सप्ताह
में लिख पाऊं.
राजनीति गुंडागर्दी का पर्याय हो गयी है कभी कभी लगता कि लूटमार करने के लिए लुटेरों ने वेश धारण किया है ...लकदक मुस्कान भरे चेहरे ...खादी..गरीब के घर में जा कर चाय पीना ...बासी भाषणों को याद करके बोलना....बस यही है देश और जनता कि सेवा....
जवाब देंहटाएं