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अपने विचारों को आज बताना चाहता हूँ,
बस आपके साथ हमेशा रहना चाहता हूँ!
पर क्या करू जीवन की बाकी है पढाई,
समझ में नही आता ये कैसी है लड़ाई!
क्यों हम मोह के चक्कर में पड रहे है,
बिना हथियार इस संसार में लड़ रहे है!
जानता हूँ लड़ाई व्यर्थ की है जीवन में,
फिरभी क्यों नही बैठती है बात मन में!
मुझको इस तरह का रास्ता दिखा ईश्वर,
खत्म हो जाए अब आने जाने का सफर!
नही जाना चाहता हूँ मरने के बाद मरघट,
आत्मा में हो जाए अब तो ज्योति प्रगट!
एक बात शेष है उसको भी बताना चाहता हूँ,
तन को तमाशा नही तीरथ बनाना चाहता हूँ!
dheerendra,"dheer"
man se nikle ehsas sidhe dil par hi chot karte hain.
जवाब देंहटाएंbahut hi marmik prastuti.
क्यों हम मोह के चक्कर में पड रहे है,
जवाब देंहटाएंबिना हथियार इस संसार में लड़ रहे है!
इस बिना हथियार की लड़ाई में जीतना सम्भव नहीं...
अच्छी रचना !!!
bahut hi sundar vichar ka sundar varnan
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत भाव
जवाब देंहटाएंमुझको इस तरह का रास्ता दिखा ईश्वर
जवाब देंहटाएंखत्म हो जाये अब आने जाने का सफर
सुंदर प्रस्तुति....
सादर।
एक बात शेष है उसको भी बताना चाहता हूँ,
जवाब देंहटाएंतन को तमाशा नही तीरथ बनाना चाहता हूँ!
आपके विचार अनुकरणीय है .... !!
वाह उत्कृष्ट विचार प्रवाह..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर विचार..
जवाब देंहटाएं:-)
एक बात शेष है उसको भी बताना चाहता हूँ,
जवाब देंहटाएंतन को तमाशा नही तीरथ बनाना चाहता हूँ!
बढ़िया प्रस्तुति है बढ़िया विचार है .आदमी शरीर से ऊपर उठ जाए .
बहुत सुन्दर विचार.....................
जवाब देंहटाएंगहन भाव लिए.....................................
सादर
बहुत सुंदर रचना धीरेन्द्र जी
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं
खूबसूरत भाव...बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंमोक्ष की राह कठिन है पर जब आत्मचिंतन सहज हो जाता है तो यह दुर्गम रास्ता भी आसान हो जाता है !
जवाब देंहटाएं....आप तो बस मौज से जीते रहिये |
खूबसूरत भाव...बहुत सुंदर रचना.....शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएं..
क्यों हम मोह के चक्कर में पड रहे है,
जवाब देंहटाएंबिना हथियार इस संसार में लड़ रहे है!
धीरेन्द्र जी ,इस संसार में लड़ने का एक ही
अस्त्र है ध्यान !
अपने विचारों को आज बताना चाहता हूँ,
जवाब देंहटाएंबस आपके साथ हमेशा रहना चाहता हूँ!
भगवान करे कि आपकी इच्छा पूरी हो । मेरे नए पोस्ट पर अहर्निश आकर मेरा हौसला बढाने के लिए आपका आभार । कविता सराहनीय है । धन्यवाद ।
मोह माया के प्रलोभन को छोड़ना इतना आसान नहीं है . लेकिन एक सीमा तक प्रयास तो करना चाहिए . सार्थक सोच .
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव...गहन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंएक बात शेष है उसको भी बताना चाहता हूँ,
जवाब देंहटाएंतन को तमाशा नही तीरथ बनाना चाहता हूँ! ... वाह
भावपूर्ण रचना क्या कहने...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर..
भावविभोर करती रचना...
मोह माया तो हम सब में होती है. अगर हम ओह माया से दूर हो गए तो हम कुछ नहीं पा सकते. कुछ पाने की चाह होना ही मोह का जाल है
जवाब देंहटाएंहिन्दी दुनिया ब्लॉग (नया ब्लॉग)
बहुत सरल शब्दों में बहुत सुंदर विचार...
जवाब देंहटाएंफोलोवर बन गया हूं Dheerendra जी
जवाब देंहटाएंsundar post
जवाब देंहटाएंतन को तमाशा नही तीरथ बनाना चाहता हूँ!
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna .......
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत खूब .. तन तीरथ हो जाए तो क्या बात है .. आत्मा भी मंदिर हो जाएगा ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और भावप्रणव रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर अर्पण ! जीवन तो जन्म से मृत्यु तक सघर्ष की कहानी है !
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट कल 14/6/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा - 902 :चर्चाकार-दिलबाग विर्क
एक बात शेष है उसको भी बताना चाहता हूँ,
जवाब देंहटाएंतन को तमाशा नही तीरथ बनाना चाहता हूँ!
जन्म से मृत्यु तक सघर्ष की कहानी है !
बेहद सुंदर भाव संयोजन से सजी उत्कृष्ट रचना बधाई ....
जवाब देंहटाएंlajbab prastuti ....badhai Dheerendr ji
जवाब देंहटाएंबढ़िया.
जवाब देंहटाएंखुद को तैयार करने भर की तो देर होती है। जब तय कर लिया,फिर कोई बाधा नहीं।
जवाब देंहटाएंतन और मन पवित्र हों तो तीरथ ही हो जाते हैं.
जवाब देंहटाएंसुन्दर सार्थक प्रेरक प्रस्तुति.
आभार धीरेंद्र जी.
नही जाना चाहता हूँ मरने के बाद मरघट,
जवाब देंहटाएंआत्मा में हो जाए अब तो ज्योति प्रगट!
एक बात शेष है उसको भी बताना चाहता हूँ,
तन को तमाशा नही तीरथ बनाना चाहता हूँ!
बहुत खूबसूरत सोच ....सुंदर प्रस्तुति
एक बात शेष है उसको भी बताना चाहता हूँ,
जवाब देंहटाएंतन को तमाशा नही तीरथ बनाना चाहता हूँ!
Nice Jazbaat.
बिलकुल ठीक ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
एक बात शेष है उसको भी बताना चाहता हूँ,
जवाब देंहटाएंतन को तमाशा नही तीरथ बनाना चाहता हूँ!
सुन्दर रचना !
Bahutu sunder prastuti. Adhyatm se otprot.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत सोच ....सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअपने ब्लॉग पर अब तक की प्रकाशित पोस्ट की स्क्रिप्ट लगाएं
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जवाब देंहटाएंएक बात शेष है उसको भी बताना चाहता हूँ,
जवाब देंहटाएंतन को तमाशा नही तीरथ बनाना चाहता हूँ!
....बहुत सुन्दर भाव....
विचार के माध्यम से अल्प शब्दों मे ही सब कुछ बना दिया।
जवाब देंहटाएंयहा भी पधारे आपका स्वाग है
युनिक तकनीकी ब्लॉग
आत्मा कि आवाज!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ
बधाई कबूले
नही जाना चाहता हूँ मरने के बाद मरघट,
जवाब देंहटाएंआत्मा में हो जाए अब तो ज्योति प्रगट!
एक बात शेष है उसको भी बताना चाहता हूँ,
तन को तमाशा नही तीरथ बनाना चाहता हूँ!
वाह ... बहुत बढिया।
क्या बात है! वाह! बहुत-बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंमुझको इस तरह का रास्ता दिखा ईश्वर,
जवाब देंहटाएंखत्म हो जाए अब आने जाने का सफर!
मुक्ती की तलाश मे बेहतरीन रच्ना ...!!
शुभकामनायें
एक बात शेष है उसको भी बताना चाहता हूँ,
जवाब देंहटाएंतन को तमाशा नही तीरथ बनाना चाहता हूँ!
बहुत ही उम्दा काव्य है, आभार
शानदार विचार कविता .
जवाब देंहटाएंबेहद खुबसूरत है विचार ..
जवाब देंहटाएंएक बात शेष है उसको भी बताना चाहता हूँ,
जवाब देंहटाएंतन को तमाशा नही तीरथ बनाना चाहता हूँ!
बढ़िया प्रस्तुति ...............
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पी.एस. भाकुनी
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खूबसूरत भाव...बहुत सुंदर रचना!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव। छायावाद की झलक।
जवाब देंहटाएंबधाई।
-हेमन्त
नही जाना चाहता हूँ मरने के बाद मरघट,
जवाब देंहटाएंआत्मा में हो जाए अब तो ज्योति प्रगट!
एक बात शेष है उसको भी बताना चाहता हूँ,
तन को तमाशा नही तीरथ बनाना चाहता हूँ!
वाह....अति उत्तम विचार !