अकेलापन,
कितना मधुर सुहाना लगता है,
ये अकेलापन
कोलाहल से दूर
मन भागता सा प्रतीत होता है,
असख्य महल
बनते बिगड़ते और धरासायी होते है,
न रिश्तों खिचाव
और न कोई भर्मित आस्था
इक अलौकिक बंधनों से मुक्त
आजाद पंछी सा,विचरता हुआ मन
कितना साफ सुथरा लगता है,
ये अकेलापन,
इस शहर से दूर
कहीं निर्जन वन में,
ज़रा सी धरती की कंपन से
पत्तों की सरसराहट
मुझे झकझोर देती,
बस खोखला हो जाता है!
ये अकेलापन,,,,,,
dheerendra,"dheer"
...मगर यह अकेलापन हमें अपने से मिलाता है,यही बहुत बड़ी बात है !
जवाब देंहटाएंनमस्कार धीरेन्द्र जी कैसे है आप
जवाब देंहटाएंआज कई दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ बेहतरीन और अच्छी रचना...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं... शानदार प्रस्तुति
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है !!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर कविता, एकान्त चिन्तन के रत्न निकाल लाता है।
जवाब देंहटाएंअकेलापन भी ज़रूरी है .... बहुत कुछ जानने के लिए
जवाब देंहटाएंआजाद पंछी सा,विचरता हुआ मन
जवाब देंहटाएंकितना साफ सुथरा लगता है,
sach kaha dheerendra ji !
yatharth parak rachna !
ये अकेलापन ही तो अपना होता है सिर्फ अपना.... ..धीरेन्द्र जी बहुत सुन्दर भाव..
जवाब देंहटाएंन रिश्तों खिचाव
जवाब देंहटाएंऔर न कोई भर्मित आस्था
न रिश्तों खिचाव
और न कोई भर्मित आस्था
भाई साहब अच्छा बिम्ब है ,ऐसे ही टूटती है विचार श्रृंखला पत्तों की सरसराहट से क्योंकि अन्दर ही से सब कुछ रीता रीता है .बेहतर हो आप 'भ्रमित' कर लें भर्मित को ,और 'रिश्तों खिंचाव' कुछ जम नहीं रहा (रिश्तों से रिसन खिंचाव की या 'खिंचाव रिश्तों का 'ठीक लगे कवि कर्म के अनुरूप तो कर लें हमारा तो इलाका है नहीं .लेकिन क्या करें अब आप से मोहब्बत हो गई तो कवि कर्म भी आपसे सीखेंगें .कृपया यहाँ भी पधारें -
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
उतनी ही खतरनाक होती हैं इलेक्त्रोनिक सिगरेटें
अकेलेपन को भोगने से पहले ही उसका महत्व समझना अच्छा!
जवाब देंहटाएंअकेलापन बहुत कुछ दे जाता है, अकेला होकर भी अपना होता है... सुन्दर रचना... आभार
जवाब देंहटाएंयह अकेलापन ही रिश्तों को समझ पाता है .........
जवाब देंहटाएंअकेलापन भी बहुत जरूरी होता है.....खुद से बात करने के लिए। सुंदर रचना..
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव धीरेन्द्र जी....
जवाब देंहटाएंतन्हाई में ही तो हम खुद को पाते हैं......
सादर.
यान्हाई को एक नयी ऊंचाई प्रदान की है आपने!!
जवाब देंहटाएंअलग ही बिंबों में सजी सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंसादर।
बेहद खूबसूरत ,अपने से भाव
जवाब देंहटाएंkai baar accha lagta hai aur kai baar bahut kachotta hai
जवाब देंहटाएंअकेलेपन मे ही खुद को पाया जाता है।
जवाब देंहटाएंआज एकदम अलग सा सुर है । खुद को खोजने का अच्छा प्रयास होता है ये अकेलापन ।
जवाब देंहटाएंइक अलौकिक बंधनों से मुक्त
जवाब देंहटाएंआजाद पंछी सा,विचरता हुआ मन
कितना साफ सुथरा लगता है,
ये अकेलापन
यकीनन अच्छा लगता है पर कुछ समय बाद फिर कोलाहल की दरकार होने लगती है
कभी कभी अकेलापन भी अच्छा लगता है ।
जवाब देंहटाएंलेकिन थोड़े समय के लिए ।
आजाद पंछी सा,विचरता हुआ मन
जवाब देंहटाएंकितना साफ सुथरा लगता है,
ये अकेलापन,
.....सिर्फ़ कुछ समय के लिये और फ़िर मन बेचैन होने लगता है उसी कोलाहल को...सुन्दर प्रस्तुति..
पत्तों की सरसराहट
जवाब देंहटाएंमुझे झकझोर देती,
बस खोखला हो जाता है!
ये अकेलापन,,,,,,
कोलाहल से दूर जीवन का रस तो है धीर जी........ एकान्तिक सुख को अभिव्यक्त करती आपकी यह अंजलि भी मन मोह गयी. आभार !
कभी कभी मन अकेलापन चाहता है और अगर वो ज्यादा हो जाये तो मन मरने भी लगता है बहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंये अकेलापन .......
जवाब देंहटाएंओह मुझे बहुत पसंद है
बढ़िया रचना ......
इतनी अच्छी रचना तन्हाई में लिखी है लगता है
जवाब देंहटाएंलगातार एक से बढ़ का एक रचना की प्रस्तुति
आदरणीय धीरेन्द्र जी बहुत बहुत बधाई
किताबें कुछ कहना चाहती है,सुनहरा कल,
ऐ हवा महक ले आ..उसके बाद अकेलापन
वाह...
अकेलेपन से निकलते हैं कुछ स्वर्णिम पल!
जवाब देंहटाएंसादर!
sundar rachna ...
जवाब देंहटाएंswayam se milata hai akelapan ...
बेहद खूबसूरत ,अपने से भाव,बहुत बढ़िया प्रस्तुति!आभार .....
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर व भावमयी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंइस शहर से दूर
जवाब देंहटाएंकहीं निर्जन वन में,
ज़रा सी धरती की कंपन से
पत्तों की सरसराहट
मुझे झकझोर देती,
khubsurat aihasas, with silent speech.
अकेलेपन की अपनी ताज़गी होती है ....एक अनोखा ज़ाइका .....जिसने इसे चख लिया ....उसका आदि हो जाता है ....!!!!
जवाब देंहटाएंbahut khoobsurat......
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत लिखा है आपने बहुत ही भावपूर्ण पोस्ट.
जवाब देंहटाएंआपकी रचना पढकर आनंदित होने का पल मैं इस पल जी रहा हूँ , मुबारक !
जवाब देंहटाएंदो रूप ..कभी अच्छा कभी बुरा .....
जवाब देंहटाएंसमुन्द्र के किनारे - इस अकेलेपन की अनुभूति अजब सी होती है ! चित्र और कविता मेल खाती है ! सुन्दर
जवाब देंहटाएंअकेलेपन के अहसास को साकार करती सुंदर कविता।
जवाब देंहटाएंये अकेलापन,,,,,,
जवाब देंहटाएंकेवल अपना साथ तभी होता है.....
तभी हम खुद को महसूस कर पाते हैं !
अकेलापन कभी काट खाने को दौड़ता है तो कभी बहुत ही सुकून पहुंचाता है।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - कहीं छुट्टियाँ ... छुट्टी न कर दें ... ज़रा गौर करें - ब्लॉग बुलेटिन
बहुत ही सुन्दर रचना ,बधाई
जवाब देंहटाएंमोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
अकेलापन अगर क्षण भर के लिए सुन्दर है तो असंख्य क्षणों के लिए भयावह भी है.
जवाब देंहटाएंकुछ पल के लिए ही अच्छा लगता है ये अकेलापन ... फिर उससे दूर हूने का मन करता है ...
जवाब देंहटाएंलम्बे भागदौड के बाद अकेलपन के रूबरू होने का आनंद ही कुछ और है.जिसे शब्दों में नहीं बयां किया जा सकता है...बहुत खूब सर !
जवाब देंहटाएं"आजाद पंछी सा,विचरता हुआ मन
कितना साफ सुथरा लगता है,"
tanhai na hoti to apno kee keemat ka bhee pata nahi chalta...baise jindagi ko kabhi bheed to kabhi tanhai raas aati hai..sunder rachna..sadar badhayee aaur amantran ke sath
जवाब देंहटाएंवाकई अकेलापन ऐसा ही होता है। रचना पसंद आई।
जवाब देंहटाएंwaah! bahut khub...
जवाब देंहटाएंअकेलेपन में हम और हमारा संसार होता है, लेकिन एक ज़रा सी सरसराहट और अकेलेपन की दुनिया विलीन. अजब है ये अकेलापन, कभी खामोशी तो कभी समस्त संसार की खुशियाँ समेटे होता है अकेलापन. बहुत सुन्दर रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत अहसास... सुंदर कविता !
जवाब देंहटाएंयह रचना दिल छू गयी धीर भाई ....
जवाब देंहटाएंअकेलापन ही हमारी पहचान हमसे करवाता है..वरना लोगों की भीड़ में तो हम खुद से मिल भी नहीं पाते.... बहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंजो मजा अलेकेपन में है वो कंहीं भी नहीं .......... आपकी पोस्ट मैं हिन्दी ब्लॉग परिवार में डाल रहा हूँ....... ये अभी शुरू किया गया है ...इससे जुड़े ओर ब्लॉगर की रचनाओ के लिंक आसानी से पढ़े ओर उनपर पहुँचे
जवाब देंहटाएंख़ुद को खोजने के लिए .....अकेलेपन का साथ जरुरी है
जवाब देंहटाएंअकेलेपन के अहसास को साकार करती सुंदर कविता।
http://www.fnur.bu.edu.eg/
जवाब देंहटाएंhttp://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/main-news/item/422-2013-12-10-10-18-01
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/main-news/item/421-2013-12-10-09-48-39
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/main-news/item/419-2013-12-09-07-21-12
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/main-news/item/420-2013-12-10-09-48-38
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/main-news/item/417-2013
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/main-news/item/418-2013-12-09-07-17-28
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/main-news/item/415-2013-12-03-08-09-23
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/main-news/item/416-2013-12-03-08-25-21
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/main-news/item/413-2013-11-21-07-50-21
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/main-news/item/414-2013-11-25-09-38-30
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/main-news/item/411-2013-11-20-08-11-53
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/main-news/item/412-2014
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/main-news/item/409-2013-2014
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/main-news/item/410-2013-11-13-17-25-28
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/main-news/item/407-2013-11-09-08-51-15
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/main-news/item/408-2013-11-13-11-55-53
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/main-news/item/405-2013-11-09-08-42-05
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/main-news/item/406-2013-11-09-08-46-10
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/main-news/item/403-2013-11-09-08-25-45
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/main-news/item/404-2013-11-09-08-28-15
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/main-news/item/400-2013-11-09-07-50-13
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/main-news/item/401-2013-11-09-08-03-31
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/main-news/item/398-2013-11-09-07-29-40
www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/main-news/item/399-2013-11-09-07-43-49
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/main-news/item/397-eugen-ionesco
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/main-news/item/402-2014-2013
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/main-news/item/395-2013-11-02-09-07-04