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सोमवार, 2 अप्रैल 2012

मै तेरा घर बसाने आई हूँ...

मै तेरा घर बसाने आई हूँ....

चंद कलियाँ निशांत की चुनकर,तेरा आँगन सजाने आई हूँ,
धुल मैके की झाड-फूक के सब, मै तेरा घर बसाने आई हूँ!

अपने मैके में लाडली थी मै,जाने ससुराल जा के क्या होगा.
तुम मुझे प्यार से संभालोगे, अपना जीवन हरा - भरा होगा!

मेरे सपनों में फूल खिलते हैं उनमे खुशबू तुम्हारी आती है,
दिन निकलता है याद करके तुम्हें रात सोचों में गुजर जाती है!

घर गृहस्थी मुझे नही मालूम सास-नन्दों से सीख लूंगी मैं,
प्यार से गलतियां बताएंगे अपनी गलती सुधार लूंगी मैं!

अपने बारे में क्या बताऊं तुम्हे कोरा कागज हूं कोरा पानी हूं,
हौसले आसमान छूते है थोड़ी पागल हूं थोड़ी ज्ञानी हूं!

औरतों की भी जिन्दगी क्या हैं व्रत बदलती हुई कहानी हैं,
आज बेटी हैं कल बहू फिर माँ परसों बच्चे कहेंगें नानी हैं!

मुझ को पूरा भरोसा है तुम पर तुम मेरा एतबार कर लेना,
तेज रफ्तार जिन्दगी हैं-मगर रुक के थोड़ा-सा प्यार कर लेना!


DHEERENDRA,"dheer"