काश- तुम्हारे भी एक बेटी होती
सहमी सहमी सिमटी सी-
गुलाबी कपड़ों लिपटी सी-
गुलाबी कपड़ों लिपटी सी-
जैसे बेरहम दुनिया को देखना चाहती,
उसका हंसना बोलना और मुस्कराना,
गाल चूमकर नाम से बुलाते-
गोद में उठाकर सीने से लगाते-
तो तुम्हरा दिल खुशियों से नाच उठता,
कितनी ठंडक पडती कितना सकून मिलता,नन्हे नन्हे पैरों से चलने की आहट
हंसना रोना और उसकी खिलखिलाहट,
गोद में उठाकर लोरी सुनना
बेटे और बेटी में इतना फर्क,
इसमें हम बेटियों का क्या कसूर
हम क्या नहीं कर सकती॥?
लक्ष्मीबाई, से लेकर मदरटेरसा, तक
इंदिरा गांधी,से लेकर कल्पना चावला तक
ये भी तो किसी की बेटियां थी,
बेटियां समाज की धडकन होती है
दो कुलों के बीच रिश्ता जोड़कर-
घर बसाती है,
माँ बनकर इंसानी रिश्तों की
भावनाओ से जुडना सिखाती है,
पर तुमने-?
पर जमने से पहले ही काट डाला
शरीर में जान-?
पड़ने से पहले ही मार डाला,
आश्चर्य है.?
खुद को खुदा कहने लगे हो
प्रकृति और ईश्वर से
कोई हमसे बड़ा सबूत,
हम बेटियां न होती-?
न होता तुम्हारा वजूद......
जिन्दगी के हर जशन को अधूरा पाओगे,
अगर बेटियों के आगमन से इतना कतराओगे,
जीवन का ये अनमोल सुख कैसे पाओगे,,,,,,,,dheerendra singh bhadauriya,,,,,
बहुत सुन्दर।
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आपकी इस पोस्ट का लिंक कल के चर्चा मंच पर भी होगा।
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंSunder Bhavabhivykti
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंsahi baat ji ...kash.....!
जवाब देंहटाएंसही कहा है...बेटियों को अपने आंगन में खेलते देखना अति सुखद अनुभव है....
जवाब देंहटाएंbahut sundar
जवाब देंहटाएंSunder Bhavabhivykti.....
जवाब देंहटाएंसच कहा है बिलकुल ... बेटियों के बिना घर अधूरा है ... जीवन अधूरा है ...
जवाब देंहटाएंमैं क्या बोलूँ अब....अपने निःशब्द कर दिया है..... बेटियों के बिना घर अधूरा है बहुत ही सुंदर कविता.
जवाब देंहटाएंसच कहा
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे सर जी :)
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है की आपने ब्लोगिंग थोड़ी कम कर दी है ...क्या ऐसा नहीं है ?
nicely told
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