आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें
आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें
अमराई की घनी छाँव में
नदी किनारे बधीं नाव में,
बैठ निशा के इस दो पल में,बीते लम्हों की हम सोचें !
आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें
मन आंगन उपवन जैसा था
प्रणय स्वप्न से भरा हुआ था,
तरुणाई के उन गीतों से,आ अपने तन मन को सीचें !
आ कुछ दूर चलें, फिर सोचें
स्वप्नों की मादक मदिरा ले
मलय पवन से शीतलता ले,
फिर अतीत में आज मिला के,जीवन मरण प्रश्न क्यूँ सोचें !
आ कुछ दूर चलें, फिर सोचें,
अमराई की घनी छाँव में
नदी किनारे बधीं नाव में,
बैठ निशा के इस दो पल में,बीते लम्हों की हम सोचें !
आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें
मन आंगन उपवन जैसा था
प्रणय स्वप्न से भरा हुआ था,
तरुणाई के उन गीतों से,आ अपने तन मन को सीचें !
आ कुछ दूर चलें, फिर सोचें
स्वप्नों की मादक मदिरा ले
मलय पवन से शीतलता ले,
फिर अतीत में आज मिला के,जीवन मरण प्रश्न क्यूँ सोचें !
आ कुछ दूर चलें, फिर सोचें,
रचनाकार - विक्रमसिंह (केशवाही) शहडोल,म.प्र.
बहुत खूब :)
जवाब देंहटाएंचलना ही पड़ेगा लगता है कुछ दूर !
बहुत सुंदर रचना !!
जवाब देंहटाएंमात्र चिन्तन ही न हो, कर्म हेतु पग बढ़े,
जवाब देंहटाएंमात्र श्रम भी न हो, कुछ सुस्पष्ट चिन्तन भी हो।
सुन्दर पंक्तियाँ
बहुत सुन्दर .............
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर व् सार्थक अभिव्यक्ति .नव वर्ष २०१४ की हार्दिक शुभकामनायें .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ......
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आपका-
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंअमराई की घनी छाँव में/ अति सुन्दर....साधू साधू
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना...साझा करने का शुक्रिया सर!!
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
सुंदर कविता।
जवाब देंहटाएंवाह .... बहुत सुंदर पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंमधुर गीत!!
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना...
जवाब देंहटाएंआपको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!
बहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना..आभार
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह
जवाब देंहटाएंमधुर गीत की तरह गुनगुनाने को मन करता है ...
जवाब देंहटाएंजिंदगी का सफ़र बस चलते रहना चाहिए और साथ ही आत्ममंथन भी
जवाब देंहटाएंसादर !
.....सुन्दर रचना...साझा करने का शुक्रिया !!
जवाब देंहटाएंवाह वाह ! बहुत ही सुन्दर रचना..आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना .......साझा करने के लिए धन्यवाद.....
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