दिन हौले-हौले ढलता है
बीती रातों के ,कुछ सपने
सच करनें को उत्सुक इतने
आशाओं के गलियारे में मन दौड़-दौड़ के थकता है,
दिन हौले-हौले ढलता है,
पिछले सारे ताने -बाने
सुलझे कैसे ये न जानें,
हाथों में छुवन है फूलों की,पर पग का गुखरु दुखता है,
दिन हौले-हौले ढलता है,
दिन के उजियाले में जितने
थे मिले यहाँ बनकर अपने,
जब शाम हुई सब चले गये,सूनापन कितना खलता है,
दिन हौले-हौले ढलता है,
हाथों में छुवन है फूलों की,पर पग का गुखरु दुखता है,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति बद्दुवायें ये हैं उस माँ की खोयी है जिसने दामिनी , आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते
dheerendra ji behad sundar , saras pravaah sundar abhivyakti .badhai
हटाएंधीरेन्द्र जी बहुत सुन्दर कविता कही आपने | भावनात्मक अभिव्यक्ति | सादर |
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (20-02-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ |
आपका आभार,,,,,प्रदीप जी,
हटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....
जवाब देंहटाएंसपने तो हमेशा सच नही हो सकते,बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंदिन होले-हौले ढले, जग सूना हो जाय।
जवाब देंहटाएंअंधियारे में अल्पना, नज़र कहीं ना आय।।
--
आपकी पोस्ट का लिंक आज के चर्चा मंच पर भी है।
मद्धिम रविकर तेज से , हो संध्या बेचैन ।
जवाब देंहटाएंशर्मा जाती लालिमा, बैन नैन पा सैन ।
बैन नैन पा सैन, पुकारे प्रियतम अपना ।
सर पर चढ़ती रैन, चूर कर देती सपना ।
खग कलरव गोधूलि, बढ़ा देता है पश्चिम ।
है कुदरत प्रतिकूल, मेटता संध्या मद्धिम ।।
सटीक टिप्पणी के लिए शुक्रिया ,,,रविकर जी ,,,
हटाएंउत्कृष्ट प्रस्तुति, सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावत्मक रचना
जवाब देंहटाएंकभी चिट्ठियों में इजहार करके महीनों इन्तजार किया करते थे...
आज तो हर दो मिनट में टूटते हैं दिल हजार बार
मेरी नई रचना
प्रेमविरह
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
प्यारा नवगीत है।..आभार।
जवाब देंहटाएंविक्रम जी की बेहतरीन रचना पढ़वाने का आभार
जवाब देंहटाएंशब्दक्रम एकदम गीतिमय है। बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंsunder abhivyakti
जवाब देंहटाएंगुज़ारिश : !!..'बचपन सुरक्षा' एवं 'नारी उत्थान' ..!!
आपकी रचना बहुत ही सुन्दर और भावनात्मक लगी ... अंतर्मन को छु गई ..मगर माफ़ कीजियेगा मुझे ज्यादा ज्ञान नहीं ..इसलिए मई आपसे पूछना चाहती हु इस शब्द का अर्थ क्या होता है आपने जो लिखा है "गुखरु" इसका अर्थ कृपया मुझे बता दे तो आपकी बड़ी कृपा होगी।..
जवाब देंहटाएं---सादर
मेरी नै रचना पर भी अपनी उपस्थिति जरुर दर्शायें
http://parulpankhuri.blogspot.in/2013/02/blog-post_4266.html
http://parulpankhuri.blogspot.in/2013/02/blog-post_19.html
पंखुरी जी,,,,"गुखरू" = पैरों के तलुए में गाँठ के रूप में होने वाली बीमारी,जो चलने पर टीश (दर्द )होता है,,
हटाएंशुक्रिया :-)
हटाएंसुन्दर रचना के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंदिन बीता है,
जवाब देंहटाएंमन यह सोचे,
क्या पाया है?
बहुत प्यारा गीत..मन हौले-हौले कहता है..
जवाब देंहटाएंदिन के उजियाले में जितने
जवाब देंहटाएंथे मिले यहाँ बनकर अपने,
जब शाम हुई सब चले गये,सूनापन कितना खलता है,
शायद इसी लिए कहते हैं की ये दुनिया रैन बसेरा है ... स्थाई कुछ नहीं रहता ...
मनभावन रचना ...
जवाब देंहटाएं.......मन हौले-हौले कहता है.......मन भावन गीत !
latestpost पिंजड़े की पंछी
बहुत सुंदर भावभीना गीत..
जवाब देंहटाएंदिल हौले हौले ढलता है... बहुत सुन्दर गीत... शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंजब शाम हुई सब चले गये, सूनापन कितना खलता है...
जवाब देंहटाएं--------------------------------------------
दिल की बात कहने को दिल करता है
कहिये धीर साहब ...
सच कह रहा हूँ न ?
वाह बहुत ही सुन्दर।
जवाब देंहटाएंदिन के उजियाले में जितने
जवाब देंहटाएंथे मिले यहाँ बनकर अपने,
बेहद सुन्दर प्रस्तुती ख़ास कर ये शेर.
अति सुंदर !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएं:-)
भावनात्मक अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंदिन के उजियाले में जितने
जवाब देंहटाएंथे मिले यहाँ बनकर अपने,
जब शाम हुई सब चले गये,सूनापन कितना खलता है,
दिन हौले-हौले ढलता है,
लगता है विक्रम ने कलेजा काटकर लहू से लिख दिया है
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...शुभकामनायें ...
जवाब देंहटाएंशानदार रचना
जवाब देंहटाएंहाथों में छुवन है फूलों की,पर पग का गुखरु दुखता है,
जवाब देंहटाएंगीत की इस पंक्ति पर विशेष रूप से दाद......
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ....
bahut sundar..
जवाब देंहटाएंsundar rachna....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव-भरी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंधीरेन्द्र जी...बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति.... अति सुन्दर!
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत आभार साझा करने के लिए
जवाब देंहटाएंविक्रम जी के ब्लॉग पर पढ़ा था ...उनको बधाई !
बहुत सुंदर भावपूर्ण गीत.
जवाब देंहटाएंदिन के उजियाले में जितने
जवाब देंहटाएंथे मिले यहाँ बनकर अपने
जब शाम हुई सब चले गये ,सूनापन कितना खलता है
दिन हौले-हौले ढलता है
बहुत ही सुंदर
बहुत बढ़िया रचना पढ़ वाई है आपने .
जवाब देंहटाएंबहुत खूब धीरेन्द्र जी
जवाब देंहटाएंhttp://mymaahi.blogspot.in/2013/02/blog-post_12.html
बहुत मधुर, भावपूर्ण एवं लयबद्ध रचना ! बहुत ही सुन्दर !
जवाब देंहटाएंदिन के उजियाले में जितने थे मिले यहाँ बनकर अपने,
जवाब देंहटाएंजब शाम हुई सब चले गये,सूनापन कितना खलता है,
सुन्दर ,बहुत ही सुन्दर !भावपूर्ण गीत.
आप की ये खूबसूरत रचना शुकरवार यानी 22 फरवरी की नई पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है...
जवाब देंहटाएंआप भी इस हलचल में आकर इस की शोभा पढ़ाएं।
भूलना मत
htp://www.nayi-purani-halchal.blogspot.com
इस संदर्भ में आप के सुझावों का स्वागत है।
सूचनार्थ।
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना !!
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।।।
जवाब देंहटाएंदिन के उजियाले में जितने
जवाब देंहटाएंथे मिले यहाँ बनकर अपने,
जब शाम हुई सब चले गये,सूनापन कितना खलता है,
दिन हौले-हौले ढलता है,
बहुत खूब, बहुत सुन्दर पंक्तियाँ.
बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंभावभीनी रचना...
साझा करने का शुक्रिया.
सादर
अनु
बहुत सुन्दर वहा वहा क्या बात है अद्भुत, सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना
खुशबू
प्रेमविरह
यही है जीवन का क्रम -धूप और छाँह का संगम !
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंश्रेष्ठ काव्य ... सुन्दर प्रतिक्रियाएँ .... रचना के बाद सभी टिप्पणियों को भी पढ़ने का अलग ही आनंद है।
जवाब देंहटाएंदिन के उजियाले में जितने
जवाब देंहटाएंथे मिले यहाँ बनकर अपने,
जब शाम हुई सब चले गये,सूनापन कितना खलता है
bahut hi sunder geet badhai
sunder geet padhvane ke liye aapka dhnyavad
rachana
अत्यंत सरल और भावपूर्ण।
जवाब देंहटाएंजब शाम हुई सब चले गये,
जवाब देंहटाएंसूनापन कितना खलता है,
दिन हौले-हौले ढलता है...भावपूर्ण सुंदर रचना...शुभकामनायें...
पिछले सारे ताने -बाने
जवाब देंहटाएंसुलझे कैसे ये न जानें,sahi bat ...bahut mushkil hota hai suljhana .....bahut acchi abhwayakti ....
जब दिन रात की वाहों में पिगलता हैं।
जवाब देंहटाएंसुवह का एक नया सूरज निकलता हैं।।