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एक बूँद ओस की......
सुबह सुबह पत्तों पर दूर से,
कुछ चमकते देखा-?
ऐसे लगा जैसे
पत्तों में कोई मोती उगा,
कौतूहल बस पास गया
मुझे लगा शायद ये पत्तों के आँसू है
समझ के मेरी बातों को
वो मुझसे कुछ कहने लगी,
तम्हे भ्रम हुआ है
न मै आँसू हूँ, न मै मोती
प्रकृति द्वारा बनाई गयी
मै तो एक बूँद ओस की,
आसमान से चलकर
आज ही जमी पर उतरी हूँ
कुछ पल मुझको जीना है-
कुछ पल में मिट जाऊगी,
लेकिन कुछ पल के लिए ही सही
अपनी पहचान दे जाऊगी,
मै एक छोटी सी बूंद हूँ
पर मेरा अपना असित्व है
तुम एक इंसान हो-
तुम्हारा जीवन में क्या महत्व है........
धीरेन्द्र भदौरिया.....
बहुत खूब - आभार
जवाब देंहटाएंआज आपकी यह कविता वैटव्रक्ष पर पढ़ी बहुत ही सुंदर और प्रभावशाली लेखन है आपका...
जवाब देंहटाएंसमय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है जहाँ पोस्ट बड़ी ज़रूर है किन्तु आपकी राय की जरूरत है धन्यवाद....
धीरेन्द्र जी... Kindly visit the following link through your FB account...
जवाब देंहटाएंhttps://www.facebook.com/photo.php?fbid=413138588799349&set=a.210025952443948.46146.209992032447340&type=1&theater