मंगलवार, 28 जून 2011

नजरिया

ये कैसा कलयुग है ,
चारो ओर धुंधला
दो काली रातो के बीच
एक दिन निकला
जब की
ऐसी नहीं है कोई बात
दो दिनों के बीच
आती है एक काली रात
परिस्थित एक ही है
मगर
दोनों के नजरिये में
कितना फर्क है l

9 टिप्‍पणियां:

  1. कल 13/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. बिल्कुल सही है ..गिलास आधा भरा है या आधा खाली ..नज़रिए का ही फर्क है ..

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  3. sab kuch najareeye par hi nirbhar karta hai...achchi rachna
    mere blog par aapka swagat hai :)

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  4. क्या बात कही है सर... सुन्दर...
    सादर बधाई...

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  5. कल 02/05/2012 को आपके ब्‍लॉग की प्रथम पोस्ट का नयी पुरानी हलचल पर स्‍वागत करते हैं .

    आपके बहुमूल्‍य सुझावों की प्रतीक्षा है .धन्यवाद!


    ... '' स्‍मृति की एक बूंद मेरे काँधे पे '' ...

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  6. बहुत सही कहा है सर ,,,
    इन्सान का नजरिया ही तो उसे अच्छे और बुरे में फर्क बताता है..
    बहुत ही बढ़िया रचना...

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  7. नजरिया ही तो सब कुछ है ।

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आपकी टिप्पणियाँ मेरे लिए अनमोल है...अगर आप टिप्पणी देगे,तो निश्चित रूप से आपके पोस्ट पर आकर जबाब दूगाँ,,,,आभार,