आज़ादी की वर्षगांठ
गली गली में बजते देखे आज़ादी के गीत रे |
जगह जगह झंडे फहराते यही पर्व की रीत रे ||
जगह जगह झंडे फहराते यही पर्व की रीत रे ||
सभी पर्व मनाते देश का आज़ादी की वर्षगांठ है |
वक्त है बीता धीरे धीरे छै साल और साठ है ||
बहे पवन परचम लहराता याद जिलाता जीत रे |
गली गली में बजते देखे आज़ादी के गीत रे ||
गली गली में बजते देखे आज़ादी के गीत रे ||
जगह जगह झंडे फहराते यही पर्व की रीत रे ||
जनता सोचे आज भी क्या वाकई आजाद हैं |
भूले मानस को दिलवाते नेता इसकी याद हैं ||
भूले मानस को दिलवाते नेता इसकी याद हैं ||
मंहगाई की मारी जनता भूल गई ये जीत रे |
गली गली में बजते देखे आज़ादी के गीत रे ||
जगह जगह झंडे फहराते यही पर्व की रीत रे ||
हमने पाई थी आज़ादी लौट गए अँगरेज़ हैं |
किंतु पीडा बंटवारे की दिल में अब भी तेज़ है ||
भाई हमारा हुआ पड़ोसी भूले सारी प्रीत रे |
गली गली में बजते देखे आज़ादी के गीत रे ||
जगह जगह झंडे फहराते यही पर्व की रीत रे ||
उक्त रचना मेरी नही है, ना ही रचनाकार का नाम मालुम है,मुझे रचना अच्छी लगी,इसलिए आपके साथ साझा कर रहा हूँ, आशा है आपको भी ये रचना पसंद आयेगी,,,