शनिवार, 13 जुलाई 2013

अपनी पहचान

अपनी  पहचान

चर्चा  धर्म  की  हो  या   ईमान  की
 बात  चाहे  हो  तीर या  कमान  की,

 मंत्री    नेता    या    राज्यपाल   हो  
   बात    बस,   उनके    गुमान    की,   

  राष्ट्र की  पुकार  कोई  नही  सुनता    
      वहाँ  कौन  सुनेगा  मेरी जुबान  की,       

 मैंने   किया   तो    कुछ   भी   नही    
  तुम  बात   करते  हो  अहसान  की,    

धर्म और  कर्तव्य  की   कौन  सोचे   
सब  सोचते  है अपनी  पहचान की,
   
   
dheerendra singh bhadouriya    

59 टिप्‍पणियां:

  1. बिल्कुलसही बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .....!!

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  2. राष्ट्र की पुकार कोई नही सुनता
    वहाँ कौन सुनेगा मेरी जुबान की,


    बहुत ही सुंदर प्रस्तुति , शुभकामनाये ,

    यहाँ भी पधारे

    http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_8.html

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  3. धर्म और कर्तव्य की कौन सोचे
    सब सोचते है अपनी पहचान की,

    बिलकुल सही .... सुंदर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  4. बिलकुल सटीक पहचान कराई आपने .....
    मुबारक हो !

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज रविवार (14-07-2013) को कई रूप धरती के : चर्चा मंच १३०६ में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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    उत्तर
    1. मेरी रचना को चर्चा मंच में स्थान देने के लिए आभार,,,शास्त्री जी,,,,

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  6. शानदार और सटीक अभिव्यक्ति

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  7. धर्म और कर्तव्य की कौन सोचे
    सब सोचते है अपनी पहचान की,
    सुंदर प्रस्तुति , शुभकामनाये ,

    जवाब देंहटाएं

  8. धर्म और कर्तव्य की कौन सोचे
    सब सोचते है अपनी पहचान की,

    बहुत बढ़िया लिख रहे हैं इन दिनों आप .व्यंग्य विड्म्बन ,बढ़िया रचना .


    धर्म और कर्तव्य की कौन सोचे
    सब सोचते है अपनी पहचान की,

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  9. धर्म और कर्तव्य की कौन सोचे
    सब सोचते है अपनी पहचान की,
    बिलकुल सही ...

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  10. वर्तमान परिदृश्य की सच्ची अनुभूति ...................

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  11. धर्म और कर्तव्य की कौन सोचे
    सब सोचते है अपनी पहचान की,

    सही कहा है..

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  12. बहुत सटीक और सुन्दर अभिव्यक्ति !!

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  13. बहुत ही लाजवाब और सशक्त गजल, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  14. सटीक यथार्थ

    धर्म और कर्तव्य की कौन सोचे
    सब सोचते है अपनी पहचान की,

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  15. बहुत सुंदर रचना, बहुत सुंदर
    सार्थक अभिव्यक्ति

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  16. बहुत सुन्दर सटीक और यथार्थ को प्रकट करती शानदार रचना ।

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  17. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (15.07.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी. कृपया पधारें .

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  18. बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...

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  19. बहुत ही शानदार प्रस्तुति बधाई आदरणीय

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  20. सुन्दर और भावपूर्ण रचना के लिए बधाई |
    आशा

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  21. धर्म और कर्तव्य की कौन सोचे
    सब सोचते है अपनी पहचान की.....
    सुंदर प्रस्तुति

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  22. "धर्म और कर्तव्य की कौन सोचे
    सब सोचते है अपनी पहचान की"
    बहुत सटीक .......

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  23. धर्म और कर्तव्य की कौन सोचे
    सब सोचते है अपनी पहचान

    सौ फीसदी सही..

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  24. बहुत सुंदर, सामयिक और सटीक ।

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  25. शानदार प्रस्तुति।

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  26. आज के यथार्थ को स्घब्दों में उतार दिया ... लाजवाब ...

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  27. बहुत सुंदर
    सच , सामयिक और सटीक
    बहुत ही लाजवाब और सशक्त गजल ......

    जवाब देंहटाएं
  28. बहुत सुंदर
    सच , सामयिक और सटीक
    बहुत ही लाजवाब और सशक्त गजल ......

    जवाब देंहटाएं
  29. मैंने किया तो कुछ भी नही
    तुम बात करते हो अहसान की,

    धर्म और कर्तव्य की कौन सोचे
    सब सोचते है अपनी पहचान की,
    बहुत बढ़िया

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  30. सही है..सभी पर अपनी पहचान का ही भूत सवार है।

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  31. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति********

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  32. धर्म और कर्तव्य की कौन सोचे
    सब सोचते है अपनी पहचान की,

    सुंदर रचना ..बधाई आपको !

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  33. सच कहा, अन्ततः स्वार्थ सर चढ़कर बोलता है।

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  34. बिल्कुलसही बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .....!!

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आपकी टिप्पणियाँ मेरे लिए अनमोल है...अगर आप टिप्पणी देगे,तो निश्चित रूप से आपके पोस्ट पर आकर जबाब दूगाँ,,,,आभार,