मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

क्यूँ चुप हो कुछ बोलो श्वेता.



 क्यूँ चुप हो कुछ बोलो श्वेता
मौंन बनी क्यूँ मुखरित श्वेता


क्षित की भी तुम सुन्दर-आभा
नील-गगन की हो परिभाषा
है पावक तुमसे ही शोभित
जल की हो तुम ही अभिलाषा

है समीर तुमसे ही चंचल, द्रुपद-सुता सी हो न श्वेता

महाशून्य से उद्दगम करती
दिग्ग-विहीन होकर हो बहती
सरिता महा-मौन की कैसी
हो अरूप रूपों को रचती

मौंन मुखर जीवन -छन्दो में, बस तुम ही होती हो श्वेता

इक कल को कल्पना बनाती
इक कल को जल्पना बनाती
वर्त्तमान भ्रम की परछाई
स्वप्न-छालित जागरण दिखाती

काल-प्रबल की हर स्वरूप की ,जननी क्या तुम हीं हो श्वेता

शब्द एक पर अर्थ कई है
डोर एक पर छोर नहीं है
जीवन मरण विलय कर जाते
रंग हीन के रंग कई है

हो अनंत का अंत समेटे, फिर भी अंत हीन हो श्वेता

 
है खुद से संलाप तुम्हारा
पंच-तत्व का गीत ये न्यारा
है अखंड आशेष प्रभा-मय
मौंन स्वयम्भू ब्रम्ह तुम्हारा

हो अद्रश्य में द्रश्य, द्रष्टि से फिर भी तुम ओझल हो श्वेता

 रचना कार - विक्रम सिंह
लिंक -

57 टिप्‍पणियां:

  1. वाह...
    मौंन मुखर जीवन -छन्दो में, बस तुम ही होती हो श्वेता...
    बहुत सुन्दर रचना....

    साझा करने का शुक्रिया...
    सादर
    अनु

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  2. शब्द एक पर अर्थ कई है
    डोर एक पर छोर नहीं है
    ......... बहुत ही सुंदर भावभरी रचना !!!

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  3. उम्दा अद्धभूत अभिव्यक्ति ..।
    शुक्रिया .....।
    सादर !!

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  4. बहुत सुन्दर....बेहतरीन प्रस्तुति
    पधारें "आँसुओं के मोती"

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  5. है खुद से संलाप तुम्हारा
    पंच-तत्व का गीत ये न्यारा
    है अखंड आशेष प्रभा-मय
    मौंन स्वयम्भू ब्रम्ह तुम्हारा

    बहुत गहन अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं
  6. है खुद से संलाप तुम्हारा
    पंच-तत्व का गीत ये न्यारा
    है अखंड आशेष प्रभा-मय
    मौंन स्वयम्भू ब्रम्ह तुम्हारा

    हो अद्रश्य में द्रश्य, द्रष्टि से फिर भी तुम ओझल हो श्वेता-बहुत सुन्दर भाव !
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  7. विक्रम जी की कविताएं अक्सर पढता हूं उनके ब्लॉग पर ..
    ये रचना भी अनुपम भाव ओर शिल्प लिए प्रभावी रचना है ...

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  8. बहुत ही बेहतरीन रचना,विक्रम जी को आभार और आपको डबल आभार इतनी बेहतरीन रचना को शेयर करने के लिए.

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  9. बहुत सुंदर रचना, अच्छी प्रस्तुति

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  10. गहन अनुभूति
    सुंदर रचना
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    बधाई

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  11. सुंदर भावभरी रचना.अच्छी प्रस्तुति .बधाई .

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  12. सुन्दर शब्द चयन |गहन भाव लिए अभिव्यक्ति |
    आशा

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  13. है खुद से संलाप तुम्हारा
    पंच-तत्व का गीत ये न्यारा
    है अखंड आशेष प्रभा-मय
    मौंन स्वयम्भू ब्रम्ह तुम्हारा

    गहन भाव लिए अभिव्यक्ति |

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...।

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  15. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  16. बहुत ही मुखर और उत्प्रेरक कविता.

    रामराम.

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  17. मौन भी और मुखर भी ...क्या कहने!

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  18. इस रचना को मैंने गाकर पढ़ा सर ,उम्दा रचना | इस रचना को हमसे शेयर करने के लिए धन्यवाद |

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  19. उज्जवल ...उत्कृष्ट ...बेहतरीन काव्य ...!!
    बहुत सुन्दर रचना ....!!
    बधाई .

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  20. बढ़िया है आदरणीय -
    शुभकामनायें-

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  21. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ...
    आभार आपका

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  22. शब्द एक पर अर्थ कई है
    डोर एक पर छोर नहीं है
    जीवन मरण विलय कर जाते
    रंग हीन के रंग कई है

    हो अनंत का अंत समेटे, फिर भी अंत हीन हो श्वेता

    ...बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...

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  23. इक कल को कल्पना बनाती
    इक कल को जल्पना बनाती
    वर्त्तमान भ्रम की परछाई
    स्वप्न-छालित जागरण दिखाती
    क्या बात है धीरेन्द्र जी। बहुत बेहतरीन।

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  24. बेहतरीन प्रस्तुति साझा करने के लिए हार्दिक बधाई

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  25. हो अनंत का अंत समेटे, फिर भी अंत हीन हो श्वेता
    बहुत सुन्दर रचना....
    साझा करने का आभार.

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  26. विक्रम जी कहते तो हैं कुछ खास नहीं !
    ये तो बहुत ही खास है उम्दा है !

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    उत्तर
    1. क्या आपने विक्रम जी अन्य रचनाओं का अवलोकन किया है,कृपया उनकी अन्य रचनाए पढ़े,फिर अवधारणा बनाए,,,,

      हटाएं
  27. चिरोपरांत विक्रम सिंह को पढ़ने को मिला....अद्दभुत भाव शब्द, कथ्य ,व स्निग्धता लिए सृजन का उनवान ...हृदय ग्राही है | आप दोनों को बधाई .....

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  28. अलंकारिक शब्द और चमत्कारिक भाव, वाह............

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  29. भाव अर्थ भाषिक सौन्दर्य और रूप रचाव लिए बढ़िया रचना पढ़वाई आपने भाई विक्रम की .शुक्रिया .

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  30. जाने कितने रंग समेटे .इतनी सुंदर है ये रचना...
    साझा करने के लिए धन्यवाद सर....

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  31. For giving place to my poem in your blog i am grately thankfull to you.and i am also thank full to all the respective readers.

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियाँ मेरे लिए अनमोल है...अगर आप टिप्पणी देगे,तो निश्चित रूप से आपके पोस्ट पर आकर जबाब दूगाँ,,,,आभार,