शनिवार, 21 जुलाई 2012

आदर्शवादी नेता,



मै भी देश का बन्दा हूँ

मै आदर्शवाद का झंडा हूँ,

हर साल इसे रंग लेता हूँ

इसलिए अभी तक नेता हूँ

कुछ कुछ मै सबको देता हूँ

आखिर मै भी जन नेता हूँ

वादों से जन का पेट चले

हर पाँच साल में वोट मिले

कुर्सी में बैठ कर मुझको

स्वर्गासन सा आनंद मिले

पोशाक मेरे स्वेताम्बर है

छीटे पड़ना स्वाभाविक है

माहौल बनाने के खातिर

मै पुनः साफ़ कर लेता हूँ

स्वाभाविक मधु मुस्कान लिए,

कितनो का मत हर लेता हूँ

बस हल्की नील चढाकर के,

मै कुर्सी को पा लेता हूँ

तू खाना खा कर जीवित है

मै जनमत खाकर ज़िंदा हूँ

मै भी देश का बन्दा हूँ,

मै आदर्शवाद का झंडा हूँ,

dheerendra,bhadauriya

51 टिप्‍पणियां:

  1. हा हा हा ! बहुत बढ़िया .

    मैं देता नहीं ,
    बस लेता हूँ
    हाँ हाँ , मैं नेता हूँ !

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  2. मै भी देश का बन्दा हूँ
    मै आदर्शवाद का झंडा हूँ,
    हर साल इसे रंग लेता हूँ
    इसलिए अभी तक नेता हूँ

    आज एक नया रंग भर दिया आपने इस कविता में. दर्द भी है कटाक्ष भी.

    बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति.

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  3. बहुत बढ़िया धीरेन्द्र जी ।।

    सादर -



    मत से है पूरा प्यार सखे ।

    मत करना तुम खिलवाड़ सखे ।

    तुम दान करो तन मन धन मत -

    ताकि हम सकें दहाड़ सखे ।

    स्वार्थ सिद्ध जब न होवे,

    सत्ता को चले उखाड़ सखे ।

    निस्वार्थ भाव से कर्म करो-

    कलुषित भाव मत ताड़ सखे ।।

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  4. बहुत सुन्दर व्यंग्य भरी रचना बहुत खूब

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  5. बहुत बहुत बधाई कवी महोदय ,बहुत ही सुन्दर व्यंग्यात्मक रचना लिखी है.
    खास कर ये लाइने पढ़ कर बड़ा आनंद आया ''हर पाँच साल में वोट मिले
    कुर्सी में बैठ कर मुझको ,स्वर्गासन सा आनंद मिले.



    मोहब्बत नामा
    मास्टर्स टेक टिप्स

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  6. बहुत लाजवाब व्यंग्य रचना..
    बेहतरीन:-)

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  7. बहुत लाजवाब सटीक व्यंग्य...

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  8. मैं नेता हूँ !
    मैं नेता हूँ !
    बहुत बढ़िया,सटीक व्यंग्य...

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  9. नेताओं पर सटीक व्यंग्य. बहुत सुन्दर ! .. वैसे नेता लोग मोटी चमड़ी के होते हैं. गैंडे की खाल से भी मोटी. इसमें कुछ गड़ जाय तो.......

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  10. लाजवाब व्यंग्य रचना...बहुत सुन्दर...

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  11. बहुत बढ़िया....करारी रचना...

    सादर
    अनु

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  12. तू खाना खा कर जीवित है

    मै जनमत खाकर ज़िंदा हूँ

    मै भी देश का बन्दा हूँ,
    व्यंग्य व्यंजना बढ़िया है .

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  13. बहुत सुंदर और सच्चा तीखा व्यंग ....

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  14. सीधे साफ़ शब्दों में बहुत बड़ी बात कही आपने ! सशक्त अभिव्यक्ति !
    सादर !!!

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  15. नेताओं पर गहन कटाक्ष .... सटीक और खरी बात

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  16. वाह SIR बेहद खुबसूरत रचना बधाई स्वीकार करें.

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  17. पोशाक मेरे स्वेताम्बर है

    छीटे पड़ना स्वाभाविक है

    माहौल बनाने के खातिर

    मै पुनः साफ़ कर लेता हूँ

    .....आज के नेताओं पर सटीक कटाक्ष...

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  18. बहुत अच्छी जानकारी.हमेशा की तरह अच्छी पोस्ट की है आपने.

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  19. धीरेंद्र जी नमस्कार...
    आपके ब्लॉग 'काव्यंजलि' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 24 जुलाई को 'आदर्श वादी नेता' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
    धन्यवाद
    फीचर प्रभारी
    नीति श्रीवास्तव

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  20. बहुत बढ़िया कटाक्ष. नेताओं की छवि और कुर्सी पानी की लालसा का सटीक चित्रण, बधाई.

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  21. राज नेताओं और राजनीति पर बहुत ही बढ़िया कटाक्ष एवं सटीक बात कहती बहुत ही बढ़िया व्यङ्गात्म्क प्रस्तुति।

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  22. आदर्शवाद वो भी रंग में रंगा हुआ .....ये भी नेता जी को पता है की कौनसा रंग है इस पर .......बहुत अच्छी रचना

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  23. खूब शनिल में लपेटकर मारा है ...वाह करारा व्यंग !

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  24. आज के माननीय नेतागण जनमत के साथ जनता को भी खाए जा रही है ....
    बहुत ही सुंदर व्यंग्य ..

    ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया !
    सादर !

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  25. बस हल्की नील चढाकर के,
    मै कुर्सी को पा लेता हूँ
    तू खाना खा कर जीवित है
    मै जनमत खाकर ज़िंदा हूँ,,,,,,

    बहुत लाजबाब व्यंग ,,,,

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  26. कुर्सी में बैठ कर मुझको
    स्वर्गासन सा आनंद मिले
    पोशाक मेरे स्वेताम्बर है
    छीटे पड़ना स्वाभाविक है,,,,,

    sunder prastuti

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  27. बहुत खूब .... गहरा कटाक्ष है इन नेताओं पे ...
    पर इनकी मोटी चमड़ी पे असर नहीं होता ...

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  28. बेहतर रचना आपने नेट से दूर रहने के कारण कमेन्‍ट मे देरी हूई है

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  29. धीरेन्द्र जी, आप तो आदर्शवादी नेता के बहाने वर्तमान नेता के लिये नये आदर्शों के पैमाने गढ़ रहे हैं.

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  30. बस हल्की नील चढाकर के,

    मै कुर्सी को पा लेता हूँ

    तू खाना खा कर जीवित है

    मै जनमत खाकर ज़िंदा हूँ

    करारा प्रहार और व्यंग्य से उन्हें जगाती रचना

    भ्रमर ५

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